नई दिल्ली, (एजेंसी)। कोरोना के चलते तमाम लोगों ने अपनी जान गंवाई है। वहीं कई लोगों के ऊपर इस बीमारी ने लंबे समय के लिए असर डाला है। कई परिवार ऐसे हैं जो कोविड 19 की चपेट में आने के बाद जिंदगी भर के लिए बर्बाद हो गए। ऐसा ही हुआ है कोलकाता के रहने वाली 30 वर्षीय जीतपाल के साथ। पिछले एक महीने से जीतपाल हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। यहां पर उन्हें लंग सपोर्ट मशीन (एक्मो) के सहारे रखा गया है। इस मशीन का एक दिन का खर्च डेढ़ लाख रुपए प्रतिदिन है। डॉक्टरों ने उनके परिवार से कहा है कि जीतपाल को अगर बचाना है तो उन्हें अभी कम से कम अगले एक महीने तक इस मशीन के सहारे ही रहना होगा। अब हालत यह है कि परिवार की सारी जमापूंजी खत्म हो चुकी है। जीतपाल की जान बचाने के लिए पैसे जुटाने के लिए परिवार को काफी संघर्ष करना पड़ रहा है।
जीतपाल की मां अल्पना आगे के बारे में कुछ भी नहीं सोच पा रही हैं। एनडीटीवी की अंग्रेजी वेबसाइट की खबर के मुताबिक उन्हें बस उस दिन की याद आती है जब जीतपाल को आईसीयू में देखने गई थीं। उन्होंने कहा कि उसके गले में पाइप पड़े हुए हैं। वह बोल तक नहीं पा रहा है। हालांकि उसने मुझे इशारे से अपनी फोटो लेने के कहा। फिर उसने विक्ट्री साइन बनाते हुए फोटो खिंचाई। अल्पना बताती हैं कि जब भी मैं उससे मिलने जाती हूं वह मुझे हाल-चाल पूछता है। मैं उससे कहती हूं कि मैं ठीक हूं, तुम्हें भी ठीक होना होगा। हर बार वह पूछता है मां, मैं घर कब चलूंगा? यह बताते हुए अल्पना के लिए अपने आंसुओं को रोकना कठिन हो जाता है।
वहीं जीतपाल के चचेरे भाई देबराजन बर्मन दिल्ली में उनके लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। पिछले दो महीने से जीतपाल के दोस्तों के साथ मिलकर वह फंड रेज करने में जुटे हैं। अपनी माता-पिता की अकेली संतान जीतपाल ने देहरादून, कोलकाता, लंदन और अमेरिका से पढ़ाई की है। वहां के उनके दोस्त भी मदद कर रहे हैं। इन लोगों ने अभी तक करीब 40 लाख रुपए जुटाए हैं। लेकिन अब यह रुपए भी खत्म होने के कगार पर हैं। जीतपाल के पिता के पास कुछ प्रॉपर्टी है, लेकिन इन हालात में उसे बेचना भी उन्हें ठीक नहीं लग रहा। जीतपाल के दोस्त, उनके फैमिली मेंबर्स सभी मिलकर उन्हें जिंदा रखने की मुहिम में लगे हैं। वह कहते हैं कि जब जीतपाल बीमार होकर इतनी लड़ाई लड़ रहा है तो हम कैसे हार मान लें।


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