लेखक: अहमद अली
आज अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस है। आईये इस सुबह की पहली किरण को नमन करें। त्याग, बलिदान और शहादत का जामा पहने हुए और विजय का परचम लहराते हुए, यह एक ऐसा दिवस है, जो हमें हर संकट की घडी़ में तन कर खडे़ रहने तथा मुकाबला करने के लिये हौसला और ताकत देता है। आज न केवल शिकागो के शहीदों को स्मरण करने का, उनकी शहादत को सम्मान देने का, उनसे प्रेरणा हासिल करने का समय है बल्कि उन तमाम करोड़ों मजदूरों के श्रम और बलिदान को भी सलाम करने का दिन है, जिनके बदौलत एक बेहतर, उन्नत ,सभ्य और विकासमयी जिन्दगी हमें नसीब हुआ हैं। ये बात दूसरी है कि आज मानवता के दुशमन- पूँजीखोरों ने इन्सान को नरक के मुहाने तक धकेल दिया है।
शिकागो का संघर्ष केवल काम के घंटों को कम कर आठ घंटा निर्धारित करने तक ही सीमित नही था, वरण श्रम स्वाभिमान का भी संघर्ष था, जो आज भी पूरी तरह सामयिक है।मई दिवस आज सारे संसार में मजदूरों की अन्तर्राष्ट्रीय एकता और संघर्ष को गति देने हेतु संकल्प दुहराने का दिवस भी है। यह दिवस हमारी यकीन को और पुखता करता है कि शाषक – शोषक वर्ग चाहे लाख कोशिश कर लें, भांज लें दमन की तलवारें भी, मजदूर – एकता की हुंकार के सामने टिक नहीं पाते। जनता के अधिकारों को छीनने के उनके सारे प्रयास धराशायी हो जाते हैं।
आज मई दिवस की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ गयी है, जब हमारा शासक वर्ग आपदा में अवसर की तलाश कर रहा है।अवसर मजदूर हित का नहीं। अवसर किसान-मजदूरों के शोषण का। पिछली कोरोना आपदा काल में श्रम कानूनों में संशोधन कर 12 घंटा श्रम कानून बना डाला। इतना ही नहीं पूरा विश्व जब वायरस से दो चार हो रहा था, उसी अवधि में अडानी अम्बानी दुलरुओं के लिये, किसानों को लूटने वाले तीन काले कानून भी बना डाले, जिसके विरुद्ध संघर्ष आज भी जारी है। आज भारत फिर एक बार पिछले वर्ष से कई गुणा अधिक वायरस के चपेट में है।आक्सीजन का सर्वथा अभाव है। मरने वालों की संख्या पहले से कई गुणा ज्यादा है। और सरकार किसान आन्दोलन को कुचलने का अवसर तलाश रही है। कल कारखाने बन्द होने के चलते एक बार फिर रोजगार खत्म होने लगें हैं। भूखमरी मजदूरों के सामने मुँह बाए खडी़ होना शुरु हो गयी है। हजारों की संख्या में रोज पलायन भी हो रहा है।
शासक वर्ग की गैरजिम्मेवारी, संगदीली,अदूरदर्शिता और बदइन्तजामी का खामियाजा अपने देश के मजदूरों को ही भुगतना पड़ रहा है। कारखानों के मालिक जहाँ थे, वहाँ हैं ही, लेकिन श्रम बेचने वाले श्रमिक जो लाखों की संख्या में पलायन का दंश झेलने को मजबूर हैं, उनका, उनके बाल बच्चों का एवं उनके परिवार का भविष्य अनिश्चितता के अंधेरों में भटकता हुआ नजर आ रहा है। और इसलिये महामारी की समाप्ति के बाद हमारे देश के मजदूर वर्ग को उसी हुंकार के साथ उठ खडा़ होना होगा जैसे शिकागों के मजदूरों ने प्रदर्शित किया था। यह स्पष्ट होता जा रहा है कि अर्थव्यवस्था की भरपाई के लिये मेहनतकशों का शोषण और बढ़ने वाला है। यह भी स्पष्ट है कि लाडले कार्पोरेटों की तिजोरियाँ भरती रहेगी लेकिन मजदूरों का पसीना सुखने नहीं दिया जायेगा।
मई दिवस के जांबाज मजदूरों और शहीदों ने” दुनिया के मजदूरों एक हो”
नारे में जो धार पैदा किया था, आज उस धार को कुंद करने का प्रयास जारी है। क्योंकि वो सजग हैं अपने स्वार्थों के प्रति। आज सोंचने का मकाम है कि मजदूर वर्ग क्या जागरुक है, अपने हक और अधिकारों के प्रति ? शोषक वर्ग यह बखुबी समझता है कि बगैर मेहनतकशों की एकता खंडित किये, शोषण को
बरकरार नहीं रखा जा सकता। वो यह भी जानते हैं कि मजदूरों की एकता और इस एकता के बदौलत जारी संघर्ष ने दुनिया में कई मजदूर विरोधी शासन को भी पलट दिया है। अतः वो कौमियत या क्षेत्रियता में श्रमिकों की एकता को तोड़ने की जुगार बैठाते रहते हैं।आज अपनी औकात को जानने एवं यह ज्ञान अर्जित करने का दिन भी है कि मजदूर वर्ग, किसी भी जाति, धर्म और साम्प्रदाय से उपर उठा हुआ विश्व का महानतम और सबसे शक्तिशाली जमात है, जिसके समक्ष दुनिया की सारी ताकतें नम मस्तक हैं।
मजदूर दिवस के इतिहास में यदि हम झाँकें तो पायेंगे कि कई वर्षों के आन्दोलन की चरम परिणति था वह दिन। उस ऐतिहासिक दिवस तक पहुँचाने में कार्ल मार्क्स और ऐंगेल्स की भी बीच के दौर में अहम भूमिका थी। इन दोनों मनीषियों ने ही मजदूर वर्ग को संयुक्त सांगठनिक आन्दोलन का महत्व समझाया था। फिर लाखों मजदूरों ने शाषक वर्ग की यातनाओं के पहाड़ को भी जमीनदोज कर विजय का पताका लहरा दिया। जिसका आनन्द – फल हम ही क्यों सारा जहान भोग रहा हैं। अर्थात आठ घंटा काम, आठ घंटा आराम और आठ घंटा मनोरंजन। अन्यथा कहा जाता है कि उस काल के मजदूर अपने बच्चों को सोये ही में सयाना होते देखते थे। यानी काम के घंटे इतने अधिक थे (14,15 या16 घंटा) कि रात को जब घर आते थे तो उनका बच्चा सो गया रहता था, फिर सोये ही में काम पर निकल जाते थे। कोरोना महामारी के बाद आज फिर 12,13 घंटा काम लेने की घोषणा हमारी सरकार ने कर ही दिया है। अतः भविष्य में श्रमिक वर्ग के सामने कई चुनौतियाँ आने को तैयार हैं। इन चुनौतियों के बीच अस्तित्व रक्षा की चुनौती सबसे कंटीली होगी। अतः आज न केवल मई दिवस के शहीदों को याद करने का दिन है बल्कि उनकी शहादत से प्रेरणा लेकर अपनी एकता को चट्टानी बनाने के लिये संकल्प लेने का वक्त भी है।
आईये संकल्प लें आगामी संघर्ष के लिये और सलाम करे मई दिवस के शहीदों को.
(लेखक के अपने विचार है।)
cpmahamadali@gmail.com
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