राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

तीसरी लहर की आशंका के बीच मानसून सत्र, हंगामेदार होने के आसार

राष्ट्रनायक न्यूज।
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के गुजर जाने और तीसरी लहर की आशंका के बीच आज से संसद का मानसून सत्र शुरू हो रहा है। ऐसे में, करीब 700 से ऊपर जनप्रतिनिधियों का एक जगह जुटना जहां नितांत आवश्यक है, वहीं जोखिम भरा भी है। कोविड की दूसरी लहर डेल्टा वैरिएंट के चलते काफी आक्रामक और विनाशकारी थी। शहर ही नहीं, सुदूर गांव तक के लोग इसकी चपेट में आ गए थे। देश में चिकित्सीय आॅक्सीजन के साथ रेमडेसिविर इंजेक्शन की भारी कमी हो गई थी और उसके बाद देश में ब्लैक फंगस की दवाओं के लिए त्राहिमाम मच गया था।

इस पृष्ठभूमि में, संसद के इस सत्र में न सिर्फ जनता के दुख-दर्द पर चर्चा आवश्यक है, बल्कि महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर भी चर्चा जरूरी है। कुछ महत्वपूर्ण विधेयक भी सदन के पटल पर रखे जाने हैं। इस सत्र के लिए कोरोना संबंधी सभी प्रोटोकॉल का ध्यान रखा गया है। संसद में जनप्रतिनिधियों के बैठने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखा गया है, और जिन सांसदों एवं मीडिया के लोगों ने वैक्सीन नहीं लगवाई है, उनके लिए आरटी-पीसीआर जांच की व्यवस्था भी की गई है। इस सत्र के स्वाभाविक ही हंगामेदार होने के आसार हैं। कोरोना संक्रमण का सही ढंग से प्रबंधन न होने और महंगाई के लगातार बढ़ने जैसे मुद्दे जनता से सीधे जुड़े हैं। आम जनता इससे परेशान है और सरकार व सत्तारूढ़ पार्टी की छवि को इससे नुकसान पहुंचा है।

विपक्ष का आरोप है कि इन दोनों मुद्दों का ठीक से प्रबंधन नहीं किया गया, लेकिन इन मुद्दों पर सरकार को घेरने के लिए विपक्ष में जो एकजुटता होनी चाहिए, उसका अभाव दिख रहा है। सरकार ने अपनी ओर से राजनीतिक पहल भी खूब की है। मानसून सत्र की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री ने तथा लोकसभा के सभापति ओम बिड़ला ने भी सर्वदलीय बैठक बुलाई। वहीं लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस नेत्री सोनिया गांधी ने भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये अपने सांसदों से बातचीत की। हालांकि ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि पश्चिम बंगाल में करारी हार के बाद कांग्रेस पार्टी ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस से तालमेल कर सकती है और संसद में अपने नेता अधीर रंजन चौधरी को ममता विरोधी माने जाने के चलते हटा भी सकती है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। यही नहीं, विपक्षी दलों में किसी तरह के राजनीतिक सामंजस्य के लिए बातचीत भी होती नजर नहीं आई। जाहिर है कि सरकार के खिलाफ विपक्षी एकजुटता नजर नहीं आती।

यह सच है कि कोरोना महामारी के कहर और निरंतर बढ़ती महंगाई से जनता बुरी तरह त्रस्त है, लेकिन भाजपा के  विशाल बहुमत के सामने विपक्ष के बंटे होने के कारण पूरा का पूरा मामला धरा का धरा रह जाता है। ऐसे में, ममता बनर्जी और तृणमूल के हाथों पश्चिम बंगाल में भाजपा की हार भी विपक्षी दलों में प्रेरणा नहीं जगा पा रही और न ही सपा और बसपा उत्तर प्रदेश में मुखर प्रतिरोध कर पा रही हैं। प्रतिरोध अगर कहीं होता दिख रहा है, तो वह सड़क पर किसानों द्वारा किया जा रहा है। सर्दी, गर्मी, बरसात की मार झेलते किसान खेती से संबंधित तीनों कानूनों के विरोध में सड़क पर लगातार डटे हुए हैं। इस सत्र में किसानों के मोर्चे ने कहा है कि 200 चयनित प्रतिनिधि संसद के बाहर रोज किसानों के मुद्दे उठाएंगे। इस दिशा-निर्देश को किसानों द्वारा जारी व्हिप कहा गया है। हालांकि दिल्ली पुलिस ने शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए कुछ प्रमुख किसान नेताओं से बात की है। यानी कुल मिलाकर मामला जनता, सड़क और संसद के बीच है।

सरकार ने अपनी तरफ से इस सत्र में 23 विधेयक लाने की बात की है, जिनमें से कुछ वैज्ञानिक प्रबंधन से संबद्ध हैं, जैसे कि डीएनए टेक्नोलॉजी का समुचित इस्तेमाल तथा नियोजित प्रजनन के तकनीक पर विधेयक। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के प्रबंधन में परिवर्तन लाने के लिए भी विधेयक लाया जाना है और नए शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान इसके केंद्र में रहेंगे। प्रधानमंत्री के दिल के करीब कुछ मामले हैं, जिनमें विज्ञान, प्रौद्योगिकी और शिक्षा अग्रणी हैं। इन सभी मामलों पर सरकार पुरजोर पहल करेगी। 17 विधेयक ऐसे हैं, जो पूर्व में लोकसभा के समक्ष लाए जा चुके हैं, लेकिन उन पर विस्तृत चर्चा और मतदान होना बाकी है। यानी मानसून सत्र के लिए सरकार ने अपने मुद्दे भी तय कर लिए हैं।

सत्तारूढ़ एनडीए के पक्ष में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री कैबिनेट में फेरबदल के जरिये नए चेहरे लेकर तो आए ही हैं, कुछ राज्य स्तरीय दलों के साथ तालमेल भी बनाया गया है। इस नई कैबिनेट में विभिन्न राज्यों और दबे-कुचले सामाजिक वर्गों को सजग रूप से प्रतिनिधित्व दिया गया है। माना जा रहा है कि सदन की चर्चा में इन वर्गों के मुद्दों पर अधिक बल दिया जाएगा। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जो कभी राहुल के करीबी माने जाते थे, इस बार सदन में भाजपा की आवाज उठाएंगे। संभवत: सरकार ने फेरबदल के जरिये यह संदेश देने की कोशिश की है कि अगर कुछ गड़बड़ियां हुईं भी, तो संबंधित मंत्री को हटाकर सरकार ने सुधार का कदम उठाया है। कुल मिलाकर सरकार का प्रबंधन मजबूत है।

लगता है कि मानसून सत्र में भी मुद्दों की अगुआई करने वाली पार्टी भाजपा ही बनी रहेगी। विपक्ष का दमखम दिखता नहीं है। इसके अलावा, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन और ट्विटर के मुद्दे पर भी चर्चा हो सकती है। अंत में यह भी कहना चाहिए कि भले ही इस सत्र को मानसून सत्र कहा जाता है, लेकिन अब मानसून भी एक विपत्ति बनकर आता है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के कारण बाढ़ आने और बिजली गिरने से कई लोगों की जान चली गई। उत्तर प्रदेश और बिहार में लोग बाढ़ से पीड़ित हैं। देश की व्यावसायिक राजधानी मुंबई में बारिश से तबाही मच गई, जबकि दिल्ली में बारिश का कहीं नाम-ओ-निशान नहीं है। यानी आकस्मिक प्राकृतिक आपदा और जलवायु संकट के मुद्दे अब बहुत ही महत्वपूर्ण हो गए हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि कभी न कभी संसद का ध्यान इन गंभीर मुद्दों की तरफ भी जाएगा।

You may have missed