राष्ट्रनायक न्यूज। अमेरिका में पिछले साल अक्तूबर में कोविड के रोजाना औसतन 63,000 मरीज मिल रहे थे। 23 नवंबर तक यह गिनती बढ़कर 1,73,000 और नौ जनवरी तक 2,65,000 हो गई थी। दूसरी लहर में 11 मार्च को कमी आई, जब गिनती 50,000 से नीचे आई। अमेरिका को भी इस पर काबू पाने में चार महीने से ज्यादा वक्त लग गया। भारत में दूसरी लहर ने मध्य मार्च में जोर पकड़ना शुरू किया और मई की शुरूआत तक यह लगभग खत्म हो गई। भारत में बहुत से लोगों के लिए 20 दिन की अवधि चुनौतीपूर्ण रही। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार के लिए यह समय तेजी से कदम उठाने और हालात पर काबू पाने का था, और भारत ने कई मोर्चों पर काम करते हुए महामारी पर काबू पा लिया।
दूसरी लहर ने उत्तर भारत के शहरों में ऑक्सीजन संकट को भी जन्म दिया, जहां अस्पताल आॅक्सीजन पाने के लिए लंबी आपूर्ति शृंखला पर निर्भर थे। अप्रैल की शुरूआत में मेडिकल ऑक्सीजन की दैनिक मांग पहली लहर के मुकाबले 12 गुना तक बढ़ गई थी। लोग बताते हैं कि दिल्ली में लोगों ने बाजार मूल्य से दो-तीन गुना ऊंचे दाम पर ऑक्सीजन सिलेंडर और ऑक्सीजन कन्संट्रेटर का स्टॉक किया। भारत के पास ऑक्सीजन का भरपूर भंडार था, पर समस्या आपूर्ति की थी। देश में औद्योगिक ऑक्सीजन की पूरी जरूरत का उत्पादन होता है। पर नियमित रूप से विशेष ट्रकों में लिक्विड ऑक्सीजन लाना-ले जाना आसान नहीं था। मोदी सरकार ने सबसे पहले उद्योगों को होने वाली ऑक्सीजन की आपूर्ति का 90 फीसदी (करीब 9,000 टन लिक्विड आॅक्सीजन) मेडिकल जरूरतों के लिए डायवर्ट कर दिया और दूसरे काम के लिए इसके इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी। माना जाता है कि इसके बाद से औद्योगिक आॅक्सीजन इकाइयों से दिल्ली, लखनऊ और अलीगढ़ जैसे शहरों में अस्पतालों को दी जाने वाली आॅक्सीजन की जरूरत का लगभग 80 फीसदी मिलने लगा।
उद्योग समूहों और सार्वजनिक उपक्रमों को पूरी उपलब्ध ऑक्सीजन आपूर्ति को डायवर्ट करने और उत्पादन बढ़ाने के लिए राजी किया गया। विदेश से भी आॅक्सीजन का आयात किया गया। ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए कंटेनर कॉरपोरेशन आॅफ इंडिया और औद्योगिक गैस बनाने वाली कंपनी लिंडे की फैक्टरी के बीच खास ट्रेनों का एक रेलवे सिस्टम बनाया गया। परिवहन में लगने वाला समय कम करने के लिए खाली आॅक्सीजन टैंकरों की वापसी हवाई मार्ग से की। अब सड़कों पर आॅक्सीजन टैंकरों को एंबुलेंस जैसी प्राथमिकता दी जाती है, जबकि डिजिटल ट्रैकिंग सुनिश्चित करती है कि ऑक्सीजन टैंकर कहां तक पहुंचे हैं। पीएम केयर्स फंड का इस्तेमाल एक लाख से ज्यादा ऑक्सीजन कन्संट्रेटर्स खरीदने के लिए किया गया। मई की शुरूआत तक भारत एक दिन में 9,524 टन आॅक्सीजन का उत्पादन करने लगा था। अब ऑक्सीजन की 10,000 मीट्रिक टन रोज की मांग घटकर करीब 3,500 मीट्रिक टन पर आ गई है।
जरूरी दवाओं की मांग में भी ऐसी ही वृद्धि देखी गई। बहुत कारगर मानी गई दवा रेमडेसिविर का मध्य मार्च में 25-30 लाख वायल उत्पादन होता था, दूसरी लहर जब शिखर पर थी, तब इसका उत्पादन बढ़कर 38.8 लाख वायल हो चुका था, जो केंद्र के आदेश और निमार्ताओं को दिए गए प्रोत्साहन से संभव हुआ। फेविपिराविर और आइवरमेक्टिन जैसी दवाओं के उत्पादन में भी ऐसी बढ़ोतरी हुई। वैक्सीन की समस्या से दो मोर्चों पर निपटा गया। एक तो अप्रैल के अंत तक उत्पादन बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने वित्तीय अनुदान और अग्रिम आदेश के साथ वैक्सीन निमार्ताओं से अच्छी साझेदारी बनाई। केंद्र ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ तीन महीने की अवधि के लिए 11 करोड़ डोज के वास्ते 1,732 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान किया; भारत बायोटेक को भी पांच करोड़ डोज के लिए 787 करोड़ रुपये दिए गए।
वैक्सीन के निर्यात पर पाबंदी लगाने के साथ इसकी कीमत तर्कसंगत बनाई गई। वैक्सीन उपलब्ध कराने वाले संस्थानों को खरीद मूल्य से 150 रुपये ज्यादा लेने की इजाजत दी गई। अब केंद्र द्वारा वैक्सीन की खरीद अपने हाथ में लेने का फैसला इसे हासिल करने की मौजूदा मुश्किलें हल करने में दूरगामी कदम साबित होगा, क्योंकि राज्य टीका खरीद पाने में असमर्थ हैं। प्रधानमंत्री ने टीकाकरण कार्यक्रम के तीसरे चरण को आगे बढ़ाकर इसे 18 साल से ऊपर के लोगों के लिए खोल दिया, साथ ही, स्पुतनिक और बायोलॉजिकल ई-वैक्सीन भी हासिल की जा रही है। एक ही दिन (22 जून) में करीब 80 लाख नागरिकों को टीका लगाने के साथ ही हमने टीकाकरण की क्षमता का काफी विस्तार कर लिया है।
प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में कोविड से निपटने के नए मॉडल भी सामने आए। मसलन, लखनऊ में शुरूआती चरण में अस्पताल, क्लीनिक, जांच लैब और स्थानीय आपातकालीन व्यवस्था में बड़े पैमाने पर अड़चनें देखी गईं। मरीजों के लिए होम आइसोलेशन प्रोटोकॉल को मजबूती देने और दवाओं सहित राहत सामग्री की आपूर्ति के लिए प्रशासन ने अपनी रैपिड रिस्पांस टीम (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, आशा वर्कर सहित) तैनात की। दवाओं का वितरण ज्यादा आसान बनाया गया और आइसोलेशन में रह रहे मरीजों से सहानुभूति से पेश आया गया (जैसे उनका घर सील करने से बचना)। सातों दिन-चौबीसों घंटे वाले टेली-कॉलिंग सिस्टम ‘हैलो डॉक्टर’ में ज्यादा डॉक्टरों को शामिल कर इसे मजबूती दी गई, बेड उपलब्धता पर लाइव अपडेट देने के लिए स्थानीय कमांड सेंटर का पुनर्गठन किया गया।
अस्पतालों में मरीज की भर्ती के नियमों में ढील दी गई, तो निजी अस्पतालों द्वारा ज्यादा पैसे लेने पर एफआईआर दर्ज की गई। ऑक्सीजन की बबार्दी रोकने के लिए आॅडिट के साथ रियल टाइम में टैंकरों की निगरानी की गई। इससे उत्तर प्रदेश के शहरों में वैसी अफरातफरी देखने को नहीं मिली, जैसी दिल्ली में एक महीने से अधिक समय तक रही। याद रखना चाहिए कि दूसरी लहर के दौरान विकसित देशों को भी वायरस पर काबू पाने में मुश्किल हुई। जबकि प्रधानमंत्री मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में केंद्र सरकार ने नागरिकों के साथ मिलकर वायरस के फैलाव पर काबू पाने और कर्व को नीचे लाने में बड़ी सफलता हासिल की है। संभावित तीसरी लहर के लिए तैयार होते हुए हमें ये उपलब्धियां याद रखनी होंगी।


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