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नंदीग्राम के राजनीतिक-सामाजिक समीकरणों को समझिये, खुद जान जाएंगे किसका पलड़ा भारी है

दिल्ली, एजेंसी। पश्चिम बंगाल के पूर्वी मिदनापुर जिले में नंदीग्राम विधानसभा सीट के चुनावी मुकाबले पर इस बार सभी की नजरें टिकी हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कभी उनके विश्वस्त नेता रहे शुभेन्दु अधिकारी के बीच महामुकाबले का परिणाम क्या होगा इस बात का इंतजार सिर्फ बंगाल के लोगों को ही नहीं बल्कि पूरे देश को है। नंदीग्राम का राजनीतिक संग्राम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि नंदीग्राम का आंदोलन ही बंगाल के राजनीतिक इतिहास में निर्णायक मोड़ लाया था। नंदीग्राम की आंदोलन भूमि से ही मार्क्सवाद विरोधी तेज तर्रार नेता ममता बनर्जी का उदय हुआ था, जिन्होंने राज्य में 34 साल से शासन कर रहे वाम मोर्चे को सत्ता से बेदखल कर दिया था। उस दौरान शुभेन्दु अधिकारी, इलाके के सर्वाधिक ताकतवर नेता के रूप में और तृणमूल कांग्रेस के एक कद्दावर नेता के तौर पर उभरे थे। ममता और शुभेन्दु दोनों ने मिलकर नंदीग्राम पर राज किया लेकिन आज यह दोनों नेता नंदीग्राम का ताज हासिल करने के लिए एक दूसरे से ही लड़ाई लड़ रहे हैं। हम आपको बता दें कि इस सीट पर एक अप्रैल को मतदान होगा।

नंदीग्राम का हालिया राजनीतिक इतिहास: नंदीग्राम के राजनीतिक समीकरणों की बात करेंगे लेकिन जरा पहले यहां के आर्थिक और सामाजिक हालात की बात कर लेते हैं। पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में 14 साल पहले उद्योग के लिए कृषि भूमि अधिग्रहित करने के खिलाफ खूनी आंदोलन हुआ जिसने राज्य की राजनीतिक तस्वीर बदल दी थी। अब वही नंदीग्राम चाहता है कि इलाके में उद्योगों का विकास हो ताकि काम की तलाश में लोगों को बाहर न जाना पड़े। इस विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक और सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण भी देखने को मिल रहा है लेकिन पार्टियों और स्थानीय लोगों की इस मामले पर एक राय है कि इस इलाके में उद्योगों का खुले दिल से स्वागत किया जाए। यहाँ अब वर्ष 2007 की तरह के हालात नहीं दिखते क्योंकि लोगों का कहना है कि अगर अधिग्रहित जमीन का उचित दाम दिया जाए तो वे औद्योगिक विकास का विरोध नहीं करेंगे।

दरअसल नंदीग्राम में कोई उद्योग लगाने आना नहीं चाहता क्योंकि वर्ष 2007 में भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी (बीयूपीसी) के तहत विभिन्न राजनीतिक धाराओं के लोगों ने प्रदर्शन किया था जिसकी वजह से इंडोनेशिया की सलीम समूह की कंपनी ने एक हजार एकड़ क्षेत्र में केमिकल हब बनाने की योजना रद्द कर दी थी। 2007 में हुए प्रदर्शनों के कारण कई लोगों की मौत हुई थी जिनमें से 14 लोगों की मौत तो पुलिस की गोली से हुई थी। इस इतिहास की वजह से नंदीग्राम आज भी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर निर्भर है और चावल, सब्जी और मछली की आसपास के इलाके में आपूर्ति करता है। पूर्वी मिदनापुर जिले के तटीय इलाके में आने वाले नंदीग्राम में पानी में लवणता अधिक होने की वजह से यहां केवल एक फसल ही हो पाती है। अब फसल एक ही होती है और जमीन बंटी हुई है इसलिए लोग उद्योग चाहते हैं। यह उद्योग कपड़ा या कृषि आधारित हो सकते हैं।
नंदीग्राम के सामाजिक, आर्थिक समीकरण: तृणमूल कांग्रेस ने नंदीग्राम के लोगों को सपने तो काफी दिखाये थे लेकिन आज देखा जाये तो नंदीग्राम में अधिकतर परिवारों की मासिक आय 6000 रुपये से अधिक नहीं है। नंदीग्राम के अधिकतर परिवारों में कम से कम एक सदस्य दूसरे राज्य में कमाने गया है। यहां रोजगार का मतलब खेती, झींगा पालन या मनरेगा योजना के तहत मजदूरी है। यहां के युवा अपने माता-पिता की अपेक्षा पढ़े-लिखे तो हैं लेकिन खेती में उनकी कोई रुचि नहीं है। कोरोना वायरस की वजह से जो सैंकड़ों प्रवासी मजदूर दूसरे शहरों से वापस नंदीग्राम में आये हैं वह यहां पर काम को लेकर चिंतित हैं। अधिकतर लोग समझ चुके हैं कि बिना उद्योग के यहां कोई विकास नहीं हो सकता। लेकिन उद्योग तो तभी लगेगा जब हालात अनुकूल होंगे, कानून व्यवस्था की स्थिति अच्छी होगी।
चुनाव मैदान में कौन-कौन?

अब कानून व्यवस्था की स्थिति सुधारने, नंदीग्राम में विकास कराने के वादे के साथ विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता चुनावी मैदान में हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने परम्परागत भवानीपुरा विधानसभा क्षेत्र को छोड़कर इस बार नंदीग्राम से तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रही हैं तो भाजपा ने ममता के पूर्व सहयोगी शुभेंदु अधिकारी को अपना उम्मीदवार बनाया है। पश्चिम बंगाल में चूँकि कांग्रेस, वाम और आईएसएफ महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं इसीलिए नंदीग्राम विधानसभा सीट माकपा के खाते में आई है और उसने मीनाक्षी मुखर्जी को अपना उम्मीदवार बनाया है। कुछ अन्य उम्मीदवार भी मैदान में हैं और जनता से तमाम वादे कर रहे हैं।
नंदीग्राम में चुनावी माहौल किसके पक्ष में है?

नंदीग्राम में इस समय के राजनीतिक हालात की बात करें तो यहां के बाजारों की गलियों में एक ओर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा दूसरी ओर शुभेन्दु अधिकारी के लगे हुए कट-आउट सबकुछ बयां करते हैं। करीब 14 साल पहले तृणमूल कांग्रेस का गढ़ बना नंदीग्राम इस बार ‘‘अपनी दीदी और अपने दादा’’ के बीच किसी एक का चयन करने को लेकर दुविधा की स्थिति में है। पिछले महीने तक नंदीग्राम में माहौल तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में नहीं था, लेकिन ममता बनर्जी के यहां से चुनाव लड़ने से हालात बदले हैं और अब भाजपा के पक्ष में एकतरफा मुकाबला नहीं बल्कि काँटे की टक्कर हो गयी है। यह सही है कि ममता बनर्जी ने यहां एसईजैड के खिलाफ सफल आंदोलन चला कर सत्ता की सीढ़ियां चढ़ लीं लेकिन उसके बाद से वह नंदीग्राम के लोगों के सीधे संपर्क में नहीं रहीं क्योंकि सीधे संपर्क में रहने का जिम्मा शुभेन्दु अधिकारी के पास था। शुभेन्दु को इसी बात का फायदा मिल सकता है क्योंकि वह यहां के अधिकांश लोगों को नाम से जानते हैं, यहां की गलियों में पले-बढ़े हैं, आंदोलन किया है और राज भी किया है। यही कारण है कि वह चुनाव प्रचार के दौरान अपना मतदाता पहचान पत्र लेकर घूम रहे हैं और लोगों को बता रहे हैं कि मैं भूमि पुत्र हूँ और आपके बीच से ही हूँ। मुझे चुनोगे तो आपके बीच में ही रहूँगा। ममता से मिलने के लिए तो कोलकाता जाना पड़ेगा। शुभेन्दु खुद को नंदीग्राम का बेटा और ममता बनर्जी को बाहरी बता रहे हैं।
नंदीग्राम के धाकड़ उम्मीदवारों में भारी कौन?

नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र के सामाजिक समीकरणों की बात करें तो यहां करीब 70 प्रतिशत हिंदू हैं जबकि शेष मुसलमान हैं। साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण भाजपा को थोड़ी-सी बढ़त हासिल है लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के चुनाव लड़ने से यहां मुकाबला कड़ा हो गया है क्योंकि अधिकतर लोगों को यह भी लग रहा है कि यदि ममता फिर सत्ता में लौटीं तो मुख्यमंत्री का क्षेत्र होने के नाते यहाँ अच्छा विकास हो सकता है। कुल मिलाकर देखा जाये तो मुकाबला तृणमूल कांग्रेस और भाजपा उम्मीदवार के बीच ही होना है। ममता बनर्जी मुख्यमंत्री होने के नाते दमदार उम्मीदवार हैं तो शुभेन्दु अधिकारी भी पश्चिम बंगाल सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। शुभेन्दु पूर्वी मेदिनीपुर जिले के शक्तिशाली अधिकारी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता शिशिर अधिकारी तामलुक और भाई दिव्येंदु अधिकारी कंठी लोकसभा क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस के सांसद हैं। यही नहीं शुभेन्दु अधिकारी का पश्चिमी मेदिनीपुर, बांकुड़ा, पुरुलिया, झाड़ग्राम और बीरभूम के कुछ हिस्सों और अल्पसंख्यक बहुल मुर्शिदाबाद जिले के अंतर्गत आने वाली 40-45 विधानसभा सीटों पर खासा प्रभाव माना जाता है।

पिछले चुनाव परिणाम: बहरहाल, यहां हुए पिछले चुनावों की बात करें तो तामलुक संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली नंदीग्राम विधानसभा सीट पर 2016 के विधानसभा चुनावों के दौरान 2,01,659 पंजीकृत मतदाता थे और उस समय यहाँ 86.97 प्रतिशत मतदान हुआ था। 2016 के विधानसभा चुनावों में शुभेन्दु अधिकारी तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर यहाँ से चुनाव जीते थे और उस समय उन्हें कुल 1,34,623 वोट मिले थे और उन्होंने सीपीआई के अब्दुल कबीर शेख को 53,393 वोटों से शिकस्त दी थी। अब देखना होगा कि 1 अप्रैल 2021 को नंदीग्राम के मतदाता किसे अपना प्रतिनिधि बना कर विधानसभा में भेजते हैं।
नीरज कुमार दुबे

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