राष्ट्रनायक न्यूज

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आत्मनिर्भर होने का मतलब, हमें अमेरिका से सीखना होगा

राष्ट्रनायक न्यूज। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान पर सोशल मीडिया और मुख्यधारा के मीडिया में हमारे देश के कुछ लोगों के कटाक्ष और मूर्खतापूर्ण टिप्पणियों को देखना मनोरंजक होने के साथ-साथ कष्टप्रद भी है। आइए, जरा अमेरिका पर नजर डालें, जो द्वितीय विश्व युद्ध से पहले ही एक महाशक्ति के रूप में उभरा था और अब भी है, जिसकी कोई बराबरी नहीं कर पाया है। 2019 में सकल घरेलू उत्पाद के मामले में, अमेरिकी अर्थव्यवस्था (लगभग) 210.44 खरब डॉलर थी, जो एक बड़ी संख्या है! अमेरिका एक ही दिन में महाशक्ति नहीं बन गया। यह दो-तीन पीढ़ियों की कड़ी मेहनत का नतीजा था। लगातार आविष्कार, नवाचार और सरकार के समर्थन ने इसे एक महाशक्ति बना दिया। भारत जैसे विकासशील देश इससे कुछ दिलचस्प सबक सीख सकते हैं।

किसी अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए अच्छे बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होती है और 19वीं शताब्दी की शुरूआत से अमेरिका ने पूरी ईमानदारी से यही किया है। सरकार के साथ कई व्यवसायियों ने इस दिशा में काम किया। रेलमार्ग, जलमार्ग और शिपिंग का विस्तार किया गया। अमेरिकी व्यापारिक घरानों और अमेरिकी दृष्टिकोण के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे सब कुछ बड़े पैमाने पर करते हैं, जो उनके राजमार्गों, गगनचुंबी इमारतों, जहाजों, कारों, टैंकों और बंदूकों में परिलक्षित होता है। अमेरिकी व्यवसायी अच्छी तरह से जानते थे कि बुनियादी ढांचा औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। आविष्कार शुरू हो रहे थे और व्यवसायियों द्वारा आविष्कारों को तुरंत व्यवसाय के अवसर और व्यवसाय मॉडल में बदला जा रहा था।

प्रथम विश्व युद्ध के बाद अमेरिकी प्रशासन ने बड़े पैमाने पर चीजों को सुधारने का फैसला किया। एक आर्मी कॉलेज की स्थापना की गई और अगले दो दशकों तक उन्होंने अपने लिए एक मजबूत सैन्य शक्ति का निर्माण किया। 1850 से 1950 के बीच अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद में तेज वृद्धि देखी गई। 1950 के दौरान पूरी दुनिया के औद्योगिक उत्पादन में इसकी 60 फीसदी हिस्सेदारी थी। 20वीं सदी की शुरूआत के साथ अमेरिकी अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई! दुनिया के औद्योगिक क्षेत्र पर विजय प्राप्त करने के बाद अमेरिका ने अपना ध्यान लगातार बढ़ते प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर केंद्रित किया। उन्होंने इंटरनेट बनाया, जो व्यापार को बढ़ाने के लिए रीढ़ की हड्डी साबित हुआ।

इंटरनेट ने लोगों के काम करने, संवाद करने और व्यापार करने के तरीके को बदल दिया। परोपकार समृद्धि को सक्षम बनाता है और कई अमेरिकी व्यवसायियों ने परोपकार के कार्यों में बढ़-चढ़कर योगदान किया है। शिक्षा, अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में व्यवसायियों द्वारा दिए गए धन ने अमेरिका के विकास में अहम भूमिका निभाई। दुर्भाग्य से भारत में इसकी कमी है। अमेरिका में सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि अपने राष्ट्र के निर्माण के लिए आत्मनिर्भर और कड़ी मेहनत करने का रवैया था। अमेरिका में भी गरीबी, संकट और भुखमरी है। लगभग एक दशक तक अमेरिका में महामंदी रही, लेकिन उसने न तो भीख मांगी और न ही मुफ्त में चीजें मांगी। यही अमेरिकियों और दूसरों में अंतर है। हमारे देश में अगर राजनेता आपसे मुफ्त बिजली, मुफ्त भोजन, मुफ्त टीके, मुफ्त परिवहन और बहुत से झूठे वादे करते हैं, तभी आप उन्हें वोट देते हैं। मैं शर्त लगाता हूं कि अगर कोई राजनेता आपसे ‘मेहनत, आंसू और पसीने’ की बात करेगा, तो वह कभी सत्ता में नहीं आएगा! हमें यूरोपियों और अमेरिकियों की तरह रक्तरंजित युद्ध का सामना नहीं करना पड़ा है।

महात्मा गांधी ने 1930 में चरखा के साथ आत्मनिर्भर अभियान शुरू किया था। इसके पीछे उनका विचार था कि प्रत्येक व्यक्ति को अपना कपड़ा स्वयं बनाना चाहिए और ब्रिटिश वस्तुओं पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। लेकिन यह दर्शन आर्थिक उछाल के लिए नहीं था। यह केवल कपड़ा उद्योग के औद्योगि कीकरण से ही हो सकता है। एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में हमारे नेतृत्व ने बड़े उद्योग शुरू करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां बनाने के बारे में सोचा, क्योंकि तब ऐसा कोई अमीर व्यक्ति नहीं था, जो इतने बड़े संयंत्र को शुरू कर सके। विचार अच्छा था, लेकिन निष्पादन में भावना की कमी थी। सरकार ने अचल संपत्तियों में बड़े पैमाने पर निवेश किया, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप और अधिकांश सार्वजनिक उपक्रमों के प्रमुख नौकरशाह होने के चलते प्रबंधन खराब था। कुछ वर्षों के बाद इसे संचालन के लिए निजी हाथों में सौंप देना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ये गैर-उत्पादकों का सुरक्षित ठिकाना बन गए।
विकसित और आर्थिक रूप से मजबूत राष्ट्रों ने आत्मनिर्भर बनने के लिए लंबे समय तक मेहनत की और पसीना बहाया है। उनकी वर्तमान पीढ़ी उनके पूर्वजों द्वारा की कई मेहनत का फायदा उठा रही है। आपको इसे अर्जित करना है। कोई भी थाली में परोस कर इसे नहीं दे सकता।

चूंकि हम औद्योगिक क्रांति से चूक गए हैं, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विनिर्माण और नवाचार पर पूरा जोर दे रहे हैं। यह कड़ी मेहनत, पसीने और परिश्रम का काम है। हमें अपना दृष्टिकोण बदलने और विनिर्माण क्षेत्र में अधिक उत्पादक बनने की आवश्यकता है। यहां तक कि सॉफ्टवेयर उद्योग में भी हम गूगल, फेसबुक, ट्विटर या व्हाट्स एप जैसे गेम चेंजर आविष्कार या कल्पना करने में विफल रहे हैं। हमारे पास 20 लाख मजबूत आईटी पेशेवर हैं, लेकिन क्या उस क्षेत्र में भी हम आत्मनिर्भर हैं? हमें आसानी से हासिल होने वाले फल प्राप्त करने की आदत है, इसलिए सेवा उद्योग और यहां तक कि सॉफ्टवेयर में भी कोई नवोन्मेषी उत्पाद नहीं बना सके। केवल पश्चिम की सेवा करते रहे।

हम गर्व से कहते हैं कि हमारी 65 फीसदी आबादी 45 वर्ष से कम उम्र की है, लेकिन क्या यह अच्छा नहीं होगा कि जो बड़ा सोच और कर नहीं सकते, वे कम से कम प्रधानमंत्री के साथ तालमेल बिठाएं, जो बड़ा सोचने की हिम्मत करते हैं। आज हमारे पास अमेरिका की तरह केंद्र में एक मजबूत, सुविचारित, समर्पित सरकार है, हमारे पास प्राकृतिक संसाधन हैं, और हमारे पास दिमाग है। बस कमी है, तो नि:स्वार्थ भाव से राष्ट्र को आगे रखकर उसका निर्माण करने के लिए सकारात्मक आशावादी दृष्टिकोण की। अब समय आ गया है कि हम अपने भारत को महान बनाएं।