राष्ट्रनायक न्यूज।
यह लगभग पंद्रह साल पहले की बात होगी। दफ्तर में सकुर्लेशन विभाग के एक आला अधिकारी ने कहा कि ज्यादा ध्यान युवाओं की समस्याओं पर दिया जाना चाहिए, क्योंकि अपने देश में उनकी जनसंख्या बढ़ रही है और यह युवाओं का देश है। तब इस लेखिका ने उनसे पूछा कि आज से बीस साल बाद क्या आप इस देश को बूढ़ों का देश कहेंगे, क्योंकि जिस युवा शक्ति के ज्यादा होने पर आज इतरा रहे हैं, वही कल बूढ़ी होगी। आज डेढ़ दशक बाद ही यह बात सच होती दीखती है।
इसका प्रमाण 2021 के बजट में भी देखने को मिला, जिसमें सिल्वर इकनॉमी पर फोकस करने और उनकी समस्याओं पर ध्यान देने की बातें कही गईं। सिल्वर इकनॉमी का संबंध आपके बालों में झलकती चांदी यानी बुढ़ापे से है। हालांकि लोग बूढ़े न दिखें, इसके लिए उन्हें बाल रंगने की नसीहतें भी दी जाती हैं। जबकि अपने यहां अरसे से सफेद बालों को अनुभव से जोड़कर कहा जाता रहा है कि ‘ये बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं।’ कल तक यही बुजुर्ग बहुत हिकारत के साथ मुख्यधारा से यह कहकर अलग किए जा रहे थे कि ये तो पुराने लोग हैं। मानो ज्ञान और ऊर्जा का सारा ठेका युवाओं के पास है। युवाओं के बहाने इस बात की जुगत भिड़ाई जा रही थी कि कैसे वे ज्यादा से ज्यादा खर्च करें। अब कहा जा रहा है कि युवाओं के कारण उन बुजुर्गों की अनदेखी क्यों, जिनके पास पर्याप्त साधन हैं। हां, बुजुर्गों की जेब से पैसे निकालने हैं और यह किसी को पता न चले, इसलिए इसमें साधनहीन बुजुर्गों की भी बात कही गई है।
अब यह सिल्वर इकनॉमी है क्या? इसके प्रमुख बिंदु बताए गए कि बुजुर्गों को ध्यान में रखते हुए उनकी जरूरत के उत्पादों के उत्पादन की व्यवस्था, सही वितरण, इनका उपयोग और उपभोग, ताकि उन्हें जीने की सुविधाएं मिल सकें। उनके स्वास्थ्य पर सही ढंग से ध्यान दिया जा सके। उन्हें जरूरत की चीजें आसानी से घर पर मिल सकें। बहुत से ऐसे बुजुर्ग जो अवकाश प्राप्ति के बाद भी स्वस्थ हैं और काम करना चाहते हैं, उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं है, ताकि वे अपनी प्रतिभा एवं श्रम से देश के विकास में योगदान दे सकें। बुजुर्ग आबादी का असर परिवहन, यात्रा, खान-पान, बीमा, स्वास्थ्य, मनोरंजन, आवास आदि तमाम उद्योगों पर पड़ता है। सरकार को यह भी बताया गया कि ऐसी योजना बनाने पर चार हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे।
सबसे पहले सत्तर के दशक में जब जापान की कुल जनसंख्या में बुजुर्गों की हिस्सेदारी पैंसठ प्रतिशत हो गई, तो सिल्वर इकनॉमी के बारे में सोचा गया था। अब अपने यहां भी बताया जा रहा है कि बुजुर्गों की आबादी 2050 तक तीस करोड़ हो जाएगी यानी कुल जनसंख्या का अठारह प्रतिशत। इतनी बड़ी आबादी को लुभाने, अपने उत्पादों को उनके बीच लोकप्रिय बनाने, मुनाफा कमाने और वोट जुटाने में भला कोई क्यों पीछे रहेगा! पिछले दिनों एक बीमा कंपनी के विज्ञापन में साठ से पचहत्तर साल के बुजुर्गों के बीमा की बात कही गई थी। इसे देखकर आश्चर्य भी हुआ था, क्योंकि अब तक तीस की उम्र से पहले ही बीमा कराने की बातें हो रही थीं। यही नहीं, बुजुर्गों के लिए यात्राओं और घूमने-फिरने के ऐसे प्लान भी दिखाई देते हैं, जहां मनोरंजन के साथ-साथ उनकी सुरक्षा का भी वादा किया जाता है। ऐसे घर बनाए जा रहे हैं, जहां बुजुर्ग आराम से रह सकें और उनके खान-पान, सुरक्षा, स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर ध्यान दिया जा सके।
दुनिया भर की सरकारें अब तक बुजुर्गों को अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ मानती रही हैं। ऐसी बातें अर्थशास्त्रियों की तरफ से भी कही जाती रही हैं। अपने यहां भी एक राज्यपाल ने कुछ साल पहले ऐसा बयान दिया था। पर अब संयुक्त परिवार के टूटने के बाद भले मुनाफा कमाने के उद्देश्य से ही सही, अगर बुजुर्गों की स्थिति पर कुछ ध्यान दिया जाता है, तो यह अच्छा ही है। मात्र उम्र बढ़ने के कारण बुजुर्गों की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि वे समाज के लिए उपयोगी भी हैं। ऐसे में अगर उनकी स्थिति सुधरती है, तो यह बढ़िया ही है।


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