राष्ट्रनायक न्यूज

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भविष्य को चुनौती देता जनसंख्या विस्फोट, ‘आबादी युद्ध’ में चीन को परास्त कर देगा भारत

राष्ट्रनायक न्यूज। हमारे समय की सबसे विकट समस्या है जनसंख्या विस्फोट। जनसांख्यिकी के अनुसार, मार्च, 2020 तक विश्व की जनसंख्या सात अरब, अस्सी करोड़ हो चुकी है। दुनिया की आबादी को एक अरब तक पहुंचने में बीस लाख वर्ष का समय लगा, परंतु इसे सात अरब तक पहुंचने में केवल 200 साल लगे। पिछले 770 साल में विश्व की जनसंख्या 37 करोड़ से बढ़कर आठ अरब के आसपास जा पहुंची है।अभी 1,44,42,16,107 की जनसंख्या के साथ चीन दुनिया की सर्वाधिक आबादी वाला देश है। दूसरे स्थान पर भारत है, जिसकी कुल जनसंख्या एक जुलाई को अनुमानत: 1,39,19,42,558 हो गई है।

वर्ष 2030 तक भारत एक अरब, 52 करोड़, 80 लाख की आबादी के साथ चीन को पछाड़कर पहले नंबर पर आ जाएगा। चीन का भौगोलिक क्षेत्रफल भारत से तीन गुना अधिक है, फिर भी भारत चीन को ‘आबादी युद्ध’ में परास्त करने जा रहा है। दशकों तक एक संतान की नीति प्रभावशाली तरीके से लागू करते हुए चीन ने अपना आबादी संतुलन स्थापित करने के बाद अब तीन बच्चों की नीति लागू कर दी है। एशिया में चीन की जनसंख्या नीति सबसे प्रभावशाली रही है। इस सफलता के मूल में है चीन में समान नागरिकता कानून, जहां देश को धर्म-मजहब से ऊपर रखा गया है। भारत में नागरिकों के अधिकार धर्म के आधार पर बंटे हैं, जिस कारण जनसंख्या बढ़ाने की होड़-सी लगी है।

जनसंख्या वृद्धि दर के आधार पर दुनिया के देशों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-धनात्मक वृद्धि दर वाले देश, शून्य वृद्धि दर वाले देश और ऋणामक वृद्धि दर वाले देश। दुनिया के 65 फीसदी देशों की जनसंख्या दर धनात्मक है, जिनमें 4.7 फीसदी की वृद्धि दर के साथ ओमान पहले स्थान पर और 4.6, 4.5 और 3.8 फीसदी वृद्धि दर के साथ बहरीन, नॉरू और नाइजर क्रमश: दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर हैं। तेजी से आबादी बढ़ा रहे देशों में भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, इराक, कतर, अफगानिस्तान, कुवैत, लेबनान, जॉर्डन, फलस्तीन आदि हैं। शून्य अथवा स्थिर जनसंख्या वाले देशों में प्रमुख हैं श्रीलंका, म्यांमार, चीन, थाईलैंड, ब्रिटेन, डेनमार्क, आयरलैंड और क्यूबा। घटती जनसंख्या वाले देश दुनिया में केवल 11 प्रतिशत हैं, जिनमें प्रमुख हैं-पुएर्तो रीको, लिथुवानिया, लातविया, बुल्गारिया, यूनान, पोलैंड, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, माल्डोवा, जापान आदि। हम देख सकते हैं कि किस तरह गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार (और यहां तक कि आतंकवाद) जैसी समस्याएं बढ़ती जनसंख्या वाले देश का पीछा कर रहे हैं, जबकि सामाजिक-आर्थिक प्रगति और खुशहाली उन देश की झोली में जा रही है, जो अपनी जनसंख्या को स्थिर बनाए हुए है या उसे घटाने की राह पर है।

देश के लिए सबसे कीमती क्या हो सकता है, जिसकी रक्षा करना सरकार का सर्वोपरि कर्तव्य है? निश्चित रूप से भावी पीढ़ियों का भविष्य। लेकिन भावी पीढ़ियों का भविष्य तो वर्तमान जनसंख्या विस्फोट और असमान नागरिक संहिता ने धूमिल करके रख दिया है। जिस देश की सरकारों के एजेंडे पर जनसंख्या नियंत्रण दूर-दूर तक न हो, जिस देश की सरकारें मजहब को देश के भविष्य से अधिक महत्व देती हो, जहां समान नागरिक संहिता न हो, जिस देश का संविधान मजहब के अनुसार नागरिक अधिकार निर्धारित करता हो, जहां की राजनीतिक पार्टियां धर्म-पंथ को राष्ट्रीयता से ऊपर रखती हो, जिस देश में लोकतंत्र का अर्थ कुछ भी करने की स्वतंत्रता हो, उस देश का भविष्य कैसा होगा, सोचा जा सकता है।

किसी भी देश के सुरक्षित और प्रसन्नता से भरे भविष्य के लिए सबसे अधिक आवश्यक है पारिस्थितिक आवास। पारिस्थितिक आवास की अवधारणा में उन प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यक मात्रा में उपलब्धता निहित है, जो देश की प्रगति के लिए अनिवार्य है, पर जिसका अक्षय विकास पर कोई बुरा प्रभाव न पड़े। दुनिया में हर व्यक्ति को उसके हिस्से का पारिस्थितिक आवास चाहिए, जिसमें वह स्वस्थ-प्रसन्न रह सके, अपनी क्षमता का पूर्ण विकास कर सके और अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित रख सके। पर जनसंख्या विस्फोट वर्तमान के पारिस्थितिक आवास को तो चौपट कर ही रहा है, भविष्य को भी एक अनंत अंधकार में ले जा रहा है। जनसंख्या का विस्तार हमारे पर्यावरण की गुणवत्ता को भी चौपट कर रहा है। पर्यावरण प्रदूषण, रेगिस्तानीतकण, सार्वभौमिक गर्माहट, जलवायु परिवर्तन और जीव-जातियों के विलुप्तिकरण का सबसे बड़ा कारण जनसंख्या विस्फोट ही है।

देश को एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य देना और ऐसे विधि-विधान स्थापित करना, जिससे आशा और शांति से परिपूर्ण तथा अभिनव सृजनशीलता से प्रेरित वातावरण तैयार हो सके, देश के संविधान का धर्म है। उन मूल्यों को कायम करना, जिनसे ऐसे भविष्य का सृजन सुनिश्चित होता हो, किसी भी शासन-प्रशासन का नैतिक कर्तव्य है। जरूरी है कि एक प्रभावशाली जनसंख्या नियंत्रण कानून अति शीघ्र बने। इसको सफल बनाने के लिए आवश्यक समान नागरिक संहिता को संविधान में पिरोना देश, काल और समाज की सर्वोपरि मांग है।

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