लेखक: अहमद अली
“तुम जानते नहीं, पहले मैं क्या था।सुधर जाओ, नहीं तो दो मिनट लगेगें, मैं तुम्हें सुधार दूँगा ” ।
जी हाँ, 25 सितम्बर को भाजपा के केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा उर्फ टोनी द्वारा कहीं दिये गये भाषण के कुछ अंश हैं ये।और कल उन्होनें यह साबित भी कर दिया कि पहले वो क्या थे तथा किसानों को किस प्रकार सुधारने की बात कह रहे थे। उनके बेटे नें लखिमपुर खीरी (यु पी )में किसानों के जुलूस पर अपनी गाडी़ दौरा दी।अभी तक जानकारी के मुताबिक 6 किसानों की मौत हो चुकी है तथा कई बूरी तरह जख्मी हालत में जिन्दगी और मौत के बीच में झूल रहे हैं।
यानी, अब केन्द्र की मोदी सरकार किसानों के नरसंहार पर उतर आई है। इसके पहले करनाल में पुलिस को आदेश देकर किसानों के जूलूस पर लाठी चला कर उनके सर फोड़ देने की घटना अंजाम दी गयी।जिस एस डी एम ने सर फोड़ने वाला आदेश जारी किया , उसकी पदोन्नति कर दी गयी, अर्थात बहादूरी का इनाम दिया गया।फिर भी किसानों का आन्दोलन जब और रफतार पकड़ता गया, तो बौखलाहट का यह आलम है कि अब उनके नरसंहार पर ये सरकार आमादा है।
मोदी सरकार पूरी तरह सत्ता के मद और गरुर में डूबी हुई है।उसे गलतफहमी है कि लाठी-गोली से किसान डर जायेंगे तथा आन्दोलन वापस ले लेंगे। पता होना चाहिये देश के खुंखार रहनूमाओं को कि 10 महीने से जारी यह किसान आन्दोलन अब एक जनआन्दोलन का रुप ग्रहण कर चुका है। हर जोर जूल्म से टकराते हुए अपनी फतह की मंजिल तक पहुँचेगा ही इसे कोई भी ताकत नहीं रोक सकती।
याद किजिये ज़रा, आन्दोलन की शुरुआत से ही मोदी सरकार ने किसान आन्दोलन को कुचलने के लिये किस हथकंडे को नहीं अपनाया ! उन्हें खालिस्तानी, माओवादी, उग्रवादी, देशद्रोही,टुकड़े टुकड़े गैंग, क्या नहीं कहा! इनके रास्तों में गढ्ढे खोद दिये गये।हाड़ कँपा देने वाली सर्द रातों में इनके उपर पानी का बौछार किया गया।काँटे बिछा दिये गये। इनके रास्तों पर कीलें गाड़ दी गयी। दीवार खडी़ कर दी गयी। लेकिन बढ़ते हुए जुल्म के साथ ही आन्दोलन का हौसला भी परवान चढ़ता गया। जनआन्दोलन की सीढि़याँ चढ़ते हुए इसने देश के कोने कोने में अपना झंडा लहरा दिया है आज।
भाजपाई बौखलाए हुए हैं और अपने गुरु हिटलर के रास्ते पर गामजन हो चले हैं। अब ये सत्याग्रही किसानों की खून की होली खेलने कर उतारु हैं, जिसका मिसाल लखीमपुर खीरी में इन्होंने प्रस्तूत भी कर दिया। किसान हमारे अन्नदाता हैं। ये अपने लिये नहीं बल्कि पूरे देश के लिये जालिम हुक्मरानों से जूझते हुए शहादत भी दे रहे हैं। अब तक 700 से अधिक किसान शहीद हो चुके है। अभी भी जिनकी नज़र में ये देश विरोधी हैं, क्या उनका ज़मीर जिन्दा है ? और जिनका ज़मीर मर चुका है वो एक जि़न्दा लाश के सिवा कुछ हो ही नहीं सकते। अब तो किसान आन्दोलन की यही सदा फिजा़ओं में गुँज रही है।
“उन्हे यह फि़क्र है हर दम नया तर्जे ज़फा क्या है
हमें यह शौक है, देखें, सितम की इन्तहा क्या है।।”
(लेखक के अपने विचार है।)


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