राष्ट्रनाक न्यूज। हीमोफीलिया की किसमें-हीमोपफीलिया आम तौर पर दो तरह का होता है। जिसे हीमोफीलिया ए और बी कहा जाता है। जब कोई व्यक्ति हीमोपफीलिया ए से ग्रसित हो जाता है तो उसके अंदर मुख्य तौर पर factor 8 की कमी पाई जाती है। हीमोपफीलिया factor 9 की कमी हो जाती है। हीमोपफीलिया को Christmas Disease के नाम से भी जाना जाता है। यह दोनों तत्व खून का थक्का जमाने वाले प्रोटीन ही हैं। जिसके लिए मुख्य तौर पर ग् क्रोमोसोम जिम्मेवार होता है। डॉकटरों के अनुसार हीमोपफीलिया ए व बी के लिए यही ग् क्रोमोसोम ही मुख्य कारक है। जैसा कि हमें विध्ति है कि महिलाओं में सिर्पफ ग् क्रोमोसोम ही पाये जाते हैं। जबकि पुरुषों में ग् व ल् दोंनो ही तरह के गुणसूत्रा पाए जाते हैं। अगर किसी की संतान बेटा है तो उसमें ग् गुणसूत्रा माता की ओर से व ल् गुणसूत्रा पिता की ओर से आता है। इन्हीं गुणसूत्रों के द्वारा बच्चे का लिंग निर्धरित होता है। जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि क्रोमोसोम में ही हीमोपफीलिया पैदा करने वाले जीन्स पाए जाते हैं। महिलाएँ इस रोग में Transmitter होती हैं। बेटे को ग् गुणसूत्रा माँ से मिलता है और ल् गुणसूत्रा पिता से। यदि ग् गुणसूत्रा हीमोपफीलिया से ग्रसित हो तो बेटे को निश्चित ही हीमोपफीलिया हो जाएगा। परंतु बेटी में गुणसूत्रा भी पिता से मिलता है। यानि माँ का ग् और पिता का ग् मिलकर ही बेटी को जन्म देते हैं। और यदि माँ की तरपफ से आने वाला ग् गुणसूत्रा हीमोफीलिया से ग्रसित हो और पिता की तरपफ से आने वाला गुणसूत्रा हीमोपफीलिया से संक्रमित नहीं है तो पिफर बेटी को यह रोग नहीं होगा। पिता से यह बीमारी बच्चों को नहीं होती। हीमोफीलिया एऔर बी दोंनो में ही रक्तस्राव ज्यादा होता है।
यह बलीडिंग आंतरिक रूप से जोड़ों और मासपेशियों में या मामूली चोट या कट लगने पर होती है। जो लोग हीमोपफीलिया से पीड़ित होते हैं उनमें आम लोगों की तुलना में ज्यादा देर तक रक्त बहता रहता है। कई बार दाँत निकलवाते समय भी यह खून आना बंद नहीं होता और व्यक्ति के लिए घातक होता है। किस व्यक्ति को किस अनुपात में रक्तस्राव होता है, यह उसके रोग की गंभीरता व ब्लड प्लाज्मा में स्थित 8 और 9 प्रोटीन पफैक्टर पर भी निर्भर करता है।
यहाँ हमने दो तरह के हीमोपफीलिया की बात की लेकिन ब् जलचम का हीमोफीलिया भी होता है जिसके लिए मुख्य तौर पर पैफक्टर 11 ;क्लोटिंग प्रोटीनद्ध जिम्मेवार होता हैं। इस रोग की पहली बार पहचान 1954 में तब हुई थी जब किसी मरीज का दाँत निकालने के उपरांत उसका रक्त बहना बंद नहीं हुआ था। आम तौर पर 100,000 लोगों में हीमोपफीलिया सी की बीमारी पाई जाती है। शरीर के अंदर पफैक्टर 11 की कमी अनुवांशिक कमी से होती है, भाव माता पिता के भीतर ऐसा जीन पाया जाता है जो बच्चे के अंदर इस बीमारी को पैदा करेगा। आखिर हमें कैसे पता चले कि हम य हमारा कोई जानकार इस बीमारी से ग्रसित है।
आईए इस गंभीर समस्या के लक्ष्णों के बारे में जानते हैं-
1. रोगी के शरीर पर आम तौर पर नीले रंग के चकते बन जाते हैं। नाक से निरंतर खून बहते रहना, मल में खून आना।
2. रोगी की आँखों से अचानक ही खून बहना शुरू हो जाता है।
3. रोगी के जोड़ों में सोजिश आ जाती है। व रक्तस्राव होने लगता है।
4. रोगी बिल्कुल कमजोर हो जाता है उसे चलने पिफरने में भी तकलीपफ होने लगती है।
5. रोगी के दिमाग में भी रक्तस्राव हो जाता है। जिसके चलते रोगी के सिर में भी सोजिश आ जाती है।
6. किसी भी चोट या जख्म से खून रुक-रुक कर बहने लग जाता है। लंबे समय तक जख्मों से खून बहते रहना भी इसी के लक्ष्णों में शुमार है।
7. कई बार अचानक किसी वजह से मुँह के अंदर कट लगने या पिफर दाँत निकालते वक्त रक्त बहने लगता है जो पिफर रुकता ही नहीं।
जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि हीमोपफीलिया एक गंभीर रोग है। इसलिए जनमानस को हीमोपफीलिया रोग की गंभीरता व इससे बचाव हेतु 1989 से संपूर्ण विश्व में विश्व हीमाफीलिया दिवस मनाने की शुरूआत की गई। और तब से ‘वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफीलिया के पुरोध प्रफैंक केनबेल के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में ‘17 अप्रैल’ को विश्व हीमोपफीलिया दिवस मनाया जाता है। चिकित्सा-चिकित्सा क्षेत्रा ने अब बहुत उन्नति कर ली है। आजकल हीमोफीलिया का इलाज पफैक्टर रिप्लेसमेंट थेरेपी के द्वारा किया जाता है। जिसके तहत क्लोटिंग पफैक्टर 8, 9 और 11 को इंजैक्शन के द्वारा रोगी को दिया जाता है।
2. रोगी को Desmopressin हार्मोन का इंजैक्शन दिया जाता है। जो हल्के हीमोफीलिया में रोगी के अंदर क्लोटिंग प्रोटीनस बनाने में मदद करता है।
3. ब्लड क्लॉटस को विकसित करने वाली anti-fibrinolytics दवाईयाँ भी रोगी को दी जाती हैं।


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