राष्ट्रनायक न्यूज।
लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों के कारण करीब साल भर से ज्यादातर लोग पेशेवर और व्यक्तिगत संबंधों को बनाए रखने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करते रहे हैं। व्हाट्सएप और इसी तरह के दूसरे एप की लोकप्रियता के कारण कई ऐसे मुद्दे सामने आ रहे हैं, जिनके कानूनी परिणाम भी हो सकते हैं। कई व्हाट्सएप समूह में कुछ सदस्य आपत्तिजनक संदेश भेजते हैं। ऐसे में अगर व्हाट्सएप व्यवस्थापक (एडमिन) ऐसे आपत्तिजनक संदेश के खिलाफ कोई कार्रवाई न करे, तो क्या वह कानूनी रूप से जिम्मेदार हो सकता है? क्या वह ऐसे आपत्तिजनक संदेश के लिए परोक्ष तौर पर उत्तरदायी हो सकता है?
हाल ही में मुंबई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने इस असमंजस पर प्रकाश डाला है। एक व्हाट्सएप व्यवस्थापक के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई कि समूह के एक सदस्य ने शिकायतकर्ता के खिलाफ अभद्र व अश्लील भाषा का इस्तेमाल किया था। उसने शिकायत की कि न तो समूह व्यवस्थापक ने ऐसे सदस्य को समूह से हटाया और न ही शिकायतकर्ता से माफी मांगने को कहा। शिकायतकर्ता ने व्हाट्सएप व्यवस्थापक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 354-ए(1)(्र५) (यौन उत्पीड़न), 509 (किसी महिला की लज्जा का अपमान करने के इरादे से शब्द, हावभाव या कार्य) और 107 (किसी बात का दुष्प्रेरण करना) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 के तहत शिकायत दर्ज कराई। धारा 67 में प्रावधान किया गया है कि अगर कोई इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से आपत्तिजनक पोस्ट करता है या फिर उसे शेयर करता है, तो उसके खिलाफ मामला दर्ज किया जा सकता है। जांच पूरी होने पर पुलिस ने आरोप पत्र दायर किया और न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा आरोप तय किए गए।
आरोप तय होने से व्यथित व्हाट्सएप व्यवस्थापक ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इस पर विचार करते हुए अदालत ने कहा कि समूह प्रशासक के पास समूह के किसी सदस्य को हटाने या नए सदस्यों को जोड़ने की सीमित शक्ति होती है। न्यायालय ने यह भी कहा कि व्हाट्सएप व्यवस्थापक के पास समूह पर पोस्ट किए जाने से पहले संदेश को विनियमित करने, मॉडरेट करने या सेंसर करने का कोई अधिकार नहीं है। हालांकि, अगर किसी व्हाट्सएप समूह का सदस्य कोई ऐसा मैसेज पोस्ट करता है, जो कानून के तहत कार्रवाई योग्य है, तो उस सदस्य को कानून के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विशिष्ट दंडात्मक प्रावधान के अभाव में, एक समूह के सदस्य द्वारा पोस्ट किए गए आपत्तिजनक संदेश के लिए एक व्हाट्सएप समूह के व्यवस्थापक को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।
उपरोक्त अवलोकन का अर्थ यह नहीं है कि समूह के व्यवस्थापक सभी परिस्थितियों में किसी भी कानूनी कार्रवाई से पूरी तरह से मुक्त हैं। इस मामले में उच्च न्यायालय ने समूह में किसी सदस्य द्वारा पोस्ट किए गए आपत्तिजनक संदेश के लिए समूह व्यवस्थापक को वैकल्पिक रूप से उत्तरदायी बनाने के लिए कुछ पूर्व शर्तें निर्धारित की हैं। न्यायालय के दिशानिदेर्शों के अनुसार, जब तक यह साबित नहीं हो जाता है कि व्हाट्सएप समूह के सदस्य और व्यवस्थापक की संलिप्तता या पूर्व-व्यवस्थित योजना थी, तब तक उस व्यवस्थापक को आपराधिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।
सिर्फ इसलिए कि एक व्हाट्सएप उपयोगकर्ता समूह व्यवस्थापक के रूप में कार्य कर रहा है, इस आधार पर उसकी संलिप्तता नहीं मानी जा सकती, क्योंकि जब कोई व्यक्ति व्हाट्सएप ग्रुप बनाता है, तो उससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वह समूह के प्रत्येक सदस्य की मानसिकता के बारे में पहले से ही जानकारी रखता है। इस अवलोकन के साथ न्यायालय ने उक्त व्यवस्थापक के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए यह आदेश दिया कि वर्तमान मामले में व्यवस्थापक को आपराधिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। इस फैसले से उन सभी व्हाट्सएप व्यवस्थापकों को बड़ी राहत मिली है, जो व्हाट्सएप समूह पर प्रसारित आपत्तिजनक संदेशों के लिए कानूनी जांच के दायरे में थे।
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