देश मे लाश ही लाश हो तो कुछ लिखो
तुम भी डरे हताश हो तो कुछ लिखो
मन मौन उदास हो तो कुछ लिखो
दिल मे उल्लास हो तो कुछ लिखो
अपनो की खैर हो तो कुछ लिखो
अपनो मे बैर हो तो कुछ लिखो
नींद सुख चैन हो तो कुछ लिखो
जीवन बेचैन हो तो कुछ लिखो
मानव सुरक्षित हो तो कुछ लिखो
मानवता मूर्छित हो तो कुछ लिखो
देश दहशत मे हो तो कुछ लिखो
राजा मौज मस्त हो तो कुछ लिखो
जन तंत्र त्रस्त हो तो कुछ लिखो
मंत्री संतरी भ्रष्ट हो तो कुछ लिखो
अधिकारी ईमानदार हो तो कुछ लिखो
सरकार हीं गद्दार तो कुछ लिखो
न्याय सिसकने लगे तो कुछ लिखो
न्यायधीश बिकने लगे तो कुछ लिखो
स्वतंत्र पत्रकारिता हो तो कुछ लिखो
मीडिया चाटुकारिता हो तो कुछ लिखो
भगवान को डर हो तो कुछ लिखो
मंदिर मस्जिद बंद हो तो कुछ लिखो
विश्व व्यापी महामारी हो तो कुछ लिखो
पूंजिपतियों का बीमारी हो तो कुछ लिखो
देश को लूटने की तैयारी हो तो कुछ लिखो
सरकार जनता को मारी हो तो कुछ लिखो
विरोध करने मे लाचारी हो तो कुछ लिखो
कोरोना विध्वंशकारी हो तो कुछ लिखो
सिस्टम से उठा विश्वास हो तो कुछ लिखो
लगे कोई न खास हो तो कुछ लिखो
देश मे लाश हीं लाश हो तो कुछ लिखो
तुम भी डरे हताश हो तो कुछ लिखो……
मानवतावादी, लेखक व पत्रकार, बिक्रम चौधरी
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