राष्ट्रनायक न्यूज। मानवीय भूलों का ही परिणाम है कि आज धरती पर जल संकट पैदा हो गया है। लगातार बढ़ता प्रदूषण और जल के संचय का अभाव इसके मुख्य कारण हैं। प्रकृति के साथ हमने बहुत खिलवाड़ कर लिया और इसके गंभीर परिणाम हमें अब धीरे-धीरे देखने को मिल रहे हैं। हर वर्ष लाखों लोग, अधिकतर बच्चे, अपर्याप्त जल आपूर्ति और स्वच्छता की कमी से उत्पन्न होने वाली बीमारियों से मरते हैं। अनुमान है कि 2050 तक दुनिया की एक-चौथाई आबादी संभवत: उन देशों में रहेगी, जहां पानी की गंभीर और बार-बार कमी रहेगी। 1990 से ढाई अरब लोगों को बेहतर पेयजल सुलभ हुआ है, लेकिन अब भी 66.3 करोड़ लोग उससे वंचित हैं।
नीति आयोग ने 2018 की अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि भारत के 75 प्रतिशत घरों को अब तक पाइपलाइन से नहीं जोड़ा गया है। यही नहीं, जल गुणवत्ता में भारत की रैंकिंग 122 देशों में 120वीं है, जो भारत में जल प्रबंधन की समस्या को प्रदर्शित करता है। भारत में विश्व का चार फीसदी पेयजल है। भारत कृषि प्रधान देश है, जहां सिर्फ कृषि में ही 79 प्रतिशत जल का उपयोग होता है। आवश्यकता है कि जल का प्रबंधन ऐसे किया जाए, जिससे कि कम जल में ज्यादा का उत्पादन हो सके। इसके लिए तकनीक का सहारा लिया जा सकता है।
बढ़ती आबादी, तीव्र औद्योगिकीकरण और अनियोजित शहरीकरण में लगातार हो रही वृद्धि से जल प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। अगर हम नदियों, तालाबों आदि को प्रदूषित करते रहे, तो वह दिन दूर नहीं, जब नदियों का पानी बिल्कुल भी उपयोग के लिए लायक न रहे। नदियों में प्रदूषण रोकने के लिए सरकार ने कुछ प्रयास भी किए, जिसका कोई विशेष असर नहीं दिख रहा है। इसके लिए सीवर लगाए गए। उद्योगों में जीरो डिस्चार्ज का प्रयास किया गया, ताकि कचरा नदियों को गंदा न कर सके। लेकिन विभिन्न प्रयासों के बाद भी गंगा में गंदगी जस की तस है। 2017 में राष्ट्रीय नदी जल संरक्षण योजना (एनआरसीपी) ने कहा भी था कि इन प्रयासों के बाद भी गंगा की नगण्य सफाई हुई है।
प्रयासों के असफल होने का कारण था कि सरकार वहां ध्यान नहीं दे पाई, जो प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। नदियां सबसे ज्यादा प्रदूषित उद्योगों से निकलने वाले कचरे से हो रही हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, लॉकडाउन के पूर्व जहां 36 में सिर्फ एक पॉइंट पर ही गंगा स्वच्छ थी, वहीं लॉकडाउन होने पर 36 में 27 पॉइंट पर स्वच्छता दिखी। स्पष्ट है कि नदियों में गंदगी का मुख्य कारण उद्योगों से निकलने वाला कचरा ही है। इस पर काम करने की जरूरत है। इसके लिए हम जर्मनी की राइन नदी से सीख सकते हैं। इसके लिए तकनीक का उपयोग हो। इसे अमली जामा पहनाने के लिए अधिकारियों को जवाबदेह बनाना होगा।
सतत विकास लक्ष्य में 2030 तक, सबके लिए सुरक्षित और किफायती पेयजल सर्वत्र और समान रूप से सुलभ कराने का लक्ष्य रखा गया है। कोरोना काल में इस लक्ष्य को प्राप्त करना बड़ी चुनौती है। सेंटर फॉर साइंस ऐंड एन्वायरमेंट (सीएसई) ने सुरक्षित स्वच्छता और सुरक्षित भविष्य के लिए कुछ सुझाव दिए हैं। इनमें अधिक से अधिक शौचालय स्थलों पर ही स्वच्छता सुविधा उपलब्ध करना एवं मल के उपचार और मल अपशिष्ट के पुन: उपयोग को बढ़ावा देना शामिल है। यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि शहर के बीचो-बीच खुले नालों से निकलने वाले सीवेज को बायोरेमिडेशन तकनीक से शोधित किया जाए। बात नदियों की हो, तो उसमें एक नदी के सभी हिस्सों में पर्यावरणीय प्रवाह अनिवार्य किया जाना चाहिए। शहरों को पानी का इस्तेमाल कम करना चाहिए और पानी के लिए भुगतान करना चाहिए। भारत जैसे बड़े देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए जल प्रबंधन करना अति आवश्यक है। जिस देश में 79 प्रतिशत जल का उपयोग कृषि कार्यों में हो जाता है, वहां हमें कृषि में जल प्रबंधन के बारे में अविलंब कदम उठाने की जरूरत है। पानी की असली कीमत तो वही आदमी बता सकता है, जो रेगिस्तान की तपती धूप से निकल कर आया हो। इसलिए जल संरक्षण के महत्व को सभी व्यक्तियों को समझना होगा और अपनी जिम्मेदारियां निभानी होगी।


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