राष्ट्रनायक न्यूज। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का कार्य आज देश के दूरस्थ स्थानों पर भी पहुंच रहा है। विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता भारत माता की जय – वंदे मातरम के नारे लगाते हैं, लेकिन उनके लिए वह केवल नारे नहीं हैं, वह जीवननिष्ठा है। यही कारण है कि जहां परिषद पहुंचता है, वहां राष्ट्रीयता प्रभावी होती है और अराष्ट्रीय व देशविरोधी ताकतें समाप्त होना प्रारंभ हो जाती है। अभाविप ने २३४ीिल्ल३ ाङ्म१ री५ं, र३४ीिल्ल३ ाङ्म१ ीि५ी’ङ्मस्रेील्ल३ कलामंच, मैडिविजन, एग्रीविजन ऐसे कई प्रकल्प के माध्यम से छात्रों को जोड़ा है। साधारणत: ये धारणा है कि संख्या बढ़ती है तो गुणवत्ता घटती है, लेकिन अभाविप ने 73 साल में यह साबित किया है कि हमारी संख्या के साथ-साथ हमारी द४ं’्र३८ भी बढ़ी है। 73 वर्षों से लगातार युवा पीढ़ी को समाज और देश के प्रति जागृत करने वाला संगठन जो कि छात्रों के द्वारा, छात्र के हित में, छात्रों के लिए बनाया गया है। विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद 9 जुलाई 1949 को स्थापित हुआ, ज्ञान-शील-एकता के मूल मंत्र के साथ आगे बढ़ रहा है। 1947 में जब देश आजाद हुआ तब किसी ने कहा कि छात्र अराजकता फैलाता है, किसी ने कहा कि विद्यार्थी राजनेताओं के पीछे जिंदाबाद मुदार्बाद करने वाली फौज है।
उस समय कई राजनीतिक दलों ने अपने छात्र संगठन भी खड़े किए। एक तरफ वामपंथी हिंसक आंदोलन का भ्रम भी छात्रों को प्रभावित कर रहा था उसी समय विद्यार्थी परिषद ने समस्त छात्र समुदाय को राष्ट्रपुनिर्माण के उद्देश्य को लेकर सामूहिकता के भाव के साथ संगठित किया। परिषद ने कहा कि विद्यार्थी परिषद ने राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की प्रक्रिया को गति देने वाली सु-संस्कारित छात्र शक्ति का निर्माण करने का लक्ष्य लिया। परिषद के स्थापना काल के समय मांगपत्र में तीन प्रमुख मांग थी,जिसमें देश का नाम भारत हो, वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत माना जाए, राष्ट्रभाषा हिंदी हो।
आजादी के बाद लगातार वामपंथी एवं कम्युनिस्ट संगठनों द्वारा तानाशाही और हिंसक क्रूर आंदोलनों को बढ़ावा दिया जा रहा था। वहीं विद्यार्थी परिषद द्वारा लोकतंत्र में विश्वास रखते हुए रचनात्मक कार्यक्रम एवं आंदोलन के लिए युवाओं को प्रेरित किया। जैसे-जैसे विद्यार्थी परिषद का कार्य कैंपस में बढ़ता गया वैसे-वैसे कैंपस से नक्सली एवं वामपंथी विचारधारा के लोग बाहर होते नजर आ रहे थे। महाविद्यालय एवं छात्रावासों में परिषद की सक्रियता से काफी हद तक रैगिंग, गुंडागर्दी का प्रभाव कम हुआ। छात्र आंदोलन जगह-जगह पर हो रहे थे, शिक्षा परिसरों में बढ़ती अव्यवस्था के खिलाफ संपूर्ण समाजजन में असंतोष था। अभाविप लगातार रचनात्मक आंदोलनों के साथ छात्र हित के लिए सतत प्रयासरत था। परिषद ने 1971 के अधिवेशन में अपनी भूमिका को स्पष्ट किया कि छात्र कल का नहीं, अपितु आज का नागरिक है। छात्र शक्ति-राष्ट्र शक्ति है। उस समय राजनीतिक, शैक्षणिक और आर्थिक क्षेत्रों में उस प्रकार की प्रगति नहीं हुई थी। जिस प्रकार की अपेक्षा की गई थी। भारत में कई प्रकार के असंतोष व्यापक थे जिससे विद्यार्थी वर्ग भी काफी परेशान था।
उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा छात्रों के आंदोलन को दबाने का प्रयास किया जा रहा था। 1973 में गुजरात में मेस भोजन को लेकर, बढ़ती महंगाई को लेकर भी लगातार छात्र आंदोलन किए गए। परिषद के कार्यकतार्ओं ने बिहार में भी आंदोलन प्रारंभ किया। परिवर्तन की चाह को लेकर व्यापक आंदोलन किया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा उस आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया गया, लेकिन वह आंदोलन देशव्यापी आंदोलन हो गया। नवनिर्माण आंदोलन जयप्रकाश नारायण जी के नेतृत्व में किया गया। लोकतंत्र पर खतरा मंडरा रहा था लेकिन विद्यार्थी परिषद ने लगातार प्रदर्शन, घेराव, “सरकार ठप करो” आदि आंदोलन लगातार 15 महीने तक चलाएं। 26 जून 1974 को इंदिरा सरकार द्वारा अकस्मात आपातकाल की घोषणा कर दी, कई बड़े नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया। 4 जुलाई को फ.र.र. सहित 27 संगठनों पर बैन लगा दिया गया। उसके बाद विद्यार्थी परिषद ने आपातकाल विरोधी सत्याग्रह खड़ा करने का निर्णय लिया। छात्र आंदोलन की बागडोर परिषद ने संभाली। पूरे देश में आपातकाल हटाओ की मांग उठने लगी। जगह-जगह पर विद्यार्थी परिषद ने टोली बनाकर आपातकाल के खिलाफ आंदोलन प्रारंभ किया। इस आपातकाल में परिषद के लगभग 4500 कार्यकर्ता कारावास में गए।
लगातार चल रहे आंदोलन के बाद आखिरकार आपातकाल हटाना पड़ा। लोकतांत्रिक रूप से चुनाव हुआ और जनता पार्टी के गठबंधन की सरकार बनी। जब सभी छात्र संगठन पार्टियों में विलीन हो गए तब परिषद ने विचार किया कि उसे मूल संकल्पना “राज नहीं समाज बदलना है” इस भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया। “राजनीतिक सत्ता परिवर्तन हुआ लेकिन समाज परिवर्तन का काम विराट है” और हमने पार्टियों में विलीन होने से साफ मना कर दिया। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कार्य किया।
परिषद ने उसके बाद भी लगातार छात्रों से जुड़े मुद्दे जैसे परीक्षा शुल्क व्यवस्था, पाठ्यक्रम, छात्रावास छात्राओं के लिए अलग कक्ष की व्यवस्था, शिक्षक पढ़ाई छात्र पढ़े भ्रष्टाचार एवं असामाजिक तत्वों से मुक्त परिसर आदि के लिए लगातार लड़ाई लड़ी। 1971 में महाविद्यालय में कक्ष, कीड़ा, प्रयोगशाला से लेकर जल तक, शिक्षकों की व्यवस्था आदि ऐसे विषय को लेकर देशभर में “परिसर बचाओ आंदोलन” किया। जिसमें शिक्षा जगत के समस्त छात्रों का समर्थन प्राप्त हुआ। हमारे पाठ्यपुस्तक में जब भी महापुरुषों के अपमान की बात आई परिषद हमेशा संघर्षरत रही है। वही हम राष्ट्रीय मुद्दों की बात करें तो 1974 में असम घुसपैठ के खिलाफ आंदोलन, केरल आंध्र प्रदेश में वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ संघर्ष, चलो-चिकन नेक परिषद 1983 से लगातार बांग्लादेशी घुसपैठियों के विरोध में जागरण एवं आंदोलन चलाती रही। 2007 में परिषद ने बांग्लादेश की सीमाओं पर सर्वे कराया। सर्वे ने कई तथ्य से उजागर किए।
अभाविप ने संकट की गंभीरता को देश के नेताओं एवं सामान्य जनमानस के सामने रखा एवं देशभर में इसके खिलाफ आंदोलन प्रारंभ किया। चिकन नेक क्षेत्र में लगभग 40000 छात्रों के साथ में विद्यार्थी परिषद ने 17 दिसंबर 2008 में आंदोलन किया। 1990 में श्रीनगर में हुए तिरंगे के अपमान के जवाब में “जहां हुआ तिरंगे का अपमान- वहीं करेंगे तिरंगे का सम्मान” नारे के साथ 11 सितंबर 1990 में ऐतिहासिक रैली के माध्यम से देशभर के छात्र श्रीनगर की ओर निकल पड़े, विद्यार्थी परिषद ने जम्मू कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ खड़े होकर राष्ट्र ध्वज के सम्मान में मोर्चा निकाला। छात्र हित के साथ-साथ ऐसे अनेक राष्ट्रीय मुद्दों की ओर विद्यार्थी परिषद ने छात्रों को मार्ग प्रशस्त किया।
महिला सशक्तिकरण के लिए भी विद्यार्थी परिषद ने लगातार कार्य किया। विद्यार्थी परिषद के कार्य में छात्राओं को भी अहम भूमिका में रखा गया एवं मिशन साहसी जैसे अभियान के माध्यम से छात्राओं को आत्मरक्षा के लिए भी पूरे देशभर में अभियान चलाया गया। वर्तमान परिस्थिति की बात करें तो जब वैश्विक महामारी कोरोना से देश संकट में था तब विद्यार्थी परिषद के कार्यकतार्ओं द्वारा देशभर में राहगीरों के लिए भोजन, आवास की व्यवस्था की एवं आरोग्य अभियान के माध्यम से देशभर में जब समाज का हर वर्ग संकट में था ऐसे समय में विद्यार्थी परिषद के कार्यकतार्ओं द्वारा समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए जहां पर डॉक्टरी सुविधा उपलब्ध नहीं हो पा रही थी। ऐसी झुग्गी-बस्तियों में परिषद के कार्यकतार्ओं द्वारा जाकर स्क्रीनिंग, आॅक्सीजन की जांच एवं हल्के लक्षण पाए जाने वाले व्यक्तियों को निशुल्क दवाई वितरित की गई उनके भोजन राशन एवं दैनिक क्रिया के लिए आवश्यक सामग्री का प्रबंधन कराया गया। ऐसे संकट के काल में भी विद्यार्थी परिषद का कार्यकर्ता अपने एवं अपने परिवार की चिंता ना करते हुए यह संपूर्ण समाज मेरा परिवार है इस भाव के साथ कोराना काल में सेवा कार्य करता हुआ नजर आया। “जहां कम-वहां हम” की भूमिका में विद्यार्थी परिषद का प्रत्येक कार्यकर्ता समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इस संकट काल में खड़ा रहा।


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