राष्ट्रनायक न्यूज। प्रजातान्त्रिक शासन प्रणाली में सरकार के हर कदम और फैसले की परीक्षा समाज की सबसे अतिम पंक्ति में खड़े हुए व्यक्ति पर होने वाले उसके असर से होती है। आज जब पूरे देश में कोरोना की दूसरी लहर ने मातम बिखेर रखा है और हालत यह हो गई है कि श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में अपने परिजनों का अन्तिम संस्कार करने के लिए लोगों की कतारें लगी हुई हैं तो उन लोगों पर सबसे पहले नजर जानी चाहिए जो रात-दिन एक करके मृतकों को अन्तिम विदाई देने में तत्परता से लगे हुए हैं। ये लोग श्मशान घाटों में शवों को चिताओं पर रख कर उनके दाह संस्कार की प्रक्रिया पूरी करते हैं और कब्रिस्तानों में खुदाई करके कब्रें बनाते हैं। अपनी जान की परवाह न करते हुए ये लोग इस दर्दनाक समय में अपने-अपने कर्त्तव्य और धर्म का पूरी निष्ठा से पालन कर रहे हैं। मगर सवाल यह है कि इनकी रक्षा कोरोना से कौन करेगा? यह सब जानते हैं कि ऐसे स्थानों पर कार्य करने वाले लोगों की आमदनी अपने परिवारों का भरण-पोषण सही ढंग से करने लायक नहीं होती।
कोरोना बीमारी से मृतकों के शवों की अन्तिम विदाई करने वाले लोगों को क्या ‘कोरोना वारियर’ या कोरोना वीर का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि अपना काम करने के बाद इन्हें जो भी थोड़ा-बहुत समय मिलता है उसमें ये अपने परिवार वालों से भी मिलते-जुलते हैं। सबसे पहले यह बहुत जरूरी है कि देश के सभी अन्तिम विदाई स्थलों पर इन कोरोना वीरों को संक्रमण से दूर रखने के लिए पीपीई किटें मुहैया कराई जायें और अन्य जरूरी सामान दिया जाये। सवाल केवल इनके जीवन की रक्षा का नहीं है बल्कि इनके परिवारों को बचाने का भी है। इसके साथ ही इन्हें उसी प्रकार वैक्सीन लगाने में वरीयता दी जानी चाहिए जिस प्रकार अन्य चिकित्सा कर्मचारियों को दी जा रही है। हैरत की बात तो यह है कि जब पूरे देश में हर 23 सैकेंड में एक व्यक्ति कोरोना से मर रहा है तो हमने अन्तिम विदाई स्थलों की व्यवस्था पर अभी तक नजरें दौड़ाने का काम नहीं किया है। आज स्थिति यह है कि श्मशान घाटों के ये कर्मचारी 24 घंटे में से बीस-बीस घंटे काम कर रहे हैं और तब भी शवों का आना नहीं रुक रहा है। क्या कभी इस बारे में सोचा गया है कि लोग अपने परिजनों के शवों को नदियों में बहाने को क्यों मजबूर हो रहे हैं?
आज भी उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में गंगा की रेत में दफनाये गये लोगों के शव मिले हैं जबकि नदियों में तैरती लाशों का मिलना भी जारी है। यह मानवीय संवेदनाओं के ही दफन होने की स्थिति है। क्या विभिन्न राज्य सरकारें श्मशान घाटों और कब्रिस्तान की व्यवस्था को सुधारने के लिए कुछ नहीं कर सकती? सम्मान के साथ अन्तिम विदाई लेना हर व्यक्ति का मूलभूत अधिकार है। अत: सभी सरकारों को सोचना चाहिए कि इस संकट की घड़ी में परिस्थितियों को कैसे ठीक किया जाये। इस मामले में जिलाधीशों को ये अधिकार दिये जाने चाहिए कि वे अन्तिम विदाई स्थलों के प्रबन्धन को सुचारू करने के लिए आवश्यक कारगर कदम उठायें क्योंकि ऐसे स्थलों पर अन्तिम क्रिया के लिए जिस प्रकार लोग परेशान हो रहे हैं और कुछ बेइमान लोग जिस तरह शोक संतृप्त लोगों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं उससे उन्हें मुक्ति मिल सके। हिन्दू समाज में एक तरफ जहां ब्राह्मण अन्तिम क्रिया को अंजाम देता है वहीं अन्य जरूरी कामों के लिए दुर्भाग्य से समाज के सबसे कमजोर तबके के लोग ही लगे होते हैं। अत: अन्तिम धार्मिक विधान पूरा करने वाले ब्राह्मण के भी कोरोना से मुक्त करने के इंतजाम पुख्ता किए जाने चा?हिए।
इसी प्रकार की व्यवस्था कब्रिस्तानों में भी होनी चाहिए। आज हालत यह हो गई है कि कोरोना से मृत व्यक्ति के शव को घर से श्मशान घाट तक ले जाने के लिए न एंबुलेंस मिल रही है और न लोग मिल रहे हैं। यह काम करने के लिए कई समाजसेवी संस्थाएं व लोग आगे आ रहे हैं। इसके साथ ही हमें सफाई कर्मचारियों की तरफ भी ध्यान देना होगा और उन्हें कोरोना वीरों के समान सम्मान देते हुए उन्हें वैक्सीन लगाने पर वरियता देनी होगी। ऐसा करके हम उन पर कोई उपकार नहीं करेंगे बल्कि समाज की सुरक्षा के लिए ही काम करेंगे। समाज के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी ये सफाई कर्मचारी भी ले रहे हैं क्योंकि सर्वत्र सफाई करके वे कोरोना संक्रमण के फैलने में अवरोधक का काम कर रहे हैं। इनकी प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाने का कर्त्तव्य सरकारों का ही है। मगर दिक्कत यह है कि ऐसा काम करने वालों को हमारे समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है। कोरोना ने चुनौती फैंकी है कि हम इनके कार्य को ‘पुण्य कार्य’ के रूप में लें और महसूस करें कि कोई भी कार्य कभी भी छोटा नहीं होता और न उसे करने वाला कोई व्यक्ति छोटा होता है।
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