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आसन्न बिहार विधान सभा चुनाव में कोरोना रेडिकल व जातीय जैसे मिथक को तोड़ पाएगा क्या?

आसन्न बिहार विधान सभा चुनाव में कोरोना रेडिकल व जातीय जैसे मिथक को तोड़ पाएगा क्या ?

  • तुर्क अफगानों व मुगलों की विरासत कांग्रेस तक रही कायम
  • मंडल व कमंडल सियासत में परवान चढ़ाए लालू व मुलायम


राणा परमार अखिलेश ,छपरा(बिहार)
विश्व विध्वंसक कोरोना के कहर से किसी को खोना फिर रोना और देश कोना-कोना जहाँ कोस रहा है, ड्रैगन को। बगवत व इकोनोमी से बचाव का तरीका इजाद कर आवाम का ध्यान लद्दाख की ओर केन्द्रित करना, जहाँ जिंपिंग का लक्ष्य है,वहीं शीतयुद्ध विजेता अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ आसन्न चुनाव में जीत दर्ज कराने के लिए चीन के विरूद्ध आक्रामक व डब्ल्यूएचओ से तालाक तक कर चुके हैं। भारत में सीएए, एनसीआर, शाहिनबाग को सुलगाने का कांग्रेस व वामपंथी कुत्सित प्रयास विफल प्रतीत हो रहा है। कोरोना लाॅक डाऊन और केंद्र ने खजाना खोल रखा है, लाखों की संख्या में प्रवासी बिहारी मजदूरों की वापसी ‘ऐनकेनप्रकारेन’ पाॅजिटिव सहित जारी है। ऐसे यह यह प्रश्न क्या कोरोना रेडिकल कास्टिज्म को तोड़ सबका साथ, सबका विकास व सबका विश्वास स्लोगन की स्वीकृति देगा या निष्प्राण सोशल इंजीनियरिंग में जान फूंकेगा? बहरहाल, इन सब हालातों के मद्देनजर बिहार की राजनीति में कास्ट, कैश व कौम समीकरणों पर दिशा निर्धारित है।
कैरोना ने तोड़ दिया है जाति मजहब को चीन के बुरहानी वायु के तैरते हुए कैरोना की भारत में दस्तक के साथ ही अन्य प्रदेशों में मजदूरी कर रहे बिहारी मजदूरों की जब दरमाहा व दिहाड़ी भी लाॅक डाऊन के साथ लाॅक अप हो गया तो अफरा तफरी मच गई। दिल्ली में संपन्न चुनाव में बिहारी मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी को इसलिए जमकर मतदाता किया कि केजरीवाल सरकार मुफ्त बिजली, पानी, झुग्गी झोपड़ियां का जीर्णोद्धार होगा किंतु दिल्ली की सरकार ने ठगा, राजस्थान, महाराष्ट्र, पंजाब आदि को अपने श्रम से समृद्ध करने वालों को पलायन करने से रोका नहीं। बहरहाल, बिमारियों की औद्योगिक रूप से बीमार व कैरोना की मार से बचने के लिए लाचार कर दिया। अब तक प्रवासी श्रमिकों की संख्या लाखों में पहुंच चुकी है।

कहना न होगा कि बिहारी मजदूरों में सिर्फ बिहारी हैं कोई सवर्ण, पिछड़ा, अतिपिछड़ा, पसमांदा, रार, असराप नहीं। लेकिन बिहार आने के साथ क्वारेटाइन सेंटर पर आवासित जाति उप जाति सुविधा असुविधा को लेकर उलझने लगे। तो क्या प्रति राशन कार्ड धारी को 5 किलो चावल एक किलो दाल, क्वारेंटाइज लोगों पर 3000-4000 रुपये 14 दिन के लिए व्यय, 1000 रुपये राजनीति की दिशा बदल देगा? बिहार के 243 विधान सभा क्षेत्रों में सक्रिय एनडीए व महागठबंधन टिकटार्थियों की गणेश परिक्रमा जातिए बहुल क्षेत्रों या आरक्षित क्षेत्रों तक सीमित नहीं है क्या? फिर कैरोना की भूमिका का कोई अर्थ है क्या?

एक हजार वर्ष का है जातिवादी वृक्ष बेल :

कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था वैदिक काल से राजपूत काल तक रही है। लोक गाथाओं में लोरकायन, आल्हा, सोरठी बृजभार, आदि में रण कौशल, पांडित्य में सभी वर्गों की सहभागिता गायी जाती है। परिमाल रसो में ‘धाँधु धनुआं दो सामंत हैं, चौडा जलहर के सरदार । दंगली बंगली अजयजीत सिंह समरजीत सिंह समर जुझार ।’ वर्णित है तो विवाह व तिलकोत्सव में ‘ मेरऽ बबुआ पढ़ल पंडितवा’ गीत सभी जातियों में गायी जाती है। गीता व मनुस्मृति ‘ जन्मोजायते शुद्रः’ कह कर्मानुसार वर्ण निर्धारण की व्याख्या करता है। वाल्मीकि, विश्वामित्र आदि ऋषि कर्मणा ब्राह्मण थे । तुर्क अफगानों व मुगलों की विरासत को अंग्रेजों ने सींचा, कांग्रेस ने राजनीतिक वृक्षारोपण किया और स्वयंभू समाजवादियों ने फल खाया । साम्यवादियों ने ‘ कलास स्ट्रगल को कास्ट स्ड्रगल’ रूप देकर विद्वेष पैदा की। गैर कांग्रेसनीत सरकारों ने 80 बनाम 20 की राजनीति कर सत्ता हासिल की। आज जातीयता का विद्रूप राष्ट्रवादी विचारधारा के विकास को साम्प्रदायिकता के चश्मे से देख रहा है। ऐसे में कैरोना जैसी महामारी पर विजय भले ही प्राप्त कर लें लेकिन जातीयता की नाव के बिना चुनावी बैतरणी भला कोई दल पार कर सकता है क्या?
ब्रिटिश भारत में एसेम्बली चुनाव जातिगत व धर्मगत आधार पर लड़े गए। टेंपल विश्वविद्यालय, फिलाडेल्फिया,अमरीकाे के प्रोफेसर संजोय चक्रवर्ती ने अपनी पुस्तक ‘ द ट्रूथ अबाउट असःदी पाॅलिटिक्स इंफोरमेंशन फ्राॅम मनु टू मोदी’ में लिखा है कि ” ब्रिटिश भारत में धर्म आधारित मतदाता और स्वतंत्रता भारत में जाति आधारित आरक्षण ने जातिवाद की जड़े मजबूत कर दी।” इसाई मिशनरियों ने 1937 में अपने रिपोर्टों “सेवेंटी टू एसपेसिमेंट ऑफ कास्ट इन इंडिया ” में हिन्दू, सिक्ख, बौध, जैन, पारसी, मुसलमानों में अलग अलग जातियां दर्शाया है। अमरीकी मानव शास्त्री रोनाल्ड इंडेन ने ” कास्ट ऑफ माइंड 2001 ‘ में लिखा है ” जाति अंग्रेजो द्वारा प्रदत्त परिधान है।”
तो समाजवादी चिंतक गोविंद सदाशिव धुर्य कहते हैं ” नकलची ज्ञान के सौदागर चाहते थे कि हम मान लें कि अंग्रेजों के पूर्व जाति व ब्राह्मणवादी आधारित सामाजिक व्यवस्था न्यायपूर्ण थी।” बिहार में ब्रिटिश शासन के दौरान भूमिहार राजपूत, कायस्थ सत्ता संघर्ष में श्री कृष्ण सिंहा प्रधानमंत्री 1936 में बने फिर 1952 से जीवन पर्यंत बने रहे डाॅक्टर अनुग्रह नारायण सिंह वित्त मंत्री ,सरदार हरिहर सिंह, वीपी मंडल, भोला पासवान शास्री महामाया प्रसाद सिंहा केवी सहाय आदि 1968 से लेकर 1971 तक बिहार के मुख्यमंत्री बने। फिर जनता पार्टी शासन में यद्यपि जातिवाद ध्वस्त की राख पर कर्पूरी ठाकुर व रामसुन्दर दास मुख्यमंत्री बने मंडल कमीशन की रिपोर्ट प्रदेश में लागू हुई । कांग्रेस की वापसी में डाॅ जगन्नाथ मिश्र,बिन्देश्वरी दूबे तथा 1989 में वीपी लहर को रोकने के लिए छोटे साहब सत्येंद्र नारायण सिंह मुख्यमंत्री बने।
जनता दल का जातिए समीकरण ‘अजगर’ अहीर जाट, गुर्जर,व मजगर मुस्लिम जाट, गुर्जर, राजपूत में राजा मांडा विश्वनाथ प्रताप सिंह व चंद्रशेखर प्रधानमंत्री भले ही बन गए लेकिन लालू, मुलायम ने 80 बनाम 20 समीकरण पर सत्तासीन रहे । इधर 8 से 9 % कुर्मी 17 % दलित,4 % कुशवाहा को लेकर नितीश, रामविलास ,उपेन्द्र कुशवाहा नेता बन गए । सोशल इंजीनियर नितीश कुमार ने भाजपा से गठबंधन कर 2005 में लालू सल्तनत को ध्वस्त कर दिया । किंतु बीजेपी के पिछड़ा वर्ग के स्वयंभू वैश्य नेता व उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने नीतीश को ‘ पीएम मेटेरिअल’ कह महात्वाकांक्षा बढ़ा दी और गठबंधन टूट गया । 2014 में एनडीए मे लोजपा रालोसपा व भाजपा ने लोकसभा चुनाव में कुल 40 सीटों में 37 जीत कर केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार सत्ता में आयी । किंतु 2015 में बिहार में जातिवादी समीकरण में एनडीए सत्ता से दूर रही। राजद का एमवाई समीकरण ,कांग्रेस, जदयू महागठबंधन की सरकार के मुखिया नितीश कुमार बने,उपमुख्य मंत्री तेजस्वी यादव, स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव बने । यूपीए के मतों का कुल प्रतिशत 43% रहा जिसमें राजद 18,4,% कांग्रेस 6,7% तथा जदयू 16,8% का योगदान रहा । जबकि एनडीए के मतों का कुल प्रतिशत 33%रहा जिसमे बीजेपी 24,4%,लोजपा 4,8% आरएलएसपी 2,4% तथा हम का योगदान 2,2% रहा । आसन्न विधान सभा चुनाव में एमवाई समीकरण अटूट है ,रालोसपा व हिन्दुस्तानी आम आवाम पार्टी, कांग्रेस महागठबंधन में हैं तो भाजपा जदयू लोजपा एनडीए में । वीआईपी, मह मतैक्य नहीं हैं । बहरहाल, किस गठबंधन के पक्ष में मतों का ध्रुवीकरण होगा? कहना जल्दीबाजी होगी । भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल, प्रभारी भूपेन्द्र यादव, केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, पिछड़ा वर्ग के चेहरा हैं । गिरिराज सिंह, विवेक ठाकुर भूमिहार चेहरा है तो आनंद मोहन की रिहाई के बाद राजपूत एक्टिवेट हो सकते हैं । बहरहाल, एनडीए में सीट शेयरिंग 50-50 होगा या 60-40 या महागठबंधन में राजद का 60-40 होगा? निर्भर सीट शेयरिंग पर विशेष है। कैरोना में सफलता सरकार प्रदत्त आर्थिक पैकेज में बिजौलिए की लूट चुनावी मुद्दा बन सकता है। सच तो यह है कि दिल्ली चुनाव में धारा 370 तीन तलाक़ राम मंदिर, प्रभावी नहीं रहा, सवर्णो को 10% आरक्षण का विरोध राजद के लिए घातक तो होगा ही तीन तलाक़ व 370 निष्क्रियकरण बिल में जद यू की बहिर्गमन से मुस्लिम वोट जदयू के पक्ष मे हो यह तो वही कहावत चरितार्थ करता है ” ऊंट चोरी खाई होकर भागना”। रही कैरोना की बातें? समाज का निम्न मध्यम वर्ग, प्राइवेट स्कूलों, वित्त रहित इंटर डिग्री व हाई स्कूलों के लिए प्रदेश सरकार अबतक कुछ कर नहीं पायी है। क्वारेटाइन सेंटरों की व्यवस्था के नाम पर अव्यवस्था की शिकायतें जाहिर हैं । शराब बंदी ,पोलीथिन प्रतिबंध, प्रधानमंत्री आवास योजना में कमीशनखोरी अफसरशाही जैसे मुद्दे विपक्ष के सामने होंगे । फिर भी विपक्ष में अपरिपक्व नेतृत्व केंद्र में कांग्रेस की तरह देखा जा सकता है। पीओके, ऑक्साई चिन पर भारतीय कब्जा और रोजगार सृजन विदेशी कंपनियों का भारत आगमन शायद बिहारी सेंटिमेंट को गोलबंद करने में सफल हो जाए तो आसन्न विधान सभा चुनाव के परिणाम अच्छे हो सकते हैं, कहीं महाराष्ट्र की पुनरावृत्ति हुई तो कुछ कहा नहीं जा सकता । वैसे जदयू नेता राजीव रंजन के अनुसार ” बिहार में जातिगत राजनीति से इंकार नहीं किया जा सकता फिर भी बिहार जाति पांति से ऊपर उठ चुका है।”

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