राष्ट्रनायक न्यूज। पिछले कुछ वर्षों से विश्व के सभी विकसित राष्ट्र भारतीय अर्थव्यवस्था में होने वाले हर उतार-चढ़ाव को बहुत पैनी निगाह से देख-समझ रहे हैं। आज वैश्विक स्तर पर भारतीय अर्थव्यवस्था को उपेक्षित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि भारत एक तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। इसका विशाल मध्यवर्गीय समूह आर्थिक विकास का एक मुख्य केंद्र बिंदु है। भारत की तकरीबन 140 करोड़ की जनसंख्या के अंतर्गत कितना भाग मध्यमवर्गीय समूह का है, इसे वास्तविक रूप में बताना तो बहुत कठिन है। कई शोधार्थियों के अध्ययन के अनुसार, 55 से 65 प्रतिशत जनसंख्या का भाग इस वर्ग से संबंधित है। इस विशाल वर्ग में सरकारी व निजी क्षेत्रों के सालाना 10 लाख रुपये तक की वार्षिक आय के वेतनभोगी व छोटे व्यापारीगण आदि आते हैं। यह शहरी व ग्रामीण अर्थव्यवस्था, दोनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
भारत का यह अपार जनसमूह अपनी आर्थिक क्रय क्षमता के कारण विश्व की सभी नामी-गिरामी कंपनियों का लगातार मुख्य आकर्षण है व उनकी लाभदायकता का मुख्य स्रोत है। इतना सब होने के बावजूद मध्य वर्ग का व्यक्ति सदैव आर्थिक स्तर पर सफलता प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता रहता है, यह प्रश्न सत्य है। चलिए, इसके लिए एक आम व्यक्ति की विभिन्न आर्थिक समस्याओं को समझने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर आज उस व्यक्ति की उम्र 40 से 50 वर्ष के बीच में है, तो उसके जन्म के समय भारतीय अर्थव्यवस्था आजादी के बाद के अपने प्राथमिक चरण में थी। उस दौरान मूलभूत सुविधाओं का विकास शुरू ही हुआ था, इसलिए उस व्यक्ति के जन्म की शुरूआत से ही आर्थिक समस्याएं विद्यमान थीं। अभिभावकों की दूरदर्शिता के कारण वह व्यक्ति न केवल शिक्षित हुआ, अपितु उसने टेक्निकल व प्रोफेशनल योग्यताएं भी हासिल कीं, जिससे उसे रोजगार प्राप्त हुआ तथा उसके अभिभावकों के जीवन का आर्थिक संघर्ष कुछ हद तक कम हुआ। परंतु उस व्यक्ति को उसका मनचाहा रोजगार नहीं मिला, जिसने उसके जीवन में एक नए आर्थिक संघर्ष को पैदा किया।
ऐसा नहीं है कि भारत की सरकारों ने नीतिगत सुधार नहीं किए। 90 के दशक के आर्थिक सुधारों से निजीकरण के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास की गति को बल मिला। आज तीन दशकों के बाद वह व्यक्ति अपना जीवन आर्थिक सफलता के साथ संचालित तो कर रहा है, परंतु अब उसके आर्थिक संघर्ष नए रूप में विद्यमान हो गए हैं। वह व्यक्ति अपने बच्चों के सफल आर्थिक भविष्य के लिए चिंतित है और मात्र गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को ही एक आधार मानता है, जो हकीकत में भारत में अत्यंत महंगी है। पिछले कुछ वर्षों में एक आम व्यक्ति के आर्थिक व्यय उसकी आय की तुलना में अधिक बढ़े हैं। इस कारण वह आय-व्यय में उलझ कर रह गया है और यही उसका अब आर्थिक संघर्ष है।
लगातार बढ़ती महंगाई उसके जीवन में आर्थिक संघर्ष को बड़ा बना देती है। यह दुर्भाग्य ही है कि भिन्न-भिन्न राजनीतिक विचारधाराओं के कारण भारतीय समाज इस पर एक मत नहीं है कि सरकार महंगाई को नियंत्रित कर सकती है। वह व्यक्ति कई दफा इस बात से भी आर्थिक निराशा महसूस करता है कि उसके पास आर्थिक तरलता सदैव कम रहती है, क्योंकि वह विभिन्न प्रकार के करों का भुगतान करता है। वर्ष 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में आयकर का भुगतान करने वाले मात्र 1.46 करोड़ आयकरदाता थे, जिसमें से अधिकतर वेतनभोगी थे, क्योंकि हमारी आयकर की प्रणाली ही कुछ ऐसी है कि वेतनभोगी करों के भुगतान से नहीं बच सकता है।
एक आम भारतीय के जीवन का आर्थिक स्तर पिछले कुछ दशकों में काफी बढ़ा है तथा इसी कारण उसकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं भी लगातार बढ़ रही हैं। सरकारों को चाहिए कि जो वर्ग अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी शक्ति है, उसे नए आर्थिक सुधारों के माध्यम से मुख्यधारा में रखे तथा उसके जीवन को आर्थिक रूप से परिवर्तित करने का प्रयास करे, तभी भारतीय अर्थव्यवस्था व समाज का समग्र विकास संभव हो पाएगा।


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