राष्ट्रनायक न्यूज।
इन दिनों खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों ने आम आदमी की रसोई का बजट बिगाड़ दिया है। खाद्य तेलों की बढ़ती हुई कीमतें और अपर्याप्त तिलहन उत्पादन आर्थिक चुनौती के रूप में उभर रहे हैं। सरकार ने खाद्य तेलों की कीमत घटाने के लिए जहां आयातित खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में कमी सहित अन्य कदम उठाए हैं, वहीं दीर्घकालिक उपाय के तहत 18 अगस्त को 11,040 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ राष्ट्रीय खाद्य तेल पाम ऑयल मिशन की घोषणा भी की है। हम अपनी जरूरतें पूरी करने लायक भी तिलहन उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। इसे दूर करने के लिए घरेलू तिलहन उत्पादन बढ़ाने के कई प्रयास किए गए, लेकिन कोई खास कामयाबी नहीं मिल सकी। जहां देश की जरूरत के अनुरूप तिलहन उत्पादन नहीं बढ़ा, वहीं जीवन स्तर में सुधार और बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्य तेल की मांग बढ़ती गई। सेंट्रल आर्गनाइजेशन फॉर आयल इंडस्ट्री ऐंड ट्रेड के मुताबिक, देश में तिलहन की वार्षिक प्रति व्यक्ति खपत वर्ष 2012-13 के 15.8 किलोग्राम से बढ़कर अब करीब 19-19.5 किलोग्राम हो गई है। नतीजतन भारत की आयातित खाद्य तेलों पर निर्भरता लगातार बढ़ती गई है। इसलिए अपर्याप्त तिलहन उत्पादन खाद्य तेल के मूल्य को नियंत्रित नहीं कर पाता।
खाद्य तेलों के अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में बदलाव का असर घरेलू कीमत पर तेजी से पड़ता है। इस वर्ष खाद्य तेल के घरेलू बाजार पर वैश्विक खाद्य तेल बाजार की बढ़ी हुई कीमतों का काफी अधिक असर दिखाई दे रहा है। भारत को सालाना करीब 65,000 से 70,000 करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात करना पड़ रहा है। भारत खाद्य तेलों का आयात करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश बन गया है। विगत 18 अगस्त को केंद्र सरकार ने पाम ऑयल के लिए 11,040 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ राष्ट्रीय खाद्य तेलझ्रपाम ऑयल मिशन (एनएमईओ-ओपी) को मंजूरी दी है। इसका उद्देश्य देश में ही खाद्य तेलों के उत्पादन में तेजी लाना है। इसके लिए पाम का रकबा और पैदावार बढ़ाने के लक्ष्य सुनिश्चित किए गए हैं। पहले पाम की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 12 हजार रुपये दिए जाते थे, जिसे बढ़ाकर 29 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर कर दिया गया है। इसके अलावा रख-रखाव और फसलों के दौरान भी सहायता में बढ़ोतरी की गई है। इस योजना के तहत, प्रस्ताव किया गया है कि वर्ष 2025-26 तक पाम का रकबा 6.5 लाख हेक्टेयर बढ़ा दिया जाए और इस तरह 10 लाख हेक्टेयर रकबे का लक्ष्य पूरा किया जाए।
अब खाद्य तेल मिशन के तहत तिलहन उत्पादन में इजाफा करने हेतु उत्पादकों को जरूरी कच्चा माल, तकनीक और जानकारी सरलतापूर्वक उपलब्ध कराई जाएगी। यह भी निर्धारित किया गया है कि इसी खरीफ सत्र में किसानों को मूंगफली और सोयाबीन समेत विभिन्न तिलहनी फसलों की अधिक उत्पादन वाले और बीमारी तथा कीटाणुओं से बचाव की क्षमता वाले बीजों के मिनी किट उपलब्ध कराएं जाएंगे। तिलहन की फसल का एक बड़ा रकबा भी उन इलाकों में बढ़ाने का प्रस्ताव है, जहां पारंपरिक रूप से तिलहन की बुआई नहीं की जाती है।
इसके अलावा कुछ नए कदम भी उठाने होंगे। तिलहन उत्पादकों को उत्पादन का आकर्षक प्रतिफल दिया जाना होगा। तिलहन का रकबा बढ़ाने के साथ जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) उन्नत प्रजाति के हाइब्रिड बीजों पर जोर देना होगा। किसानों तक उन्नत बीजों को पहुंचाने के लिए राज्यों में विशेष अभियान चलाना होगा। तिलहन फसलों की जैविक एवं अजैविक किस्मों के विकास और उपज में वृद्धि के लिए सार्वजनिक अनुसंधान खर्च बढ़ाने होंगे। तिलहन फसलों के लिए महत्वपूर्ण पारिस्थितिक क्षेत्रों में उर्वरक, कीटनाशक, ऋण सुविधा, फसल बीमा और विस्तार सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में अनुचित प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए पर्याप्त सुरक्षात्मक उपायों को अपनाना होगा।
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