राष्ट्रनायक न्यूज

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महात्मा गांधी की दांडी यात्रा में आरएसएस का क्या था योगदान

राष्ट्रनायक न्यूज।
देश के स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका को लेकर अकसर विरोधी सवाल उठाते हैं परंतु ये सवाल कुछ और नहीं बल्कि उनकी अज्ञानता को ही प्रदर्शित करते हैं। संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने संगठन की स्थापना देश की स्वतंत्रता के साथ-साथ ऐसे राष्ट्रनिर्माण के लिए की थी जो सतत् जागरूक, एकजुट, शक्तिशाली, साधन संपन्न हो ताकि विदेशियों के बार-बार भारत पर आक्रमण करने और भारतीयों द्वारा बार-बार स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने का सिलसिला समाप्त हो सके। वे समस्या का स्थाई समाधान चाहते थे। इसीलिए संघ ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में तो भाग लिया परंतु साथ-साथ व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का यज्ञ अनवरत चलता रहा जो आज भी जारी है। देश के स्वतंत्रता संग्राम में संघ ने जो योगदान दिया उसे भुलाया नहीं जा सकता। 12 मार्च, 1930 की तारीख भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में बहुत अहम तारीख है। आज ही के दिन महात्मा गांधी जी ने भारत की आजादी के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन का आगाज करते हुए दांडी यात्रा की शुरूआत की थी। अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से शुरू हुई इस यात्रा का उद्देश्य इसके अंत में नमक कानून को तोड़ना था जो अंग्रेजों के खिलाफ देश भर में विरोध का एक बड़ा संकेत था।

इसी आंदोलन के अंतर्गत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी ने जंगल सत्याग्रह किया जिसके चलते उन्हें 9 मास का सश्रम कारावास भी हुआ। एक सुनियोजित आंदोलन: महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के बनाए अन्यायपूर्ण नमक कानून के विरोध को अंग्रेजों के विरोध के लिए हथियार बनाया। इस यात्रा की पूरी तरह से योजना बनाई गई थी। इसमें कांग्रेस के सभी नेताओं की भूमिकाएं तय गई थीं। यह भी तय किया गया था कि अगर अंग्रेजों ने गिरफ्तारी की तो कौन-कौन-से नेता यात्रा को संभालेंगे। इस यात्रा को भारी तादाद में जन समर्थन मिला और जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ती गई बहुत सारे लोग जुड़ते चले गए।
रोज 16 किलोमीटर चलते थे गांधीजी: अंग्रेजों के नमक कानून के खिलाफ गांधीजी अपने 79 साथियों के साथ 240 मील यानि 386 कोलीमीटर लंबी यात्रा कर नवसारी के एक छोटे से गांव दांडी पहुंचे जहां समुद्री तट पर पहुंचने पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से नमक कानून बनाकर नमक कानून तोड़ा। 25 दिन तक चली इस यात्रा में बापू रोज 16 किलोमीटर की यात्रा करते थे, जिसके बाद वे 6 अप्रैल को दांडी पहुंचे थे।

लोगों ने दिया साथ: 12 मार्च 1930 का दिन भारत की आजादी की लड़ाई में अहम पड़ाव माना जाता है। यह वह समय था जब कुछ महीने पहले ही कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का संकल्प लिया था। इससे पहले साल 1920 में असहयोग आंदोलन चौरीचौरा हिंसा की भेंट चढ़ गया था। इसके बाद यह पहला इतना बड़ा जनआंदोलन था जिसमें लोगों ने बापू का भरपूर साथ दिया और यह आंदोलन पूरी तरह अहिंसक रहते हुए सफल रहा।

तोड़ा अंग्रेजी हुकूमत का घमण्ड: दांडी मार्च खत्म होने के बाद चल असहयोग आंदोलन के तहत बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं। कांग्रेस के प्रथम पंक्ति के सभी नेता गिरफ्तार होते रहे, लेकिन आंदोलनकारियों और उनके समर्थकों ने किसी तरह से हिंसा का सहारा नहीं लिया। यहां तक कि अमेरिकी पत्रकार वेब मिलर ने अंग्रेजों के सत्याग्रहियों पर हुए अत्याचार की कहानी दुनिया के सामने रखी तो पूरी दुनिया में ब्रिटिश साम्राज्य की बहुत बेइज्जती हुई।
भारतीय स्वतंत्रता की नींव: इस आंदोलन का खात्मा गांधी इरविन समझौते के साथ हुआ। इसके बाद अंग्रेजों ने भारत को स्वायत्तता देने के बारे में विचार करना शुरू कर दिया था। 1935 के कानून में इसकी झलक भी देखने को मिली और सविनय अवज्ञा की सफलता के विश्वास को लेकर गांधी जी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया जिससे अंग्रेजों को भारत छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। 6 अप्रैल, 1930 को दांडी में समुद्र तट पर गांधी जी ने नमक कानून तोड़ा और लगभग 8 वर्ष बाद कांग्रेस ने दूसरा जनान्दोलन प्रारम्भ किया।

संघ का योगदान: संघ का कार्य अभी मध्य प्रान्त में ही प्रभावी हो पाया था। यहां नमक कानून के स्थान पर जंगल कानून तोड़कर सत्याग्रह करने का निश्चय हुआ। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार संघ के सरसंघचालक का दायित्व डॉ. लक्ष्मण वासुदेव परांजपे को सौंप स्वयं अनेक स्वयंसेवकों के साथ सत्याग्रह करने गए। सत्याग्रह हेतु यवतमाल जाते समय पुसद नामक स्थान पर आयोजित जनसभा में डॉ. हेडगेवार जी के सम्बोधन में स्वतंत्रता संग्राम में संघ का दृष्टिकोण स्पष्ट होता है। उन्होंने कहा था- स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अंग्रेजों के बूट की पॉलिश करने से लेकर उनके बूट को पैर से निकालकर उससे उनके ही सिर को लहुलुहान करने तक के सब मार्ग मेरे स्वतंत्रता प्राप्ति के साधन हो सकते हैं। मैं तो इतना ही जानता हूं कि देश को स्वतंत्र कराना है। डॉ. हेडगेवार जी के साथ गए सत्याग्रही जत्थे में अप्पा जी जोशी (बाद में सरकार्यवाह), दादाराव परमार्थ (बाद में मद्रास में प्रथम प्रांत प्रचारक) आदि 12 स्वयंसेवक शामिल थे। उनको 9 मास का सश्रम कारावास दिया गया। उसके बाद अ.भा. शारीरिक शिक्षण प्रमुख (सर सेनापति) मार्तण्ड जोग जी, नागपुर के जिला संघचालक अप्पा जी ह्ळदे आदि अनेक कार्यकतार्ओं और शाखाओं के स्वयंसेवकों के जत्थों ने भी सत्याग्रहियों की सुरक्षा के लिए 100 स्वयंसेवकों की टोली बनाई, जिसके सदस्य सत्याग्रह के समय उपस्थित रहते थे। 8 अगस्त को गढ़वाल दिवस पर धारा 144 तोड़कर जुलूस निकालने पर पुलिस की मार से अनेक स्वयंसेवक घायल हुए। विजयादशमी 1931 को डॉक्टर जी जेल में थे, उनकी अनुपस्थिति में गांव-गांव में संघ की शाखाओं पर एक संदेश पढ़ा गया, जिसमें कहा गया था- देश की परतंत्रता नष्ट होकर जब तक सारा समाज बलशाली और आत्मनिर्भर नहीं होता, तब तक रे मना ! तुझे निजी सुख की अभिलाषा का अधिकार नहीं।

स्वभाविक है कि देश को स्वतंत्रता किसी एक दल, एक परिवार, एक व्यक्ति, एक समुदाय विशेष के प्रयासों से नहीं बल्कि समूचे देशवासियों के संयुक्त प्रयासों से मिली है। यह बात दीगर है कि एक दल इसका विशेष श्रेय लेता रहा और स्वतंत्रता संग्राम को राजनीतिक लाभ लेने का माध्यम भी बना चुका है। चाहे इन कदमों को उस दल के विवेक पर छोड़ सकते हैं परंतु स्वतंत्रता संग्राम में दूसरों पर, विशेषकर संघ जैसे देशभक्त व राष्ट्रनिष्ठ संगठन पर अंगुली उठाई जाए इसका किसी को अधिकार नहीं दिया जा सकता।
राकेश सैन

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