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आय और आर्थिक स्थिति पर हुआ कोरोना महामारी का असर, लोगों पर बढ़ रहा कर्ज का बोझ

नई दिल्ली, (एजेंसी)। कोरोना महामारी का लोगों की आय और आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ा है। इससे परिवार के स्तर पर कर्ज बढ़ा है और यह वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 37.3 प्रतिशत पहुंच गया जो इससे पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में 32.5 प्रतिशत था। एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि महामारी की दूसरी लहर के कारण कर्ज का यह अनुपात चालू वित्त वर्ष में और बढ़ सकता है।वास्तव में परिवारिक कर्ज का स्तर जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से बढ़ रहा है। इससे पहले, नवंबर 2016 में नोटबंदी लागू की गयी थी। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2017-18 से चार साल में परिवारों परकर्ज का स्तर 7.20 प्रतिशत ऊंचा हुआ है। वित्त वर्ष 2017-18 में यह 30.1 प्रतिशत था, जो 2018-19 में बढ़कर 31.7 प्रतिशत, 2019-20 में 32.5 प्रतिशत और 2020-21 में उछलकर 37.3 प्रतिशत हो गया। परिवार के ऊपर कर्ज में बैंक, क्रेडिट सोसाइटी से लिए गए कर्ज , गैर-बैंकिंग कंपनियों और आवास वित्त कंपनियों से लिये गये खुदरा ऋण, फसल कर्ज और कारोबार को लेकर लिये गये ऋण शामिल हैं।

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) में समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा कि वित्त वर्ष 2020-21 में बैंक जमा में कमी और दूसरी तरफ स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ने से परिवार का कर्ज जीडीपी के अनुपात के रूप में 2021-22 में और बढ़ सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि भारत में जीडीपी के अनुपात में परिवार का कर्ज अन्य देशों के मुकाबले कम है, लेकिन हमें वेतन आय के पूरक के रूप में आय बढ़ाने की आवश्यकता है। अन्य देशों को देखा जाए तो कोरिया में यह 103.8 प्रतिशत, ब्रिटेन में 90 प्रतिशत, अमेरिका में 79.5 प्रतिशत, जापान में 65.3 प्रतिशत, चीन में 61.7 प्रतिशत है। जबकि मेक्सिको में सबसे कम 17.4 प्रतिशत है। हालांकि उन्होंने कहा कि जीडीपी के अनुपात के रूप में 37 प्रतिशत से अधिक कर्ज के बावजूद यह अन्य देशों के मुकाबले कम है। पिछले साल, शुरूआती लॉकडाउन में सभी वाणिज्यिक बैंकें में लोगों की जमा राशि बढ़ी। इसका कारण खर्च करने को लेकर गुंजाइश सीमित थी। हालांकि त्यौहार वाले महीनों में इसमें मामूली गिरावट आयी। कोविड महामारी की पहली लहर (मार्च-दिसंबर 2020) के दौरान 112 जिलों में जमा में 1.06 लाख करोड़ रुपये की कमी आयी।

यह बात विभिन्न राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के 711 जिलों के लिये बैंकों की तरफ से जमा की प्रवृत्ति के बारे में दी गयी जानकारी से सामने आयी। हालांकि इस साल मार्च 2021 से 62 जिलों में जमा में केवल 38,295 करोड़ रुपये की कमी आयी। यह दूसरी लहर के बावजूद आर्थिक गतिविधियों में पुनरूद्धार को बताता है। दूसरी लहर की शुरूआत में बैंकों से बड़े पैमाने पर जमा राशि निकाली गयी। हालांकि इस प्रवृत्ति में अब कमी आयी है। पिछले साल मार्च से दिसंबर के दौरान 599 जिलों में जमाओं में 11,19,776 करोड़ रुपये का इजाफा हुआ जबकि 113 जिलों में 1,06,798 करोड़ रुपये की कमी हुई। परिवार पर बढ़ता कर्ज का मतलब है कि उनकी वित्तीय बचत दर, खपत और स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ने के कारण कम हुई है। रिपोर्ट के अनुसार बैंक जमा में कमी और इलाज तथा अन्य स्वास्थ्य संबंधी खर्चों से 2021-22 में जीडीपी के अनुपात में परिवार के ऊपर कर्ज और बढ़ सकता है।

क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनी (सीआईसी) की एक रिपोर्ट में कहा गया कि देश की कुल 40 करोड़ कामकाजी आबादी के करीब आधे लोग कर्जदार हैं, जिन्होंने कम से कम एक ऋण लिया है या उनके पास क्रेडिट कार्ड है। ट्रांसयूनियन सिबिल की रिपोर्ट के मुताबिक ऋण संस्थान तेजी से नए ग्राहकों के लिहाज से संतृप्ति स्तर के करीब पहुंच रहे हैं। रिपोर्ट में आगे कहा गया कि एक अनुमान के मुताबिक जनवरी 2021 तक भारत की कुल कामकाजी आबादी 40.07 करोड़ थी, जबकि खुदरा ऋण बाजार में 20 करोड़ लोगों ने किसी न किसी रूप में कर्ज लिया है। गौरतलब है कि पिछले एक दशक में बैंकों ने खुदरा ऋण को प्राथमिकता दी, लेकिन महामारी के बाद इस खंड में वृद्धि को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है। सीआईसी के आंकड़ों के मुताबिक ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 18-33 वर्ष की आयु के 40 करोड़ लोगों के बीच कर्ज बाजार की वृद्धि की संभावनाएं हैं और इस खंड में ऋण का प्रसार सिर्फ आठ प्रतिशत है।

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