प्रवासी मतदाताओं का रूझान किस ओर ?
बिहार सरकार रोजगार दे पाएगी, अपनी घोषणाओं के बाद?
राणा परमार अखिलेश। दिघवारा
छपरा (सारण)। कोविड 19 संक्रमण के बाद देश व्यापी लाॅक डाऊन में हुए बेरोजगार बिहारी मजदूरों की वापसी और क्वारेटाइन सेंटरों की अव्यवस्था फिर बिहार सरकार द्वारा रोजगार देने की घोषणा आसन्न विधान सभा चुनाव को प्रभावित करेगा? यदि हाँ तो रुझान किस ओर होगा? क्या नमो के चेहरे और उपलब्धियों संबंधी पत्र वितरण प्रभावी होंगे? बहरहाल, यदि बिहार की राजग सरकार अपनी घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने में सफल रही और महागठबंधन असंगठित रहा तो संभव है कि प्रवासी मतदाताओं का रुझान एनडीए की ओर आंशिक रूप से हो जाए। सनद रहे कि लाॅक डाऊन 01 के बाद बिहार के बेरोजगार अन्य प्रदेशों से बड़ी बेचैनी, बदहवासी व बदहाली में बिहार वापस लौटे। कोई पैदल, कोई ट्राली से कोई रेल की पटरियों से। फिर ट्रेन सुविधा मिली और क्वारेटाइन सेंटर पर आवासित हुए। क्वारेंटाइन सेंटरों पर कागजी सुव्यवस्था और सच्चाई खबरों की सुर्खियाँ बनीं। कितने तो रास्ते में ही दम तोड़ चुके । प्रश्न उठता है कि क्या इतनी आसानी से लोग भूल पाएंगे?
यद्यपि केंद्र सरकार ने 277 करोड़ रुपये कृषकों के सस्ते केडिट और गरीबों,खाद्य सुरक्षार्थ सीधे बैंक खाते में ट्रांसफर की घोषणा की । धन धन रोजना लाभार्थियों को राशि व रसोई गैस के अलावे खाद्यान्न भी मिल रहे है। प्रवासियों के लिए भी मुफ्त खाद्यान्न वितरण हो रही है ।किंतु 100% तो नहीं कहा जा सकता । यदि क्वारेटाइन सेंटरों में आवासित लोगों के नास्ता, भोजन, वर्तन व वस्त्र आदि में लागत सरकारी व्यय का अकेक्षण व जांच हो तो वस्तु स्थिति स्पष्ट हो जाएगी । बहरहाल, राजग सरकार की प्राथमिकता तो पुनः सरकार की वापसी है और नौकरशाहों पर जांच की आंच भला क्यों आने देना चाहेगी।
जहाँ तक पीएम मोदी के ‘फेस’ का सवाल है ? धारा 370 निष्क्रियकरण, तीन तलाक़, राम मंदिर जैसे मुद्दे के साथ आत्मनिर्भर भारत आदि का प्रभाव प्रभावी होना राजग की दिल्ली, छत्तीसगढ़, राजस्थान मध्य प्रदेश के बाद यह द्वितीय परीक्षा है। राजग की प्रदेश सरकार के 10 वर्षीय सुशासन में रोजगार सृजन तो हुए नहीं । 2015 में महागठबंधन की सरकार को दो वर्षीय काल जंगल राज के विष वृक्ष पोषण ही कहा जा सकता है । फिर राजग सरकार की वापसी में लालफीताशाही के तहत शराबबंदी, बालू उत्खनन पर रोक आपराधिक घटनाएं, शराब माफियाओं की नेटवर्किंग जैसे थे की स्थिति में है । गो कि प्रधानमंत्री विद्युत योजना, उज्जवला योजना आदि उपलब्धि यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । मगर, प्रदेश सरकार की कोई योजना लागू हो पायी क्या? सात निश्चय योजना में नल जल योजना, जल जीवन हरियाली, प्रधानमंत्री आवास योजना में कमीशनखोरी अफसरशाही जैसे मुद्दे जनता की अदालत के कटघरे में नितीश-सरकार को खड़ी कर सकती है। नियोजित शिक्षकों बेमियादी हड़ताल, संस्कृत विद्यालयों की प्रस्वीकृति ,संस्कृत बोर्ड से अच्छे अंकों से उत्तीर्ण छात्रों को प्रोत्साहन राशि से वंचित कर मदरसों का तुष्टिकरण और फोकानिया में अव्वल आए छात्रों को प्रोत्साहन राशि देना। क्या यही राजधर्म है? लिहाजा, संस्कृत शिक्षक व शिक्षकेत्तर संघ के प्रदेश अध्यक्ष पंडित प्रद्योत कुमार मिश्र ने ‘नोटा’ विकल्प का संकल्प सहित अभियान चलाने की घोषणा कर दी है।
बिहार सरकार ने 18 माह के डीएलएड प्रशिक्षित टीईटी का 90,000 नियोजन, नगर प्रबंधकों का नियोजन की तारीख भी तय कर चुकी है। नियोजित शिक्षकों बेमियादी हड़ताल समाप्त हो चुके है। मगर, क्या उनका रुझान राजग की ओर शत प्रतिशत हो सकता है?
जहाँ तक कुशल व अकुशल प्रवासी श्रमिकों को रोजगार देने का सवाल है? प्रदेश मंत्री श्याम रजक ने अपने प्रेस ब्रीफिंग में कहा है कि क्वारेंटाइन सेंटरों वापस लौटे प्रवासी श्रमिकों का मापदंड अंतिम पायदान पर है। अधिक से अधिक 16 लाख कुशल कारीगरों की पहचान कर ली गई है । जो टेलरिंग, कार्पेंटिंग, हैडलूम वर्कर, बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन वर्कर हैं । उन्हें रोजगार मुहैय्या कराने के लिए कंपनियों को पत्र लिखा गया है और अजंता शू व हिंदुस्तान फूड लिमिटेड अपनी ईकाई के लिए तैयार है । श्रम संसाधन मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने अकुशल को कुशल बनाने के लिए प्रशिक्षण की बातें कहीं हैं ।तो पथ निर्माण मंत्री नंद किशोर यादव के अनुसार 5000 मानव शक्ति का उपयोग पथ व पुल निर्माण में पर्यवेक्षक, सर्वेयर, गैस कटर के रूप में होगा और रोजगार मिलेगा । नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा ने नगर विकास योजनाओं में निर्माण कार्य में रोजगार देने की बातें कहीं हैं । क्या यह संभव है कि आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने के पूर्व प्रवासी श्रमिकों को रोजगार मिल पाएगा और बिहार से मजदूरों का अन्य प्रदेशों में पलायन रूक जाएगा? मात्र दो कंपनियां 16 लाख कुशल कारीगरों को रोजगार दे पाएगी? मनरेगा मजदूरों की सूचीकरण पंचायतों में तो है तो फिर अन्य प्रदेशों में पलायन कैसे कर गए? सच तो यह है कि मशीनों से ही काम हो रहे हैं और पंजीकृत मजदूरों व मनरेगा से जुड़े लोगों के बीच ही राशि का बंदरबाट जारी है। ऐसे में प्रवासी बिहारी मजदूरों का रुझान तो सरकारी योजनाओं व कार्य से संभव नहीं लगता । हाँ, बेस वोटर व कैडर वोटरों बूते बूथों पर समीकरण इस पार या उस पार संभव है। बहरहाल, यूरेसिया कंसेटेंसी के विश्लेषक अखिल बेरी का कथन कहीं सही तो नहीं हो रहा है-” यदि प्रतिपक्ष सक्षम हो जाए तो उसका सत्ता में वापसी फिर से हो सकती है।”
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