दुकुल की इच्छा।
चाह नहीं मैं
गोरी के गीव पर
नागों सा लिपटा जाऊँ
और अनिल के झोको से
मैं इधर उधर छितराऊ
चाह नहीं तेरी कटि पर बंधकर
तेरी कटिबंध कहलाऊ।
मुझे बांध ले हे साखे तुम
अपनी उर की सीमा पर
होगी बोध तुम्हें तब मेरी
प्रशस्त हो तुम अपने
कर्तव्य पथ पर।
सूर्येश प्रसाद निर्मल, तरैयाँ,शीतलपुर


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