राष्ट्रनायक न्यूज

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बाहुबलियों से दूरी बना कर मायावती ने चली है बहुत सधी हुई चाल

राष्ट्रनायक न्यूज।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने आगामी विधानसभा चुनाव में दागी/दबंगों से दूरी बनाए रखने की जो बात कही है, उससे लगता है कि मऊ से विधायक माफिया मुख्तार अंसारी को बसपा से बाहर का रास्ता दिखाने के बाद अभी मायावती पार्टी में बचे हुए कुछ और दागी/दबंग/ बाहुबलियों को भी पार्टी से निकाल सकती हैं। मुख्तार के पश्चात गाजीपुर से बहुजन समाज पार्टी के सांसद और मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी और उनके करीबी जेल में बंद घोसी से सांसद अतुल राय को भी अब लगने लगा है कि बसपा से उनके दूर जाने का समय आ गया है। माना जा रहा है कि बाकी बचे दागी/दबंगों को मायावती बाहर करें, इससे पूर्व ही सांसद अफजाल अंसारी के साथ ही अतुल राय भी बसपा का दामन छिटक कर समाजवादी पार्टी का दामन थाम सकते हैं, लेकिन राजनैतिक पंडितों को लगता है कि समाजवादी पार्टी के लिए भी यह आसान नहीं है कि वह मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए वह मुख्तार-अफजाल अंसारी अथवा अन्य किसी बाहुबली को गले लगा ले। समाजवादी पार्टी ऐसा कुछ करती है तो चुनाव प्रचार के दौरान विरोधी दलों के नेता समाजवादी पार्टी और उसके प्रमुख अखिलेश यादव की कथनी-करनी पर सवाल खड़ा कर सकते हैं, जिसका भारी नुकसान सपा को उठाना पड़ सकता है। कहा यह भी जा रहा है कि यदि समाजवादी पार्टी ने उक्त नेताओं के लिए दरवाजे नहीं खोले तो यह नेता ओवैसी की पार्टी की भी सदस्यता ग्रहण कर सकते हैं। मुस्लिम वोट बैंक की सियासत कर रहे ओवैसी को इससे कोई परहेज भी नहीं होगा, हाल ही में जेल में बंद बाहुबली अतीक अहमद की पत्नी को एआईएएआईएम की सदस्यता गिलाकर ओवैसी यह बात साबित कर भी चुके हैं।

खैर, यदि मुख्तार बंधु सपा की सदस्यता ग्रहण करते हैं तो यह पहली बार नहीं होगा, जब मुख्तार अंसारी को बहुजन समाज पार्टी से टिकट नहीं दिया गया है। अपराध की दुनिया में रहकर ही खादी का दामन थामने वाले मुख्तार अंसारी ने 1996 में हाथी की सवारी की थी और वह पहली बार विधानसभा पहुंचा था। मुख्तार को इसके कुछ दिन बाद ही बसपा मुखिया मायावती ने पार्टी से बाहर रास्ता दिखा दिया था। मऊ के अंसारी बंधुओं में सबसे बड़े सिबगतुल्लाह अंसारी चंद राजे पहले ही अखिलेश यादव की मौजूदगी में बेटे के साथ समाजवादी पार्टी (एसपी) में शामिल हो चुके हैं, इसी आधार पर यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि भाई मुख्तार अंसारी का भी नया ठिकाना समाजवादी पार्टी हो सकता है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने पिछले दिनों सिबगतुल्लाह अंसारी के बसपा छोड़ समाजवादी पार्टी में जाने के बाद से ही बांदा जेल में बंद आपराधिक छवि के मुख्तार अंसारी से किनारा करने का संकेत दे दिया था। मुख्तार अंसारी के साथ ही अब बसपा से सांसद उनके भाई अफजाल अंसारी की भी छुट्टी तय मानी जा रही है।

बहरहाल, बसपा से टिकट कटने के बाद मुख्तार अंसारी की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की मांग भी तेज हो गई है। माफिया विरोधी मंच ने पिछले दिनों विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित से मुख्तार की सदस्यता रद्द करने की मांग की थी। मंच के अध्यक्ष सुधीर सिंह की ओर से विधानसभा अध्यक्ष को सौंपे गए पत्र में बताया गया था कि मुख्तार अंसारी वर्ष 2005 से विभिन्न संगीन आरोपों में जेल में निरुद्ध है। ऐसे में मुख्तार का विधानसभा से वेतन व भत्ता लिया जाना असंवैधानिक है। मुख्तार ने 16 वर्षों में विधानसभा सदस्य के रूप में वेतन व अन्य भत्तों का 6.24 करोड़ रुपये का भुगतान लिया है, जिसकी ब्याज समेत वसूली की जानी चाहिए।

बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी जबरन वसूली के मामले में जनवरी 2019 से पंजाब की रूपनगर जेल में बंद था। कुछ माह पूर्व सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उसे प्रदेश के बांदा जेल वापस लाया गया था। मुख्तार के खिलाफ उत्तर प्रदेश में दर्ज कई आपराधिक मामलों की सुनवाई चल रही है। वह अक्टूबर 2005 से जेल में है, लेकिन अदालत की अनुमति से वह विधायी कार्यवाही में भाग लेता रहा। इतना ही नहीं अंसारी ने जेल में रहते हुए 2007, 2012 और 2017 में चुनाव भी जीते हैं। प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने सत्ता में आने के बाद जेल में बंद विधायकों के विधायी कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति देने के कदम का कड़ा विरोध किया था।

लब्बोलुआब यह है कि अबकी से बसपा पूरी तरह से पाक-साफ होकर चुनाव मैदान में उतरना चाहती है, ताकि वह ताल ठोक कर कह सके कि हमने किसी दागी को टिकट नहीं दिया है, बसपा के ऐसा करने पर अन्य दलों पर भी दागी/दबंगों से दूरी बनाकर चलने की मजबूरी हो जाएगी। इसे मायावती का माइंड गेम भी कहा जा सकता है। वह विरोधियों के सामने नैतिकता की एक नई मिसाल खड़ी करके मतदाताओं को यह संदेश भी दे सकती हैं कि उनका अपराधियों से कोई लगाव नहीं है।

संजय सक्सेना