राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

किराए की कोख: मजबूरी या शौक, आखिर कितनी चुनौतीपूर्ण है सेरोगेसी?

राष्ट्रनायक न्यूज। मेरे पड़ोस में एक आंटी थी जो मुझे और मेरे जैसे कॉलोनी के हर बच्चे को बड़ा दुलारती थी। हम बच्चों को भी अच्छा लगता था जो चाहो खाने को मांग लो जो चाहो उनके घर में करो कभी मना नहीं करती थी। आमतौर पर हमारे घरों में कहां जाता था कि उनको कोई बच्चा नहीं है ना तो उनको बच्चों से बहुत लगाव है। हम बच्चे थे तो हमें बहुत पता नहीं था इस बात का मतलब क्या है। दोनों अंकल आंटी बहुत प्यार से हमारी बच्चा गैंग से मिलते बात करते थे तो वो हम सब के लिए आम लोग जैसे ही थे।

जब बचपन खत्म हुआ तब जान पड़ा कि उनकी प्रेग्नेंसी नहीं हो सकती थी कुछ मेडिकल बिन्दु थे जिससे गभार्धारण में दिक्कत थी। उस समय सेरोगेसी शब्द सुनने का था पर शायद सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार में इसकी इतनी गुंजाइश नहीं थी तो उस दंपत्ती ने सेरोगेसी की निर्णय नहीं लिया और आज तक वो दोनों बिना संतान के ही हैं और खुश हैं। वैसे मेरा ऐसा मानना है कि मातृत्व सुख पाना महिलाओं का कर्तव्य या त्याग नहीं उनका स्वयं का चुनाव होना चाहिए यदि वो चाहे तो करें या ना करें ।

इन दिनों मातृत्व सुख से ज्यादा बात पितृत्व सुख की हो रही और वो भी सेरोगेट मां के जरिये यानी किराये की कोख के जरिये पिता बनना आजकल कई पुरुषों को रास आ रहा। किसी शारीरिक व्याधि अथवा कष्ट की वजह से यदि कोई स्त्री मां नहीं बन सकती तो वह अपना बच्चा किराए की कोख के जरिये पा सकती है। यूं तो इसकी शुरूआत उन माता-पिता के लिए हुई थी जिनको अपना बच्चा पैदा करने की मुश्किल हो या उस महिला के लिए है जिसका बार-बार गर्भपात हो रहा हो पर आज के परिदृश्य में ये फैशन सा हो रहा। आर्थिक संपन्नता सिर चढ़कर बोलना सेरोगेसी के बढ़ते मामलों से देखा जा सकता है।
भारत में यह दुनिया के और देशों की तुलना में कहीं ज्यादा है। एक सामान्य अनुमान के मुताबिक जहां पूरी दुनिया में एक साल में सेरोगेसी के 500 मामलें आते है वही अकेले भारत में ये आंकडा 300 को छूता है। भारत में इन दिनों ये बयार तेज है अब सेरोगेसी जरूरत या मजबूरी नहीं बल्कि शौक हो गया है। बॉलीवुड में सेरोगेसी की धमक है। अभिनेता अभिनेत्री इन दिनों इसे चलन के तौर पर देख रहें हैं। हमारे और आपको कानों तक उस खेमें की आवाज इसलिए पहुंची क्योकि वो सेलिब्रिटी तबका है उनकी हर बात का प्रमोशन उनके जीवन का हिस्सा है। दूसरी तरफ आर्थिक रूप से संपन्न वो वर्ग जो सेलेब्रिटी तो नहीं है पर उनके बराबर हैसियत वाले हैं वो अब सेरोगेसी को स्टेसस सिंबल के तौर पर ले रहा है। समाज का संभ्रांत वर्ग धनबल पर सेरोगेसी को हल्का कर रहा है। इसकी वजह सही कानून का अभाव भी कह सकते हैं।

दरअसल, किराए की कोख का बाजार हमारे समाज में बहुत तेजी से फलफूल रहा इसका बहुत बड़ा कारण हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति भी है। गरीब और लाचार महिलाएं सेरोगेसी के लिए आसानी से तैयार हो जाती है। सेरोगेसी के जरिए उन्हें अच्छी खासी रकम मिलती है और सेरोगेसी के दौरान इच्छुक दंपत्ती या पक्ष सेरोगेट मां का भरपूर ख्याल भी रखता है। सेरोगेसी से बच्चे पैदा करने वाले एकल पुरुष इन दिनों चर्चा में हैं निश्चित तौर पर ये उनका व्यक्तिगत निर्णय है लेकिन एक शिशु को किराए पर पैदा करवा के लाना और जन्में हर शिशु को उसकी मौलिक आवश्कताओं से वंचित रखना कहां तक सही कहा जाएगा।

एकल पुरुष जो चलन या फैशन में सेरोगेट बच्चा कर लेंगे वो नन्हें शिशु को ममता की छांव कैसे दे पाएंगे कैसे भली भांति उसका पालन पोषण कर पाएंगें। अमृतपान (स्तनपान) जो बच्चे के लिए जरुरी है कैसे संभव हो पाएंगा। 9 महिने कोख में रखने वाली के स्पर्श को वो बच्चा कैसे महसूस करेगा। एक पूर्ण शिशु का जन्म तब माना जाएगा जब जन्म के साथ ही उसके साथ न्याय हो। इस विषय पर बहुत गंभीरता से सोचने की जरुरत है जिसे सिर्फ कोई सेरोगेट मां या कोई दंपत्ती नहीं बल्कि ड़ॉक्टर, वकील और कानून बनाने वाली सरकार मिलकर काम करना होगा।

साल 2016 में सेरोगेसी रेगिलेशन बिल आया जिसमें कमर्शियल सेरोगेसी को प्रतिबंधित किया गया और निस्वार्थ सेरोगेसी की अनुमति दी गई और भी कई प्रावधान किए गये जैसे मजिस्ट्रेट की अनुमति,इनफरलिटी का सर्टीफिकेट और कई सारे प्रावधान लेकिन इस कानून का पालन हो रहा या नहीं इस पर सख्ती से पैनी नजर नहींं है जिससे धड़ल्ले से आम से लेकर खास तक इसका दुरुपयोग कर रहा है। वाकई आज एकल पुरुष जिस तरह से अपनी मर्दानगी का प्रमाण पत्र सेरोगेट शिशुओं को बना रहे ये बेहद चिंताजनक विषय है और इस पर कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है साथ ही बड़े जागरुकता अभियान की भी।