नई दिल्ली, (एजेंसी)। कई बार देखा जाता है कि किसी टैक्सपेयर की मौत के बाद उसका आयकर रिटर्न (आईटीआर) जमा नहीं किया जाता है। आयकर नियमों के मुताबिक हर उस व्यक्ति के लिए आईटीआर अनिवार्य है, जिसकी आमदनी संबंधित वित्त वर्ष में आयकर के दायरे में आती हो, चाहे उसकी मृत्यु भी क्यों न हो गई हो। ऐसे में उस व्यक्ति के आईटीआर भरने की जिम्मेदारी उसके कानूनी वारिस की होती है।
आयकर कानून 1961 की धारा 159 के तहत किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर उसके कानूनी उत्तराधिकारी को टैक्स चुकाने के लिए सबसे पहले आयकर विभाग से संपर्क कर मृतक के कानूनी प्रतिनिधि के रूप में पंजीकृत कराना होता है। इस प्रक्रिया के लिए मृत्यु प्रमाण-पत्र, मृत व्यक्ति का पैन कार्ड, कानूनी वारिस का सेल्फ-अटेस्टेड पैन कार्ड और कानूनी वारिस प्रमाण-पत्र की कॉपी आवश्यक होती है। इसके बाद ही मृत टैक्सपेयर की तरफ से टैक्स रिटर्न फाइल करने की मंजूरी मिलती है।
रिटर्न फाइल करने के लिए बैंक स्टेटमेंट, निवेश के दस्तावेज और अन्य संबंधित दस्तावेजों की जरूरत होती है, ताकि इनकम टैक्स का आंकलन किया जा सके। यदि टैक्सपेयर ने अपने मरने से पहले वसीयत तैयार नहीं कराई है, तो भारतीय उत्तराधिकारी नियम के अनुसार, जिस व्यक्ति का मृतक की संपत्ति पर हक होगा उसके आयकर संबंधी दायित्वों का भी उसे ही पालन करना होगा। व्यक्ति की मौत हो जाने पर उसका पैन रद्द करवाना जरूरी होता है। व्यक्ति का कानूनी वारिस या रिश्तेदार पैन रद्द करने के लिए आयकर विभाग में आवेदन दे सकता है।
नियम के अनुसार, वित्त वर्ष की शुरूआत से मृत्यु होने तक अर्जित आय को मृतक की आय माना जाता है। इसके अलावा अगर मृत्यु से पहले कोई नोटिस जारी होता है, तो उसकी जिम्मेदारी भी उत्तराधिकारी की ही होगी। उसकी कार्रवाई मृत्यु की तारीख से वारिस के खिलाफ जारी रह सकती है। इसीलिए सभी मामले समय पर निपटाना सही रहता है। मृत टैक्सपेयर के लिए टैक्स रिटर्न फाइल करने के बाद आयकर विभाग स्थायी रूप से उस मृत टैक्सपेयर का खाता बंद कर देता है।


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