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यूएई और ओपेक के झगड़े में फंसी तेल पर राहत की हमारी उम्मीदें

नई दिल्ली, (एजेंसी)। देश में पेट्रोल की कीमत कई राज्यों में 100 रुपये प्रति लीटर के पार पहुंच गई हैं। इस बीच पेट्रोलिम उत्पादक देशों के समूह ओपेक और उनके सहयोगी अपेक प्लस के बीच खींचतान ने मुश्किलों और बढ़ा दी हैं। ओपेक के ज्यादातर सदस्य अगस्त से कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं, लेकिन उसमें एक बड़ा सहयोगी संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) इसके उलट उत्पादन में कटौती के करार को दो साल और बढ़ाना चाहता है। ऐसे में भारत की राहत की उम्मीदें अब ओपेक और यूएई के झगड़े में फंस गई हैं।

कच्चे तेल के उत्पादन में यूएई और कटौती चाहता है। उसने 10 लाख बैरल प्रति दिन कटौती करने का ऐलान किया है। इससे कच्चे तेल की कीमतें घटने की बजाय और बढ़ सकती हैं। जबकि पिछले डेढ़ साल में कीमतें 66 डॉलर से 75 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई हैं। जाहिर है कि मांग में तेजी के मुताबिक आपूर्ति नहीं होगी तो कच्चे तेल की कीमतें बढ़ेंगी।

अप्रैल 2020 में दुनियाभर में कोरोना की वजह से लॉकडाउन होने से कच्चे तेल की कीतमें 20 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई थीं जो 18 साल का निम्नतम स्तर है। इसके बाद ओपेक और उसके सहयोगी देशों मे कीमतों में और गिरावट को रोकने के लिए उत्पादन में कटौती का फैसाल किया। इसके लिए एक तय मात्रा में अगले दो साल तक उत्पादन में कटौती पर सहमति बनी। दुनियाभर में टीकाकरण के बाद बाजारों को खुलने से ओपेक को उम्मीद है कि इस साल अगस्त से कच्चे तेल की मांग बढ़ेगी। ऐसे में वह पुराने करार को अब खत्म करना चाहता है। जबकि यूएई उस करार को दो साल और बढ़ाना चाहता है।
ओपेक सदस्य यदि उत्पादन में कटौती के करार को खत्म कर उत्पादन को बढ़ाते हैं तो इससे कच्चे तेल की कीमतें नीचे आएंगी। इससे देश में पेट्रोल-डीजल के भाव घट सकते हैं। पेट्रोलियम उत्पादों के दाम घटने से महंगाई भी नीचे आ सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि पेट्रोलियम उत्पादों का दाम 10 फीसदी बढ़ने से महंगाई करीब एक फीसदी बढ़ जाता है।

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है। भारत अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी आयात करता है। इसमें 83 फीसदी हिस्सेदारी ओपेक और सहयोगी देशों की है। कच्चे तेल के दाम में एक डॉलर की वृद्धि होने पर आयात बिल सालाना 10,700 करोड़ रुपये बढ़ जाता है। वर्ष 2019-20 में भारत का आयात बिल बढ़कर 8.43 लाख करोड़ रुपये हो गया। जबकि 2016-17 में यह 5.42 लाख करोड़ रुपये हो गया।

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