नई दिल्ली, (एजेंसी)। कोरोना संकट की मार उच्च शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों और युवा पेशेवरों पर काफी बुरा हुआ है। लॉकडाउन के कारण उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद प्लेसमेंट न मिलने या मिली नौकरी छूटने से वो शिक्षा ऋण नहीं चुका पा रहे हैं। इससे 31 दिसंबर, 2020 तक सरकारी बैंकों द्वारा बांटे गए शिक्षा ऋण का एनपीए 9.55% बढ़ा है। सरकार द्वारा संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक, कुल शिक्षा ऋण में से 8,587 करोड़ रुपये 366,260 खाते में एनपीए हुए हैं।
दक्षिण भारत की हिस्सेदारी 65 फीसदी: दक्षिण भारत के राज्यों में लिए गए शिक्षा ऋण में सबसे अधिक एनपीए के मामले सामने आए हैं। कुल शिक्षा ऋण के एनपीए में दक्षिण भारत की हिस्सेदारी 65% से अधिक है। तमिलनाडु में अकेले 8,587 करोड़ रुपये शिक्षा ऋण में से 3,490.75 करोड़ का एनपीए हुआ है। राज्य पर बकाया शिक्षा ऋणों में तमिलनाडु में 20.3% और बिहार में 25.76% एनपीए हो गए हैं। हालांकि, बिहार पर शिक्षा लोन तमिलनाडु से बहुत कम था।
तीन वित्त वर्ष में बढ़ोतरी: शिक्षा ऋण के लिए एनपीए की दर 2019-20 की तुलना में काफी अधिक थी और पिछले तीन वित्तीय वर्षों में सबसे अधिक है। वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, शिक्षा ऋण में आवास, वाहन, उपभोक्ता टिकाऊ और खुदरा ऋण की तुलना में काफी अधिक एनपीए देखा गया, जो वित्त वर्ष 2019-20 में 1.52% से 6.91% के बीच था।
बेरोजगारी बढ़ने से बिगड़ी स्थिति: विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना और लॉकडाउन से बेरोजगारी बढ़ी है। देश में रोजगार के अवसरों में कमी के साथ ही अमेरिका जैसे विकसित देशों की ओर से बदले गए वीजा नियमों से भी मुश्किल बढ़ी है। वीजा नियमों में बदलाव के कारण नौकरी के लिए भारत से विदेश जाने वाले स्टूडेंट्स की संख्या भी घटी है। नौकरी नहीं मिलने से कर्ज का भुगतान करना मुश्किल हो रहा है। इससे शिक्षा ऋण में एनपीए तेजी से बढ़ा है।
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