राष्ट्रनायक न्यूज

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चोट और वोट के बीच फंसी बंगाल की राजनीति तो उत्तराखंड में टीएसआर का फार्मूला क्या है

राष्ट्रनायक न्यूज।
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव को देखते हुए सियासी पारा अपने चरम पर है। हालांकि, वहां की राजनीतिक दिशा उस समय बदल गई जब ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस की ओर से यह दावा किया गया कि पार्टी प्रमुख पर चार-पांच लोगों ने कथित तौर पर हमला किया है। तृणमूल कांग्रेस के अनुसार ममता बनर्जी पर यह हमला उस समय हुआ जब वह नंदीग्राम में चुनाव प्रचार कर रही थीं। बाद में चुनाव आयोग को पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से दी गई रिपोर्ट में इस बात का जिक्र नहीं था। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक के इस से बात को स्वीकार कर रहे हैं कि कहीं ना कहीं ममता बनर्जी और उनकी पार्टी की ओर से इमोशनल कार्ड खेला गया है। प्रभासाक्षी ने भी अपने साप्ताहिक कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इसी बात पर चर्चा की। इस दौरान प्रभासाक्षी के संपादक के नीरज कुमार दुबे ने भी कहा कि जब-जब ममता बनर्जी चोट की शिकार हुईं हैं उनका राजनीतिक ग्राफ ऊपर हुआ है। नीरज दुबे ने कहा कि ममता बनर्जी इस वक्त सबसे मुश्किल चुनावी लड़ाई लड़ रही हैं। दुबे ने इस बात पर भी जोर दिया कि पूरे मामले की जांच की जानी चाहिए। वहीं, उत्तराखंड में हुए सत्ता परिवर्तन पर प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे ने कहा कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व वहां से मिल रहे रिपोर्ट के अनुसार ही यह बड़ा फैसला किया होगा। त्रिवेंद्र सिंह रावत की कार्यशैली ना ही पार्टी और ना ही वहां के आम जनता के लिए लाभकारी हो रही थी। ऐसे में आने वाले चुनाव को देखते हुए भाजपा को यह बड़ा फैसला लेना पड़ा।

नंदीग्राम में चुनाव प्रचार के दौरान घायल हुईं ममता बनर्जी, साजिश का आरोप लगाया: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि नंदीग्राम में चुनाव प्रचार के दौरान ‘‘चार-पांच लोगों’’ द्वारा कथित रूप से धक्का दिये जाने की वजह से उनके एक पैर में चोट लगी है। घटना शाम सवा छह बजे उस वक्त घटी जब बनर्जी रियापारा इलाके में एक मंदिर में प्रार्थना के बाद बिरूलिया जाने वाली थीं। उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपनी कार के बाहर खड़ी थी जिसका दरवाजा खुला था। मैं वहां से मंदिर में प्रार्थना कर रही थी। कुछ लोग मेरी कार के पास आए और दरवाजे को धक्का दिया। कार का दरवाजा मेरे पैर में लग गया।’’ बनर्जी ने आरोप लगाया कि जब वह कार में सवार हो रही थीं तो चार-पांच लोगों ने उन्हें धक्का दिया। मुख्यमंत्री ने दावा किया कि चोट लगने की वजह से उनके पैर में सूजन आ गयी और उन्हें बुखार जैसा लग रहा है। उन्होंने कहा कि घटना के समय मौके पर कोई स्थानीय पुलिस कर्मी मौजूद नहीं था। बनर्जी को दर्द होने के कारण उनके सुरक्षाकर्मी एसयूवी की आगे की सीट से पीछे की सीट पर ले गए। जिस पैर में सूजन आयी थी उस पर एक सफेद कपड़ा भी लपेटा हुआ दिखा। इस घटना के बाद सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हो गये हैं क्योंकि मुख्यमंत्री को ‘जेड-प्लस’ स्तर की सुरक्षा प्राप्त है। बनर्जी रात में नंदीग्राम में रूकने वाली थीं लेकिन घटना के बाद उन्हें कोलकाता ले जाया गया। पूर्वी मेदिनीपुर जिले में नंदीग्राम से कोलकाता ले जाने के लिए ‘ग्रीन कॉरिडोर’ भी बनाया गया। इलाज के लिए उन्हें सरकारी एसएसकेएम अस्पताल ले जाया गया है। बनर्जी पिछले दो दिन से पूर्ब मेदिनीपुर जिले में प्रचार कर रही थीं। उन्होंने बुधवार को ही हल्दिया में नामांकन पत्र दाखिल किया था।

ममता बनर्जी पर ‘हमले’ के विरोध में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकतार्ओं ने कई जगह प्रदर्शन किए: तृणमूल कांग्रेस के कार्यकतार्ओं ने पार्टी प्रमुख एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हुए कथित हमले के विरोध में बृहस्पतिवार को राज्य भर में विरोध प्रदर्शन किए। कार्यकतार्ओं ने कोलकाता, उत्तर 24परगना, हुगली, हावड़ा, बीरभूम, दक्षिण 24परगना और जलपाईगुड़ी जिले के कुछ हिस्सों में विरोध प्रदर्शन किए। इस दौरान पार्टी कार्यकतार्ओं ने भाजपा के खिलाफ नारेबाजी की और बनर्जी के खिलाफ साजिश रचने के आरोप लगाए। सत्तारुढ़ पार्टी के कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए और उन्होंने टायर जलाए। पार्टी कार्यकतार्ओं और भाजपा के कार्यकतार्ओं के एक समूह के बीच सुबह बिरूलिया इलाके में झड़प हुई लेकिन स्थित को तत्काल काबू में कर लिया गया। बनर्जी के शीघ्र स्वस्थ होने के लिए नंदीग्राम के पीरबाबा मजार में और मंदिरों में कार्यकतार्ओं ने प्रार्थना की।

किसी को ममता पर हमले की जिम्मेदारी लेनी होगी, यह उनकी हत्या की कोशिश थी: तृणमूल

तृणमूल कांग्रेस ने नंदीग्राम में चुनाव प्रचार मुहिम के दौरान घायल हुईं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ‘‘सुरक्षा मुहैया कराने में नाकाम रहने’’ पर निर्वाचन आयोग की बृहस्पतिवार को निंदा की और कहा कि आयोग जिम्मेदारी से नहीं बच सकता, क्योंकि विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद वही कानून-व्यवस्था की स्थिति के लिए जिम्मेदार है। तृणमूल नेताओं ने दावा किया कि यह हमला ‘‘तृणमूल सुप्रीमो की जान लेने का गहरा षड्यंत्र था’’। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ने पड़ोसी राज्यों से असामाजिक तत्वों को हिंसा करने के लिए नंदीग्राम भेजा था। तृणमूल के प्रतिनिधि मंडल ने यहां आयोग के अधिकारियों से मुलाकात करने के बाद निर्वाचन आयोग पर भाजपा नेताओं के ‘‘आदेशानुसार’’ काम करने का आरोप लगाया और कहा कि ‘‘बनर्जी पर हमला हो सकने की रिपोर्ट के बावजूद निर्वाचन आयोग ने कुछ नहीं किया।’’

तृणमूल के प्रतिनिधिमंडल ने की निर्वाचन आयोग से मुलाकात: तृणमूल कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल ने निर्वाचन आयोग के अधिकारियों से मुलाकात की और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर नंदीग्राम में हुए कथित हमले की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की। पार्टी ने यह यह भी दावा किया कि यह कोई ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण घटना’’ नहीं, बल्कि साजिश थी। तृणमूल कांग्रेस के छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने निर्वाचन आयोग की पूरी टीम से मुलाकात की, जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा भी शामिल थे। एक घंटे से भी अधिक समय तक चली मुलाकात में तृणमूल के नेताओं ने आयोग को एक ज्ञापन भी सौंपा। ज्ञापन में इस बात पर जोर दिया गया है कि किस प्रकार से पश्चिम बंगाल में भाजपा नेताओं ने ट्वीट और बयानों के जरिए मुख्यमंत्री को कथित धमकी दी थी।

आयोग को भेजी पश्चिम बंगाल की रिपोर्ट में ‘‘चार-पांच’’ हमलावरों का जिक्र नहीं: नंदीग्राम में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के चोटिल होने पर पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा चुनाव आयोग को भेजी गयी रिपोर्ट में ‘‘चार-पांच लोगों’’ के हमले का जिक्र नहीं किया गया है। राज्य निर्वाचन आयोग के एक अधिकारी ने इस बारे में बताया। हालांकि, उन्होंने कहा कि घटनास्थल पर भारी भीड़ की मौजूदगी का हवाला दिया गया है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां पर घटना हुई वहां का कोई स्पष्ट फुटेज उपलब्ध नहीं है।

भाजपा नेताओं ने की घटना की स्वतंत्र जांच की मांग की: भाजपा नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग के अधिकारियों से मुलाकात की और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के चोटिल होने की घटना की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की। इस प्रतिनिधिमंडल में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और भाजपा महासचिव भूपेंद्र यादव के अलावा पार्टी नेता संबित पात्रा, अनिर्बान गांगुली और स्वप्नदास गुप्ता शामिल रहे।

तीरथ सिंह रावत के सिर सजा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का ताज: भाजपा सांसद तीरथ सिंह रावत उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री बने। उन्हें भाजपा विधायक दल का नेता चुन लिया गया। उन्होंने त्रिवेन्द्र सिंह रावत की जगह ली। केंद्रीय पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में संपन्न हुई विधायक दल की करीब 30 मिनट तक चली बैठक के बाद पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने विधायक दल के नेता के रूप में पौड़ी गढ़वाल से सांसद तीरथ सिंह रावत के चुने जाने की घोषणा की थी। दस मार्च को मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने अकेले ही पद और गोपनीयता की शपथ ली थी।

उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत मंत्रिमंडल का विस्तार, चार नए चेहरों समेत 11 मंत्री शामिल: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने अपना मंत्रिमंडल विस्तार करते हुए चार नए सदस्यों समेत 11 मंत्रियों को शामिल किया। रावत मंत्रिमंडल में मदन कौशिक को छोड़ कर पूर्ववर्ती त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के सभी मंत्रियों को जगह दी गयी है। कौशिक को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। यहां राजभवन में तय समय से करीब 25 मिनट देर से आयोजित एक समारोह में उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने शुक्रवार की शाम मंत्रियों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलायी। शपथ ग्रहण कार्यक्रम में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, विजय बहुगुणा और कई विधायकों सहित अनेक गणमान्य लोग मौजूद थे। पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी के करीबी माने जाने वाले तीरथ सिंह रावत प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष तथा प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं। विधायक दल के नेता के रूप में रावत के नाम की घोषणा के बाद प्रदेश मुख्यालय में उनके समर्थकों ने जमकर जश्न मनाया और आतिशबाजी की। नेता चुने जाने के बाद तीरथ सिंह रावत ने कहा कि वह मिलजुल कर और सबको साथ लेकर काम करेंगे। यहां संवाददाताओं से बातचीत करते हुए उन्होंने नयी जिम्मेदारी के लिए पार्टी नेतृत्व का आभार व्यक्त किया और कहा कि उन्हें जो दायित्व सौंपा गया है, वह उसका निर्वहन पूरी निष्ठा से करेंगे।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद पर रावत उपनाम की हैट्रिक: मार्च तीरथ सिंह रावत के बुधवार को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने के साथ ही प्रदेश सरकार के मुखिया पद पर रावत उपनाम की हैट्रिक हो गई। तीरथ सिंह ऐसे तीसरे मुख्यमंत्री हैं जिनका उपनाम रावत है। इससे पहले, उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने वर्ष 2017 से लेकर 2021 तक प्रदेश की बागडोर संभाली। वर्ष 2017 से पहले 2014 में कांग्रेस नेता हरीश रावत मुख्यमंत्री बने थे। सोशल मीडिया में यह संदेश भी वायरल हुआ कि एक टीएसआर (त्रिवेंद्र सिंह रावत) गए और दूसरे टीएसआर (तीरथ सिंह रावत) आ गए।

त्रिवेंद्र भी पूरा नहीं कर पाए अपना कार्यकाल: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के साथ ही त्रिवेंद्र सिंह रावत भी अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये। हांलांकि, उत्तराखंड के 20 वर्ष के इतिहास में पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने से पहले कुर्सी गंवाने वाले मुख्यमंत्रियों की सूची में रावत का स्थान आठवां है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 18 मार्च, 2017 को मुख्यमंत्री का पद संभाला था और केवल नौ दिन बाद वह अपनी सरकार के चार साल पूरे करने वाले थे, लेकिन आज उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। प्रदेश में पहली निर्वाचित सरकार के मुखिया के रूप में 2002 में कमान संभालने वाले कांग्रेस के दिग्गज नारायण दत्त तिवारी ही वह एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। नौ नवंबर, 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर अस्तित्व में आए उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी बने लेकिन एक साल में ही उन्हें लेकर प्रदेश भाजपा में इतना असंतोष बढ़ा कि पार्टी आलाकमान ने उन्हें हटाकर भगत सिंह कोश्यारी को राज्य की कमान सौंप दी। फरवरी, 2002 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा के हारने के साथ ही कोश्यारी भी सत्ता से बाहर हो गए।

उसके बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले तिवारी के कार्यकाल के दौरान भी उन्हें हटाए जाने चचार्एं चलती रहीं लेकिन उनके कद और अनुभव के सामने उनके विरोधियों की इच्छाएं कभी परवान नहीं चढ सकीं और उन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। वर्ष 2007 में कांग्रेस के चुनाव हारने के बाद ही वह मुख्यमंत्री पद से हटे। उसके बाद सत्ता में आई भाजपा ने पूर्व फौजी भुवनचंद्र खंडूरी पर भरोसा जताया लेकिन 2009 में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के हाथों प्रदेश की सभी पांचों सीटें गंवाने से क्षुब्ध होकर उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद से इस्तीफा दे दिया। उनकी जगह आए वर्तमान केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके और 2012 के विधानसभा चुनावों से कुछ माह पहले मुख्यमंत्री पद पर फिर खंडूरी की वापसी हो गई। विधानसभा चुनाव जीतकर 2012 में सत्ता में आई कांग्रेस ने विजय बहुगुणा पर दांव खेला लेकिन 2013 की केदारनाथ आपदा ने उनके मुख्यमंत्री पद की बलि ले ली और उनकी जगह हरीश रावत को प्रदेश की कमान सौंपी गई। हांलांकि, रावत भी वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव हारकर मुख्यमंत्री की कुर्सी से बेदखल हो गए।
अंकित सिंह

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