कोरोना कहर: पापी पेट ने अछूत बना दिया, कोरोना महामारी में ना घर के हुए न घाट के ! हे सरकार कुछ तो करों…
अमनौर(सारण)। एक जून की रोटी की तलाश में घर परिवार को छोड़कर प्रदेश निकले हुए थे, हमलोगों को क्या पता एक ऐसा समय भी आएगा कोई किसी का हमदर्द न होगा,पापी पेट ने सबको अछूत बना दिया। कोरोना की ऐसी कहर ना हम घर के हुए ना घाट के ! यह वक्तब्य है उन प्रवासियों का जो घर लौट कर आने के बाद अमनौर पीएचसी के पास स्क्रिनिग जांच के लिए कई घण्टो से डॉ का इंतजार कर रहे थे। दिल्ली,पंजाब, गुहाटी से आये मनोरपुर झखरी गांव के नंदगिरी, प्रिंष कुमार, मनोज गिरी, संजय गिरी, हेला बसौता के शोभन राम, रमेश राम, ढोरलाही कैथल का देवेंद्र राम समेत दर्जनों प्रवासियों ने बताया कि कोई राज मिस्त्री तो कोई कम्पनी में तो कोई ठेला लगाकर प्रदेश में काम करते थे,कोरोना के महामारी से बचाव को लेकर लगाया गया लॉक डाउन के कारण सड़के सुनी हो गई, कम्पनी बन्द पर गई, जितना पैसा पास में था, गुजरा हुआ, बाद में कम्पनी पैसा नही दिया, दुकानदार राशन रोक दिए, मकान मालिक किराया नही मिलने के कारण घर छोड़ने का प्रतेक दिन दबाव बनाया जाने लगा। स्थानीय लोगो को सरकार के द्वारा हर सुविधा वही मिलती थी, हमलोगों को कोई सुबिधा नही मिलती थी,लगता था कि बीमारी से तो बच जाएंगे पर भूख व प्रतारणा से नही बच पाएंगे,इसी वजह से जान जोखिम में डालकर आने को सभी मजबूर है, इनका कहना था कि पेट के लिए परिवार बाल बच्चे को त्याग कर घर से निकले थे, गांव आने के बाद भी अपने लोग भी पराया नजर आ रहे है। यहाँ कोई पूछने वाला नही है। सभी ने बताया कि तीन-तीन हजार रुपया मिलाकर अस्सी हजार में एक ट्रक बुक कर यहाँ पहुचने की बात बताई, कुछ लोग इतने थके हुए थे कि धरती पर उतरते ही सो गए। बिहार सरकार के प्रति सभी ने काफी नाराजगी जाहिर किया। कहा काश इनके बच्चे कहि मजदूरी करते, आज फसे होते, तभी हमारी हालात को शायद नजदीक से समझ जाते, कोरी कागज से सुविधा के नाम पर कोड़ी घोषणा नहीं करते।


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