- दवा खाकर डीपीएम् ने सभी जीविका दीदियों को दवा खाने को लेकर की अपील:
- उन्मूलन के लिए दवा खाना जरूरी, दवा खाने में नहीं करें संकोच: डीपीएम
- फाइलेरिया से बचने का एकमात्र उपाय डीईसी और अल्बेन्डाजोल की गोली:
मधेपुरा, 8 अक्टूबर।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा जीविका मधेपुरा के जिला स्तरीय प्रबंधन इकाई के सभी 18 पदाधिकारियों एवं कर्मियों को शुक्रवार को फाइलेरिया से बचाव के लिए जागरूक करने के साथ डीईसी तथा अल्बेन्डाजोल की गोली खिलाई गई। दवा खाकर जीविका डीपीएम अनोज पोद्दार ने जिले की जीविका दीदियों से अपील भी की। अनोज पोद्दार ने कहा कि जीविका कार्यालय में सभी पदाधिकारियों एवं सहकर्मियों ने आज फाइलेरिया उन्मूलन के लिए डीईसी एवम् अल्बेंडाजोल की गोली का सेवन किया है। इस दवा के सेवन में किसी तरह का संकोच नहीं करनी चाहिए। उन्होंने जिले की सभी जीविका दीदियों से अपील की है कि आशा कार्यकर्ता जब उनके यहां दवा लेकर जाएं तो वे सभी अवश्य इसका सेवन करें। दवा के सेवन में कोई संकोच ना करें। जीविका कार्यालय में दवा सेवन के मौके पर पीसीआई के स्टेट कोऑर्डिनेटर अशोक लाल सोनी, पीसीआई के जिला कोऑर्डिनेटर अनमोल मिश्रा आदि उपस्थित रहे।
ज्ञात हो कि फाइलेरिया उन्मूलन के लिए एमडीए के दूसरे चरण की शुरुआत हो चुकी है। जिसमें लोगों को डीईसी तथा अल्बेन्डाजोल की गोली खिलाई जानी है। जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ मुकेश कुमार सिंह कहते हैं फाइलेरिया एक गंभीर बीमारी है जो मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से फैलती है। संक्रमण और बीमारी के लक्षण प्रकट होने में बहुत बरसों लग जाते हैं।आप संक्रमित होते हुए भी लक्षण से मुक्त दिख सकते हैं और रोग फैलाने का माध्यम हो सकते हैं। इसीलिए दवा सबको खानी चाहिए क्योंकि आप नहीं जानते कि आपके शरीर मे फाइलेरिया के सूक्ष्म परजीवी हैं अथवा नहीं।
फाइलेरिया की वजह से बोझिल बन जाती है जिंदगी:
चिकित्सा विज्ञान लगातार प्रगति कर रहा है। बावजूद इसके अभी भी कई रोग ऐसे हैं जिसका माकूल इलाज आम जनमानस को अब तक उपलब्ध नहीं हो पाया है। फाइलेरिया भी ऐसे ही रोगों की सूची में शामिल है। जो लोगों को कमजोर व लाचार तो बनाता ही है। इससे विकलांगता का खतरा भी अधिक होता है। सीधे शब्दों में कहे तो फाइलेरिया की वजह से लोगों की जिंदगी बोझिल बन जाती है। रोगग्रस्त लोग अपना जरूरी काम भी सही से नहीं कर पाते हैं। इससे उनका रोजी-रोजगार प्रभावित होता है। ऐसे में रोग प्रभावित व्यक्ति को उनके परिवार व समाज में हर स्तर पर लोगों का तिरस्कार झेलना पड़ता है।


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