राष्ट्रनायक न्यूज।
पटना (बिहार)। अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस परिवार के उस महत्व को स्वीकार करना और दुनिया भर के लोगों के परिवारों को प्रभावित करने वाले मुद्दों को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाता है। यह उत्सव इस बात को दर्शाता है कि वैश्विक समुदाय परिवारों को समाज की प्राथमिक इकाइयों के रूप में जोड़ता है। अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस उचित परिस्थितियों को बढ़ावा देने के अलावा परिवारों से हर तरह के संबंधित मुद्दों पर जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए परिस्थितियों का सही मेल प्रदान करता है। परिवार समाज रूपी भवन का एक ईट है। तभी तो ईट से ईट मिलाने से भवन का निर्माण किया जाता है। परिवार के कई सदस्यों को मिलकर एक समाज का निर्माण होता हैं। और समाज में निर्माण में प्रत्येक परिवारों का योगदान होता है। प्रत्येक परिवार का महत्व अलग-अलग होता है। एक-एक परिवार जुड़कर समाज का निर्माण करते हैं।परिवार समाज की पहली इकाई होती है। परिवार में रहकर ही प्रत्येक व्यक्ति का जीवन सुरक्षित तो रहता ही हैं इसके अलावा भविष्य भी सुरक्षित रहता हैं। परिवार यदि खुशहाल हैं। तो जीवन का स्तर भी अच्छा होता हैं। समाज के बाकी लोग भी सीख लेकर आगे बढ़ेंगे। तो समाज और देश आगे बढेगा।
शिक्षित समाज अपने बच्चों और अपनी सुख-सुविधाओं को लेकर होते है जागरूक:
समाज के लोग जैसे होते हैं, वैसा ही समाज का निर्माण होता है। इसका तात्पर्य यह है की यदि समाज शिक्षित है तो वहां के रहने वाले प्रत्येक परिवार भी शिक्षित होगा। क्योंकि वही लोग शिक्षा के महत्व को समझते हैं। उनकी आने वाली पीढ़ी भी शिक्षित होती है। उनका जीवन स्तर उच्च कोटि का होता है। शिक्षा के कारण अच्छाई और बुराई में अंतर यथाशीघ्र समझ में आ जाता हैं। आय का स्रोत कम होने के बावजूद जीवन का स्तर उत्साहवर्धक होता है। खान-पान एवं रहन-सहन इन सभी में शिक्षा का असर साफ़ तौर से दिखता है। शिक्षित समाज के बच्चे तो कम होते हैं। लेकिन वे लोग अपने बच्चों और अपनी सुख-सुविधाओं को लेकर बहुत ज्यादा जागरूक रहते हैं।बच्चों की पढ़ाई से लेकर स्वास्थ्य सुविधाएं तक को लेकर हर समय तत्पर व जागरूक रहते हैं। समाज में लोग एक दूसरे को देख कर अपनी जीवनशैली को बेहतर बनाने में लगे रहते हैं। इसलिए प्रत्येक परिवार को शिक्षित होना एवं शिक्षा के महत्व को समझना बहुत जरूरी होता है। जीवन के महत्व को समझना अतिआवश्यक है। परिवार के प्रत्येक व्यक्ति का जीवन महत्वपूर्ण हैं, इसलिए सभी के जीवन की सुरक्षा, भविष्य, शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सुनिश्चित होनी चाहिए। परिवार में प्रत्येक व्यक्ति को एक-दूसरे का सम्मान और महत्व देना आवश्यक हैं। शिक्षा के महत्व को भी समझा जाना अतिआवश्यक है।
अशिक्षित होने के कारण छोटी-छोटी बचत को महत्व नहीं देना आर्थिक रूप होते है कमजोर:
अब बात करते हैं परिवार एवं अशिक्षित समाज की। जहां लोगों का रहन-सहन अस्त-व्यस्त होता है। आय के साधन तो होते हैं लेकिन धन का सदुपयोग करने का ज्ञान नहीं होता हैं। जितनी आय होती है उतना खर्च भी कर देते हैं। अपने भविष्य को महत्व न देते हुए वर्तमान जीवनशैली में जीना पसन्द करते हैं। अशिक्षित होने के कारण यह लोग छोटी-छोटी बचत को महत्व नहीं देते है। जिस कारण यह हमेशा आर्थिक तंगी से गुजरते हैं। यदि इनलोगों ने आज ₹1000 कमाया हैं तो आज के आज ही उसे पूरी तरह से खर्च कर देते है। उसे अगले दिन के लिए बचा कर नहीं रख पाते है। जीवन के प्रति नकारात्मक सोच इन्हे आगे बढ़ने नही देती हैं। वर्ष 2014 में जब +2 उच्च विद्यालय बायसी में कार्यरत थी। वहां मुझे यह अनुभव हुआ कि अशिक्षित लोगों के लिए रुपया और भविष्य का कोई महत्व ही नहीं होता है। एक दिन की बात हैं। वहां पर शौचालय की सफ़ाई करने के लिए एक मेहतर को बुलाया गया था। उसका अगला पिछला हिसाब 1500 का हुआ। हमारे प्रधानाध्यापक जी ने उसे रूपये देते हुए पूछा कि इन रुपयों का क्या करोगे तो उसने जो जबाव दिया उसे सुनकर मैं दंग रह गई। उसने कहा कि मैं इन रूपयो से ढाई किलो मटन खरीद लूंगा और जमकर खाऊंगा। साथ में दारु भी चलेगी। उसके परिवार में पांच या छह लोग ही थे। उसकी सोंच देख कर मैं सन्न रह गई। किसी भी शिक्षित परिवार में इस तरह की सोंच बिल्कुल भी नहीं होती है। आय के हिसाब से बचत के महत्व को पूरा महत्व दिया जाता है।
भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए परिवार का विकसित होना अतिआवश्यक:
देश के विकास के लिए, समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार का विकसित और संपन्न होना अतिआवश्यक हैं।शिक्षित होना, भविष्य में परिवार को महत्व देना, धन को महत्व देना अतिआवश्यक होता हैं। परिवार का जीवन में किस तरह का स्थान होता हैं। उन निम्न स्तर के परिवारों को समझना बहुत जरूरी है क्योंकि निचले स्तर के परिवारों में शिक्षा के अभाव के कारण रिश्तो को भी महत्व नहीं दिया जाता है। माता-पिता आर्थिक तंगी से परेशान रहते हैं और बच्चे माता पिता के लाचारी देखकर बेबस और कुंठित होते हैं। अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं जिसका असर उनके भविष्य पर पड़ता है। जो बच्चे स्थिति परिस्थिति को समझते हैं वह मेहनत कर आगे निकल जाते हैं। कठिन परिस्थितियों में ही सही अपना भविष्य तैयार तो कर लेते हैं। जीवन स्तर में सुधार कर लेते हैं। वहीं कुछ बच्चे कुंठित होकर नकारा साबित हो जाते हैं। कुछ बच्चे दूसरो के बहकावे में आ कर गलत रास्ते पर बढ़ जाते हैं। जिन्हें नशे की लत लग जाती हैं, उसके जीवन की कमी उसके आगे बढ़ने के रास्ते में अवरोध पैदा कर देती हैं। कुछ बच्चे किंकर्तव्यविमूढ़ होकर माता पिता के द्वारा बताये गए रास्तों पर चुपचाप चलते देते हैं, चाहे तरक्की हो या न हो। जिस कारण ऐसे परिवार विकसित नहीं हो पाते हैं। वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण काल में बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है कि निम्न स्तर के परिवार को सरकार द्वारा महत्व दिया जाए। इन्हें बीपीएल कार्ड, गोल्डन कार्ड के अलावा उनका जीवन स्तर कैसे सुधरे। इस दिशा में भी कार्य करने की जरूरत हैं। तभी उनकी दशा व दिशा बदलेगी। सिर्फ मदद करना काफी नहीं होता हैं। बल्कि इन्हे ऐसा रास्ता दिया जाय जहां यह अपनी मदद खुद कर सके। इन्हें उस लायक बनाया जाएं ताकि इनके जीवन स्तर में सुधार हो सके।
परिवार का हर सदस्य शिक्षित होगा तभी वह समाज विकास के रास्ते पर चलेगा:
देश की आज़ादी को 74 वर्ष हो चुके हैं। लेकिन सरकार द्वारा चलाई जानेवाली महत्त्वपूर्ण योजनाओं का लाभ अभी तक संतोषजनक नही हैं। परिवार एवं समाज के विकास के लिए सरकार द्वारा विभिन्न तरह के कार्यक्रम एवं योजनाएं ऊपर से चलकर नीचे तक पहुंच ही नही पाती हैं। राजनीतिक भ्रष्टाचार और नौकशाहों के द्वारा कुव्यवस्था के कारण सही परिणाम निकल कर समाज या धरातल पर उतर नही पाती हैं। सर्वशिक्षा अभियान के तहत अनिवार्य शिक्षा दम तोड़ रही हैं। गरीबी, बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि, परिवार को शिक्षित और विकसित होने में बहुत बड़ी बाधा हैं। देश की विकास के लिए, भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए, समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार का विकसित होना अतिआवश्यक हैं। समाज में ऐसी जागरूकता की आवश्यकता हैं, जिससे समाज से परिवार का विकास हो सके। परिवार के प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित हो। उन्हे रोजगार मिले या स्वरोजगार लेकिन उन्ही के द्वारा खुद को विकसित किया जा सके। भारत सरकार को भी इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाना पड़ेगा। मदद की जगह स्वावलंबी बनाने की दिशा में कार्य करना होगा।
सुनीता कुमारी, स्नातकोत्तर शिक्षिका (हिन्दी) इंटर कॉलेज जिला स्कूल पूर्णिया, बिहार।
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