राष्ट्रनायक न्यूज

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कश्मीर का ढहा हुआ आर्थिक ढांचा सरकारों की देन

राष्ट्रनायक न्यूज।
कश्मीर- पिछले 31 सालों से धरती का स्वर्ग चरमरा चुकी अपनी अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए लड़ रहा है। अपने तमाम अनोखे प्राकृतिक नजारों के कारण ये जगह न केवल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी रहती है बल्कि यहां पर कई आर्थिक संभावाएं भी हैं। कश्मीर जैसे विवादित क्षेत्रों को आर्थिक समाधान की जरूरत है। 1947 में हमें स्वतंत्रता मिलने के बाद और खास तौर पर आतंकवाद बढ़ने के बाद से नीति निमार्ताओं ने कश्मीर के अनमोल सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना की अनदेखी की है जिस कारण कश्मीर पीछे होता गया।

पहले नीति-निमार्ता कश्मीर में धारा 370 को आर्थिक पतन का कारण बताते रहे। अब विशेष दर्जे के हटने के बाद भी यहां का आर्थिक पुनरुद्धार अभी कोसों दूर है। कश्मीर को निर्भर राज्य से अंशदायी राज्य बनाने और यहां की अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए खास नीति तैयार करने के साथ ही विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना करना जरूरी है। विवादित क्षेत्रों को आसान नहीं कहा जा सकता और संघर्ष के नकारात्मक प्रभाव ने यहां के क्षेत्रीय लोगों के सामाजिक और आर्थिक जीवन पर बुरा असर डाला है। इसलिए इन क्षेत्रों में अलग तरह से संभालने की जरूरत है जिससे न केवल इनका राजनीतिक बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास भी हो सके। भारत के कुछ क्षेत्रों में संघर्ष के नकारात्मक प्रभाव ने उन क्षेत्रों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास को धीमा कर दिया है। कश्मीर, उत्तर पूर्व भारत, झारखंड आदि जैसे विवादित क्षेत्रों के आर्थिक विकास के लिए सरकार को विशेष ध्यान की देने की जरूरत है। इन क्षेत्रों का आर्थिक विकास तभी संभव है जब यहां के लिए प्रभावशाली आर्थिक नीति तैयार और लागू की जाएं।

पाकिस्तान से प्रायोजित और अप्रभावी स्थानीय सरकारों ने अतीत में आर्थिक और सामाजिक तंत्र से बहुत समझौता किया है। पिछले 74 वर्षों में कई बार कश्मीर राज्यपाल या राष्ट्रपति शासन में रहा जिससे यहां पर केंद्रित विकास की संभावनाएं कम होती गई है। 1990 से, भारत में पाकिस्तान प्रायोजित गतिविधियों का मुख्य केंद्र जम्मू-कश्मीर रहा है। इस राज्य ने पिछले 11 सालों में 27,000 जिंदगियां खोते देखी हैं। व्यापारियों और सुरक्षा विरोधाभास के चलते केंद्र शासित राज्य में अर्थ व्यवस्था को लक्वा लगा दिया है। अलगाववादी आंदोलनों के कारण जम्मू-कश्मीर में साक्षरता दर 67 प्रतिशत ही है जब्कि राष्ट्रीय साक्षरता दर 74 प्रतिशत है। यहां की 70 प्रतिशत बेरोजगारी दर चौंका देने वाली है। ये देश की औसत बेरोजगारी दर 34 प्रतिशत की दुगनी है। यहां हाइड्रो पावर की क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं किया गया।

अन्य राज्यों की तुलना में टेलिफानी का विकास भी बहुत कम है। ट्राई के मुताबिक जम्मू कश्मीर में अक्टूबर 2017 तक वायर लाइन सबस्क्राइबर केवल 0.12 मिलियन थे। 1950 से कोई खास आर्थिक विकास नहीं हुआ और खास तौर पर 1990 से ये थमता गया। आर्थिक विकास पर ध्यान न देने के कारण यहां के युवाओं में अलगाववाद बढ़ता गया। सरकार और प्रशासन यहां केवल सुरक्षा व्यवस्था पर ही केंद्रित रह गए। स्थानीय भूमि आधारित अर्थव्यवस्थाएं बिना किसी आधुनिक वैज्ञानिक हस्तक्षेप के ऑटो मोड पर हैं। शिक्षा/साक्षरता से समझौता किया गया है। बुनियादी अर्थिक जरूरतें-बिजली और आईटी/टेलीकॉम दुर्लभ हैं। संदेश साफ है कि कश्मीर को पुनरुद्धार के बेहद जरूरत है और मैं 4 आर दृष्टिकोण का प्रस्ताव देता हूं- कश्मीर को फसलों से फलों और फूलों की ओर बढ़ने की जरूरत है। ज्यादा भागीदारी वाली कम उपज की फसलों से ज्यादा खपत और कम प्रयास वाले फलों की ओर बढ़ें जैसे स्ट्रॉबेरी। सेब, चेरी, आड़ू, खुबानी, बादाम आदि जैसी भूमि और पेड़ की फसलों की उपज में सुधार के लिए अनुसंधान की जरूरत है। कश्मीर में चावल अच्छे नहीं हैं और पंजाब से इसकी भरपाई सस्ती पड़ेगी। जलवायु और फलों की खेती की गुणवत्ता में कश्मीर बहुत बेहतर स्थिति में है।

कश्मीर को कश्मीरी बकरियों के को-आॅपरेटिव प्रजनन-पालन कार्यक्रम द्वारा और अपने मूल क्षेत्र से संबंधित या नृवांशिक पदार्थों को मजबूत करना चाहिए जैसे चंगठंगी, पश्मीना ऊन जो कि उत्तम क्वालिटी और बेशकीमती ऊन है। हालांकि यहां ऊन की कुल पैदावार दुनिया के बाकी क्षेत्रों के मुकाबले कम है। न्यू जीलैंड दुनिया का सबसे बड़ा ऊन पैदा करने वाला देश है जो भारी मात्रा में चीन को ऊन एक्सपोर्ट करता है। हालांकि इसकी तुलना में एक बेहतर कश्मीरी ऊन शहतूश है लेकिन उस प्रजाति के विलुप्त होने के खतरे के चलते उसपर बैन लगा है। अगर इस क्षेत्र पर ध्यान दिया जाए तो कश्मीर दुनिया में बेहतर क्वालिटी की ऊन का सबसे बड़ा केंद्र बन सकता है और अमरीकी पुलोवर बाजार पर राज कर सकता है। कश्मीर को लद्दाख क्षेत्र में पशु पालन-प्रजनन की तकनीकों और को-आॅपरेटिव फार्मिंग पर ध्यान देने की जरूरत है।

पर्यटन या टूरिज्म 1990 से कश्मीर में आ? का प्रमुख साधन रहा है। 90 के दशक से पहले कश्मीर कई एचएनआई/ यूरोप से आए ग्रुप्स की पसंदीदा जगह रही है। 90 के दशक के बाद एचएनआई में गिरावट के बाद महाराष्ट्र, गुजरात, और बिहार जैसे राज्यों से सीमित आर्थिक संसाधनों वाले लोगों के लिए भी कश्मीर घूमना अब संभव हो गया है। वहीं ज्यादा पैसा खर्च करने वाले पर्यटकों के लिए लग्जरी होटल और एडवेंचर स्पोर्ट्स भी मौजूद हैं। सिमथन पास, गंगबल और नारनाथ जैसे इलाकों को हाई-ऐल्टीट्यूड हेली-एडवेंचर केंद्रों में बदला जा सकता है। साथ ही गुलमर्ग, सिमथन, सोनमर्ग में स्कीइंग ट्रैक बनाए जा सकते हैं। बड़ी-बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों को खासतौर पर विदेशी कंपनियों को कश्मीर आकर होटल आदि बनाने के लिए आमंत्रित किया जाए।

कश्मीर ट्राउट और रेनबो ट्राउट दुनियाभर में खास और शाही व्यंजनों में गिनी जाती हैं। कश्मीर के अलावा केवल डेनमार्क ही रेनबो ट्राउट का निर्यात करता है। कश्मीर में मत्स्य पालन की कई स्थानों पर पर्याप्त व्यवस्थाएं हैं मगर ज्यादातर या तो सक्रीय नहीं हैं या ठीक तरह उनका प्रयोग नहीं हो रहा है। दुनियाभर के पांच सितारा होटलों में आॅनलाइन माध्यम से रीटेल और इंस्टिट्यूशनल बिक्री फिशरीज के क्षेत्र में कश्मीर को विश्वस्तर पर एक बड़ा केंद्र बना सकती है।

फूड और फ्रूट (वाजवान और कश्मीरी फल) प्रोसेसिंग यूनिट छोटे स्तर के व्यापारों और रोजगारों का एक बड़ा स्त्रोत बन सकती हैं। कश्मीरियों को प्राथमिकता की नीति के साथ एक ऐप-आधारित कोऑपरेटिव कैब सेवा एक बड़ी जरूरत है। किश्तवाड़ और बदरवाह को वैकल्पिक पर्यटन केंद्रों में विकसित किया जा सकता है।  ऐसेल वर्ल्ड और वॉटर किंगडम की तरज पर तावीरिवर फ्रंट तैयार किया जाए। (इसके लिए मैनें एक डेवलपमेंट प्लान खऊअ में 2007 में दाखिल किया था)। कश्मीर में मेडिकल पर्यटन की भी अपार संभावनाएं हैं जो कि एक बड़े रेवेन्यू के माध्यम से कश्मीरी लोगों के लिए स्पेशलाइज्ड स्वास्थ सेवाएं देने में मदद कर सकती हैं।

वॉटरवेज: झेलमवॉटरवेज प्रोजेक्ट, शिकारा ऑपरोटरों, कार्गो व्यापारियों जैसे लोगों के माध्यम से पर्यटन, वैकल्पिक ट्रांसपोर्ट और कई क्षेत्रों में रोजगार और व्यवसाय का स्त्रोत बन सकता है। जेहलम रिवर ऑथोरिटी जेहलम नदी के प्रबंधन और व्यवस्था का जिम्मा उठा सकती है और एक बोट सर्विस अनंतनाग, श्रीनगर और बाराहमुल्ला जैसे इलाकों को जोड़ सकती है। इस माध्यम से कार्गो और सामान के यातायात की सुविधा होगी जिससे सड़कों पर भार कम होगा और ट्रैफिक से भी निजात मिलेगी। अक्षय ऊर्जा – कश्मीर के लिए नया ईंधन हाइड्रोइलैक्ट्रिसिटी के साध-साथ बायोगैस तकनीक के माध्यम से बायोमास से बिजली बनाने पर भी जोर देने की आवश्यकता है। बारामुल्ला जैसे जिलों में वायु ऊर्जा और लद्दाख में सौर और थर्मल ऊर्जा के केंद्र बना कर घाटी की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। सिंगल विंडो व्यवस्था के तहत एक अलग सुरक्षित एंटरटेनमेंट जोन बनाया जाए। एक छत के नीचे फिल्मों के लिए वॉक-इन इंफ्रास्ट्रक्चर, टीवी और ओटीटी के प्रोडक्शन के लिए शूटिंग फ्लोर, स्टूडियो, स्पेशल इफैक्ट प्रोसेसिंग और ब्रॉडकास्ट सुविधा हो। सिनेमा हॉल, थिएटर, फिल्म और सांस्कृतिक कार्यक्रमों, फिल्म पुरस्कार आदि के लिए व्यव्सथाएं तैयार की जाएं। आॅनलाइन लॉटरी लाइसेंस के माध्यम से 500 करोड़ रुपय की और आय बढ़ाई जा सकती है।