उस दानवीर के यश गाथा को मेट सके क्या काल भला ?
- महाराणा प्रताप के सहयोगी दानवीर भामाशाह जयंती पर विशेष
राणा परमार अखिलेश।छपरा, बिहार
” वह धन्य देश की माटी है,
जिसमें भामा-सा लाल पला।
उस दानवीर के यश गाथा को,
मेट सके क्या काल भला? जी हाँ! हम शिद्दत से याद कर रहे हैं एक ऐसे राष्ट्र भक्त को जिसने राष्ट्रवीर हल्दीघाटी के स्वतंत्रता यज्ञ में आपने कई शुरमाओं की आहुति दे दी थी और अभी यज्ञ की पूर्णाहुति शेष थी। धन रूपी समिधा की आवश्यकता थी। हिन्दुआ सूर्य राणा प्रताप का साथ चेतक छोड़ चुका था, भाई जगमाल, भाई शक्ति, चाचा सगर सिंह और तो और चचेरा भाई महिपति सिंह महाबत खां नाम धारण कर लिया था। राणा खेता जैसे चंद भील व राजपूत गम़ खाकर आंसू पी रहे थे। प्रताप सिंह सपरिवार भुखमरी व फांकेमस्ती में आजादी के सपनों को साकार करने का उपाय ढूंढ रहा था। ऐसी स्थिति में मेवाड़ का नगर सेठ व महाराणा परिवार का कोष संरक्षक भामाशाह उपस्थित हुआ। 25 लाख रूपये और 20 लाख अशर्फी सहित मातृभूमि की सेवा में । यद्यपि महाराणा ने स्वीकार करने में स्वयं की असमर्थता जाहिर करते हुए कहा कि आपके पूर्वजों ने मेवाड़ राज्य की सेवा से प्राप्त धन संग्रह किया है,भला मैं कैसे स्वीकार कर लूं? भामा शाह ने विनम्रता से निवेदन किया ‘ हे एकलिंगनाथ के दीवान!हे मेवाड़ नाथ !! मैं आपको कुछ देने की हिम्मत कैसे कर सकता हूँ ।मैं अपनी मातृभूमि को दे रहा हूँ । मातृभूमि उद्धार यज्ञ में आप इस समिधा को स्वीकार करें ।बहरहाल, महाराणा प्रताप सिंह ने दानवीर व मेवाड़ रक्षक संबोधन सहित समिधा स्वीकार करते हुए सेना गठित की और अपने खोए हुए भूभाग पर पुनः अधिकार कर दानवीर भामाशाह को प्रधानमंत्री नियुक्त की।
भामाशाह का जन्म 29 अप्रैल 1547ई को ओसवाल वैश्य जैन परिवार में हुआ था । भामा शाह के पिता भारमल्ल व माता कर्पूर देवी थी। महाराणा संग्राम सिंह के शासन काल में भारमल्ल रणधम्भोर किला के किलेदार थे। राजनीतिक उत्थान- पतन में भामाशाह कुछ दिन शेरशाह सूरी, इस्लाम शाह के शासन प्रबंधन सहित मेवाड़ के हित चिंतक रहे। 18अप्रैल 1576 में हल्दीघाटी में मुगलों के साथ घमासान संग्राम में मेवाड़ यद्यपि पराजित नहीं हुआ किंतु कुछ भूभाग पर मुगलों का कब्जा जरूर हो गया । मेवाड़ी प्रजा ने खेती बंद कर दी । राणा के छापामार कार्रवाई से मुगलों के हौसले पस्त हो रहे थे। ऐसे में भामाशाह का यह महान धन दान स्वतंत्रता संग्राम में काम आया 50 हजार सेना का गठन रसद और वेतन 25 साल तक निश्चित हो गया। महाराणा प्रताप सिंह की नवीन सैन्य शक्ति ने चितौड़ गढ़ को छोड़ कर सभी गढों पर केसरिया ध्वज लहरा दिया ।प्रधानमंत्री भामाशाह के कुशल प्रबंधन में मेवाड़ की समृद्धि आपस आने लगी 1580 में प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद राणा अमर सिंह तक सेवारत रहे राणा अमर सिंह की सेवा में भामाशाह का पुत्र जीवा शाह रहा। इस बीच मुगल बादशाह अकबर से लेकर जहांगीर व शाहजहाँ के मनसब को ठोकर मारता हुए भामाशाह और उनके वंशज स्वतंत्र मेवाड़ की समृद्धि मे सहायक रहे। आज राजस्थान सरकार भामाशाह सम्मान के तहत लोगों को सम्मानित कर रही है।


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