राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

इंसान के बाद इंसानियत को खाता कोरोना

राष्ट्रनायक न्यूज। पुरानी कहावत है, महामारी हो या फिर कोई प्राकृतिक आपदा, जल प्रलय हो या फिर अकाल इंसानों को तो खा ही जाती है लेकिन साथ ही इंसानियत को भी खा जाती है। कभी-कभी आपदाओं के दौरान भीड़ तंत्र आत्मघाती साबित होता है। संकट के समय मनुष्य अपना विवेक खो देता है। धनी और सम्पन्न वर्ग तो हर चुनौती को झेल जाता है लेकिन मध्यम और निर्धन वर्ग का जीवन यापन या महामारी से लड़ने में धन और संसाधनों के अभाव में विवेक शून्य हो जाता है। कोरोना की दूसरी लहर में देशभर में संक्रमितों की संख्या दो लाख के पार और राजधानी दिल्ली में संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ने से हर कोई खौफ में है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गुजरात, पंजाब, केरल और दिल्ली में सख्त प्रतिबंध लगा दिए हैं। पूर्णबंदी तो नहीं की गई लेकिन उससे मिलते-जुलते कठोर कदम उठाए गए हैं। इन राज्यों में रात का कर्फ्यू जारी है। सिस्टम की लाचारगी दिखाई दे रही है। अस्पतालों और श्मशानों की तस्वीरें हालात की भयावहता को बता रही है। अस्पतालों में बिस्तरों की कमी, आक्सीजन की कमी और रेमडेविर के इंजैक्शन का अभाव और कालाबाजारी ने सबका दम फुला दिया है। रेमडेसिविर का कृत्रिम अभाव पैदा किया। 1200 रुपए ऐसी कीमत वाली दवाई दस-पन्द्रह हजार में बेची गई। इन सभी परिस्थितियों में कुछ घटनाएं सामने आ रही हैं, जो विचलित कर देने वाली हैं। राज्य सरकारों की तैयारी और संवेदनशीलता को धत्ता बताने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है, जिसमे कोरोना संक्रमित भूतपूर्व सैनिक विनोद सिंह की मौत पटना के एनएमएचसी अस्पताल के बाहर हो गई। पूर्व सैनिक को 90 मिनट तक एम्बूलैंस में इंतजार कराया गया। कोई उन्हें पूछने नहीं आया, क्योकि अस्पताल में डाक्टर और अन्य स्टाफ दौरे पर आए बिहार के स्वास्थ्य मंत्री के साथ थे। महाराष्ट्र के अस्पताल में वार्ड ब्वाय द्वारा आक्सीजन हटा लेने से मरीज ने तड़पते-तड़पते जान दे दी। राजस्थान में वैक्सीन की चोरी और कोरोना संक्रमितों को अपराधियों द्वारा निशाना बनाए जाने की घटनाएं इस बात की ओर इशारा कर रही हैं कि हम किस दिशा की ओर बढ़ रहे हैं। पिछले वर्ष लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा और आर्थिक अपराध सबसे ज्यादा बढ़े। लॉकडाउन के दौरान संक्रमण के मुताबिक इलाकों को रेड, आरेंज और ग्रीन जोन में बांटा गया था। एक अध्ययन में पाया गया कि गम्भीर नियंत्रण वाले रेड जोन में आरेंज और ग्रीन जोन के मुकाबले ज्यादा अपराध हुए। इनमें से ज्यादा अपराध पैसों के मामले से जुड़े थे। ये अपराध नौकरियां जाने और बिजनेस बंद होने से जुड़े थे।

यह तथ्य भी सामने आया कि लॉकडाउन के दौरान श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का इस्तेमाल गैैर कानूनी तम्बाकू की स्मगलिंग के लिए किया गया। इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले वर्ष कोरोना के दौरान डाक्टरों, मेडिकल स्टाफ, पुलिस कर्मचारियों, समाजसेवी संगठनों और धार्मिक संगठनों के कार्यकतार्ओं ने जमीनी स्तर पर बहुत काम किया। लोगों तक न केवल मास्क, सैनेटाइजर्स बल्कि दिन-रात भोजन उपलब्ध कराया। इन कोरोना योद्धाओं के चलते ही कोरोना को नियंत्रण में लाया गया था। लेकिन हमारी लापरवाही के चलते कोरोना के नए वेरिएंट ने इतना जबर्दस्त प्रहार किया कि इस वायरस ने भावनात्मक पहलुु को भी छलनी कर दिया। चाहे अपनों के दुख-दर्द या उत्सव में शामिल होने की बात हो या तीज-त्यौहारों की, डरा-सहमा यह व्यक्ति इसके आगे बेबस है। जान ही नहीं सभ्यता, परम्परा को भी इस वायरस ने अपने आगोश में ले लिया है। अब लग रहा है कि कोरोना काल का सबसे बड़ा संकट अर्थव्यवस्था नहीं इंसानियत है। ऐसे लोग भी दिखाई दिए जिन्होंने शवों की सम्मान के साथ अंत्येष्टि के लिए पूरी व्यवस्था की। अब आलम यह है कि श्मशान के बाहर दिनभर शवों को लेकर घंटों बैठने के बावजूद दलाल सक्रिय हैं।

बाजार में हर चीज महंगी हो रही है। विषम पतिस्तिथियो में जीवन रक्षक दवाएं कम कीमत पर मिलनी चाहिएं लेकिन हमारे यहां ऐसा नहीं हो रहा। ये कौन लोग हैं, जिनकी आत्मा मर चुकी है। हमें पता नहीं हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं और कितना गिरने वाले हैं। हम भारतीय इतने असंवेदनशील कैसे हो सकते हैं। इतिहास गवाह है कि जब भी देश पर संकट आया तो लोगों ने अपना सर्वस्व लुटा दिया। लेकिन अब मौका परस्त लोग आपदा में भी अवसर की तलाश कर रहे हैं। आजादी के 7 दशक पूरे कर लेने के बाद जनता में हम विवेक क्यों नहीं पैदा कर पाए? यह सवाल सबके सामने है। क्यों उसे धार्मिक आयोजनों और चुनावी रैलियों में भीड़ का हिस्सा बनना अपनी जान से ज्यादा कीमती लगता है। जैसे हालात पैदा हो रहे हैं कि उससे तो सामूहिक चेतना पर ही सवाल उठने लगे हैं। आस्था पूरी तरह से व्यक्तिगत विषय है लेकिन जीवित रहोगे तो तभी उत्सव मना पाओगे। आने वाले दिनों में अगर रोजाना संक्रमण के केसों की संख्या तीन लाख तक पहुंच गई तो उस अराजक स्थिति की कल्पना कर लीजिए। तब लोगों की हताशा और भी गम्भीर हो जाएगी और अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो जाएगा। इसलिए इंसानियत को बचाना बहुत जरूरी है।

You may have missed