राष्ट्रनायक न्यूज।
पूर्णिया (बिहार)। अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस 5 जून 2021 विश्व के सभी मानव जाति को अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस के शुभ अवसर पर बहुत-बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनाएं। अब समय आ गया है, जब प्रत्येक व्यक्ति को इस पर्यावरण के संरक्षण के लिए आगे आना होगा। वर्ना इसका दुष्परिणाम बहुत घातक हो सकता है। जैसा कि वर्तमान में देखा जा रहा है। प्रकृति के द्वारा एक से एक आपदाएं मानव जाति को तबाह करने पर तुली हुई है। यदि हम अभी भी सतर्क नहीं हुए तो हमारा विनाश निश्चित है।
सभ्यता के विकास से पहले मनुष्य का जीवन पशु के समान था। उन्हें जंगलों में रहकर पशुओं की भांति कच्चे फल-फूल खाकर जीवन यापन करना पड़ता था। जंगली जीवों से अपना बचाव करना पड़ता था। भगवान ने मनुष्य को बुद्धि दी और मनुष्य ने धीरे-धीरे अपनी स्थिति के प्रति जागृत होता गया। पहले वह कबीलो में रहना शुरू किया। फिर गांव, शहर, छोटे-छोटे शहरों में रहते हुए महानगरों में
भी उन्होंने अपना ठिकाना तलाश लिया। विकास की डगर पर बढ़ते मनुष्य ने अपनी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम कर लिया। इनकी सुरक्षा दिन प्रतिदिन बढ़ती चली गई। सुख सुविधाएं बढ़ती चली गई। अगर इन सबके बीच में मनुष्यों ने कुछ खोया हैं तो वह पर्यावरण का संरक्षण एवं प्रकृति से दूरी।
कबीलों से महानगर तक के सफर में मनुष्य ने पर्यावरण की बली चढ़ा दी हैं। जंगल से महानगर का सफर तय कर मनुष्य ने सभ्यता का पूर्णरूपेण विकास कर लिया हैं। उसे जंगल और जंगली जीव के खतरो से मुक्ति मिल चुकी हैं।मगर, मनुष्य फिर से हार गया हैं। जिस पर्यावरण की अनदेखी करके मनुष्य ने विकास का सफर तय किया हैं। आज उसी पर्यावरण की कमजोर स्थिति के कारण मनुष्य जीवन संकट में जूझ रहा है। जबकि होना यह चाहिए था, कि मनुष्य अपने विकास के साथ-साथ पर्यावरण का भी विकास करता जाता। पर्यावरण संरक्षण के लिए भी हमारी दैनिक क्रियाओं की तरह इसकी संरक्षण के लिए भी कोई दैनिक क्रिया होनी चाहिए थी।
न्यू ईयर और दिवाली की तरह ही, पर्यावरण संरक्षण के लिए कोई त्यौहार मनाया जाना चाहिए था। जिससे हर किसी के मन में पर्यावरण संरक्षण को लेकर ख़ुशी और जागरूकता होती। हमारे जीवन में प्रत्येक वस्तु, जिसे हम दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं। सारे के सारे हमें पर्यावरण से मिलते है, फिर भी हम प्रकृति की अनदेखी कैसे करते चले गए। सभ्यता के विकास में अगर हानि किसी चीज की हुई तो वह है वह पर्यावरण। सभ्यता का विकास होता गया मनुष्य विकसित होते गए, मनुष्य की जीवन शैली विकसित होती गई। मनुष्य चांद मंगल तक जा पहुंचा। इन सब को हासिल करने के लिए मनुष्य ने पर्यावरण को रौद डाला हैं। प्राकृतिक जीवन को छोड़कर कृत्रिम वातावरण की तरफ बढ़ता गया।
प्रागैतिहासिक काल के मनुष्य वर्तमान में बहुत ज्यादा का अंतर आ गया है। उस स्थिति के हिसाब से हमने पूर्ण विकास कर लिया है। मगर किसी चीज को खोया है तो वह है पर्यावरण। जैसे-जैसे हम विकास करते गये वैसे-वैसे प्रकृति से दूर होते गए। पर्यावरण का ह्रास होता गया। जंगल के जंगल कटते चले गए। गांव विकसित होते गए। शहर विकसित होते गए। जंगलों को काट कर बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां बनी, जंगलों को काटकर खेती की जाने लगी।जनसंख्या वृद्धि के कारण अनाज की आपूर्ति जरूरी थी इसलिए हमने जंगलों को काट कर अनाज का उत्पादन करना हमारी मजबूरी बन गई। कीट नाशक, रासायनिक खाद, सभी के सभी पर्यावरण को क्षति पहुँचा रहे हैं।
हमारे द्वारा किया गया विकास तब पूरा होता, जब हम अपने साथ-साथ इस प्रकृति को ही विकसित करते। इन्हे नुकसान नही पहुंचाते। प्रकृति जिस रूप में थी, उसे उसी रूप में रहने देते। अपने साथ-साथ इस प्रकृति की भी देखभाल करते हैं। ऐसा हुआ होता तो आज पर्यावरण संकट में नही आता और ना ही हमारी जिंदगी खतरे में पड़ती। जितनी प्राकृतिक आपदाएं हो रही हैं वह भी नही होती। अब भी देर नही हुई हैं। पुरे विश्व को इस दिशा में सार्थक पहल करना चाहिए ताकि हमरा जीवन सुखमय व्यतीत हो सकें।
पर्यावरण संरक्षण के लिए पूरे विश्व में 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इसे मनाने की घोषणा सन 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा की गई थी। एक अधिवेशन के दौरान 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा में पर्यावरण पर सम्मेलन आयोजित की गई। जिसके बाद 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया और तब से यह मनाया जा रहा है। लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जा रहा है। सरकार के द्वारा जो प्रयास किए जा रहे हैं वह तो हो ही रहा हैं। मगर हम लोगों की भी जिम्मेदारी बनती हैं कि प्रत्येक व्यक्ति पर्यावरण संरक्षण को लेकर हमारा योगदान हो। मैं प्रकृति प्रेमी हूं। मुझें पेड़, पौधे, हरियाली बहुत ज़्यादा पसंद हैं। यहां तक की मैं ज्यादातर कपड़े भी हरे रंग की ही पहनती हूं। मेरा घर बाजार में होने के कारण घर के आगे पीछे बिल्कुल भी जमीन खाली नही हैं। इसलिए मैं अपनी बागवानी का शौक छत पर पौधे लगाकर करती हूं। मैंने फूल और सब्जियों के पौधे लगाकर घरेलू उपयोग में लाने का प्रयास करती रहती हूं। उनकी देखभाल करना, पानी देना मुझे एक अलग सा शुकुन देता हैं। उन्हे देखकर मन अति प्रसन्न होता हैं। मेरा अनुरोध हैं कि ऐसा हर व्यक्ति को करना चाहिए, जितना संभव हो पेड़ पौधे अपने घर के आसपास लगाये और अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ और सुंदर बनाए।
सुनीता कुमारी, शिक्षिका, हिंदी विभाग, जिला स्कूल, पूर्णिया
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