राष्ट्रनायक न्यूज।
सात वर्ष बाद एक बार फिर इस्राइल और फिलिस्तीन में लगातार हो रहे हवाई हमलों, राकेट हमलों और फायरिंग के बीच दोनों में युद्ध जैसे हालात बन गए हैं। मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस्राइल के राकेट हमलों में 65 से ज्यादा फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, हवाई हमले में फिलिस्तीनी उग्रवादी गुट हमास के 11 शीर्ष कमांडर भी मारे जा चुके हैं। इसके अलावा मरने वालों में दो दर्जन बच्चे भी शामिल हैं। इस्राइली हमले में लगभग चार सौ लोग घायल हैं। इन हमलों में भारतीय महिला सौम्या संतोष की मौत भी हो चुकी है, जो वहां एक वृद्धा की देखभाल करती थी। कई भव्य इमारतें जमींदोज हो चुकी हैं। फिलहाल न तो हमास पीछे हटने को तैयार और न ही इस्राइल। इस लड़ाई ने 2014 के उस विध्वंसक युद्ध की याद दिला दी जो 50 दिन तक चला था।
इस लड़ाई ने इस्राइल में दशकों बाद भयावह यहूदी-अरब हिंसा को जन्म दिया। इस बार भी गाजा पट्टी में हर किसी पर मौत मंडरा रही है, सड़कों पर वीरानी छाई हुई है और हवा में धुएं के गुबार दिखाई दे रहे हैं। एक तरफ पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है। मानवता वायरस से त्रस्त होकर कराह रही है, लेकिन दो देश एक-दूसरे के खून के प्यासे क्यों हो गए? यद्यपि दोनों में दुश्मनी सौ साल से चली आ रही है, लेकिन इस बार जिस विवाद पर हिंसा हुई, वह 73 साल पुराना है। इस्राइली सुप्रीम कोर्ट ने पूर्वी यरुशलम में फिलिस्तीनियों के सात परिवारों को हटाने का आदेश जारी किया था। आदेश में इस्राइल के गठन से पहले 1948 में यहूदी रिलिजन एसोसिएशन के अधीन आने वाले घरों को खाली करने के निर्देश दिए गए थे। इसका पालन करते हुए इस्राइल में स्थित शेख जर्रा नामक जगह में रहने वाले 70 फिलिस्तीनियों को हटा कर यहूदियों को बसाया जाने लगा लेकिन फिलिस्तीनी कोर्ट के इस आदेश से ना खुश थे।
उन्होंने इस विरोध में प्रदर्शन शुरू कर दिए। रमजान महीने के अंतिम शुक्रवार को यरुशलम की मस्जिद अल अम्सा में भारी संख्या में नमाज पढ़ने के लिए मुस्लिम इकट्ठे हुए थे। नमाज के बाद मुस्लिमों ने शेख जर्रा को खाली करने के विरोध में प्रदर्शन शुरू कर दिया और प्रदर्शन हिंसक हो गया। लेकिन असली विवाद तब शुरू हुआ जब इस्राइली पुलिस ने मस्जिद में हैंड ग्रेनेड फैंके। संघर्ष की दूसरी वजह यरुशलम-डे बताया जा रहा है। 1967 में हुए अरब-इस्राइल युद्ध में इस्राइल की जीत के जश्न के रूप में यरुशलम-डे मनाया जाता है। दस मई यानी यरुशलम-डे पर इस्राइली यरुशलम से वेस्टर्न वॉल तक मार्च करते हुए प्रार्थना करते हैं। इस मार्च के दौरान भी हिंसा हुई थी। जर्मन दार्शनिक काल मार्क्स ने एक बार कहा था कि धर्म लोगों के लिए अफीम की तरह है और अफीम के नशे की लत किसी को भी तबाह कर सकती है। ऐसा ही इस्राइल और फिलिस्तीन में हो रहा है। दोनों के लड़ाकों के बीच तनाव चरम है।
फिलिस्तीनी उग्रवादी संगठन का मुख्य उद्देश्य फिलिस्तीन राष्ट्र को फिर से अस्तित्व में लाना और इस्राइल द्वारा छीनी गई जमीन को हासिल करना है, विवाद बरसों पुराना है, संघर्ष नया है। हैरानी की बात तो यह है कि जिस यरुशलम को ईसाई, इस्लाम और यहूदी तीनों ही अपना पवित्र स्थान मानते हैं, सबसे ज्यादा हिंसा यहीं हो रही है। तीनों ही धर्म अपनी शुरूआत की कहानी को बाइबल के पैगम्बर अब्राह्म से जोड़ते हैं। ईसाई धर्म के लोगों का जुड़ाव इस क्षेत्र से इसलिए है क्योंकि वह मानते हैं कि ये वही जगह है जहां कलवारी की पहाड़ी पर यीशू को सूली पर चढ़ाया गया था। उनका मकबरा भी यहीं स्थित है।
मुस्लिमों के लिए यह जगह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि डोम ऑफ रॉक और अल अम्सा मस्जिद यहीं पर स्थित है। ये मस्जिद इस्लाम का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण स्थल है और मुस्लिमों का मानना है कि पैगम्बर मुहम्मद ने यात्रा के दौरान मक्का से यहां तक सफर तय किया था। सभी प्राफेट की आत्माओं के साथ प्रार्थना की थी। इस मस्जिद से कुछ ही कदम की दूरी पर डोम ऑफ रॉक की आधारशिला है। मुस्लिम मानते हैं कि यहीं से पैगम्बर मुहम्मद जन्नत की तरफ गए थे। जबकि यहूदी यरुशलम को इसलिए अपना बताते हैं? क्योंकि उनका मानना है कि यही वो जगह है जहां आधारशिला रख पूरी दुनिया का निर्माण किया गया था और यहीं पर अब्राह्म ने अपने बेटे आई जैक की कुबार्नी दी थी। यहूदियों वाले हिस्से में वेस्टर्न वॉल है, ये दीवार पवित्र मंदिर का अवशेष है। यरुशलम तीन धर्मों के केन्द्र में है लेकिन सारे विवाद भी यहीं से शुरू होते हैं।
मौजूदा विवाद भी यही है कि पूर्वी यरुशलम में यहूदी फिलिस्तीनियों को घर छोड़ने की धमकी देते हैं और वो उन्हें अल अम्सा मस्जिद जाने से भी रोकते हैं। यरुशलम पर 52 बार हमले हो चुके हैं और 44 बार इस पर कब्जा हो चुका है। इस्राइल 1948 में एक राष्ट्र के तौर पर स्थापित हुआ लेकिन मध्य पूर्व के इस्लामिक देशों ने कभी भी मान्यता नहीं दी। हालांकि काफी संघर्ष के बाद तय हुआ कि पश्चिमी यरुशलम के हिस्सों पर इस्राइल का हक होगा और पूर्व यरुशलम के हिस्सों पर जोर्डन का अधिकार होगा। 1967 में जब इस्राइल ने सीरिया, जार्डन और फिलिस्तीनियों से युद्ध लड़ा तो उसने पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक पर भी कब्जा कर लिया। तभी से ही हिंसक टकराव होता आया है।
इस्राइल इस समय काफी शक्तिशाली देश और उसकी एजैंसी मोसाद बहुत कुख्यात है। अमेरिका हमेशा इस्राइल का समर्थक रहा है। राष्ट्रपति बाइडेन ने भी कहा है कि इस्राइल को अपनी रक्षा का अधिकार है। दूसरी तरफ मुस्लिम राष्ट्र भी एकजुट हो रहे हैं। इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी इस्राइल के विरुद्ध बयानबाजी की है। अब यह जरूरी है कि वहां शांति स्थापित हो इसलिए दोनों पक्षों को समझदारी से काम लेना होगा। अगर टकराव की स्थिति रही तो फिर भयंकर युद्ध होने की आशंका है। युद्ध हुआ तो विश्व दो खेमों में बंट जाएगा।
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