लेेखक:- अहमद अली
सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी और फटकार के बाद योगी सरकार कुछ हरकत में आई दिखती है।मेरे इन इबारतों को लिखते समय आशिष मिश्रा से क्राइम ब्रांच के कार्यालय में पुछ ताछ चल रही थी।क्या नतीजा आता है, यह तो बाद में पता चलेगा।फिर भी भाजपा सरकार के विगत लीपापोती वाले रवैया के मद्देनजर कुछ अंदाजा लगाना मुश्किल भी नहीं है।चाहें तो आप लगा भी सकते हैं।
आइये, यहाँ कुछ पिछली घटनाओं का जिक्र करें, कि लखीमपुर खीरी में, घटित क्रुरतम घटना में मृतकों के परिजनों से मिलकर उनके आँसू पोंछना, उनसे सांत्वना के दो शब्द कहना यदि राजनीति करना है तो विपक्ष को घटना स्थल पर जाने से रोकना क्या राजनीति से प्रेरित नहीं है ? यह पहली बार हो रहा है, ऐसा भी नहीं है। इसके पहले भी हाथरस में एक दलित लड़की से सामुहिक बलात्कार ,फिर सच को छुपाने हेतु पुलिस द्वारा उसे आधी रात को जला देने की घटना के बाद भी राजनीतिक दलों और यहां तक कि पत्रकारों को भी रोका गया था।सिद्दीकी कप्पन नामक केरल का पत्रकार, जो हाथरस जाना चाहता था, उसे गिरफ्तार कर लिया गया। आज भी वह जेल में है।काफी जद्दोजेहद के पश्चात ,अब तो खैर लखीमपुर लोगों को जाने की इजाजत दे दी गई है। लोग जा भी रहे हैं।पीड़ित परिवार को सांत्वना दे रहे हैं, साथ ही सच को तलाशने का प्रयास भी कर रहे हैं।सच्चाई सामने भी आ रही है। क्या अब भी किसी को सुबहा है , कि अपनी नाकामियों, काली कारगुजारियों तथा विरोध की आवाज को खामोश करने की नियत से ही विपक्षियों को वहाँ जाने पर लगाम लगा रही थी सरकार ! विपक्ष को छोड़िए, सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार की निष्क्रियता और उदासीनता पर नाराजगी जाहिर की। माननीय अदालत द्वारा गिरफ्तारी पर सवाल पूछना,हरीश सालवे द्वारा मामले को सी बी आई से जाँच के आग्रह को भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ठुकरा देना , यह पूछना कि यदि आशीष मिश्रा की जगह कोई आम आदमी होता तो सरकार का रवैया क्या ऐसा ही होता ? जो अभी है। योगी सरकार को आईना दिखा देता है। स्पष्ट है कि सरकार, मंत्री के लाडले अशीष मिश्रा को ऐन केन प्रकारेण बचाना चाहती है।
हरियाणवी मुख्यमंत्री द्वारा भाजपा कार्यकर्ताओं को किसानों के विरुद्ध उक्साना, करनाल एस डी एम द्वारा प्रदर्शनकारी किसानों का सर फोड़ देने वाला पुलिस कर्मियों को आदेश, फिर उसकी पदोन्नति, 25 सितम्बर को गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के भाषण में यह धमकी देना कि वह दो मिनट में किसानों को दुरुस्त कर देगा, 3 अक्टूबर को मंत्री के बेटे के काफिले द्वारा किसानों को बेरहमी से कुचल देना और इन सभी घटनाओं पर देश के ओजस्वी प्रधानमंत्री, जो बात बात पर आँसू टपका देते हैं , उनका चुप रहना। ये क्या स्वर्ण राजनीति आपके द्वारा की जा रही है ?
देश का हर जागरुक नागरिक यह जानता है कि मौजूदा दौर में दो तरह की राजनीतिक परिदृश्य है। एक जो किसान सहित विपक्षी पार्टियां लोकतांत्रिक मर्यादा का निर्वहन करते हुए कर रही हैं। दूसरी, विरोध की आवाज बंद कर देने वाली जो बीजेपी की है। दर्जनों लेखक और साहित्यकार जो सरकार के समक्ष सवाल खडे़ करते थे,जेलों में बंद हैं। सैकड़ों सामाजिक- राजनैतिक कार्यकर्ता, जो शासक वर्ग की विफलताओं को जनता के समने उजागर करते थे, कैदखाने की कोठरियों में बंद हैं। उनमें से कितनों पर यु ए पी ए जैसी खतरनाक धाराएँ थोप दी गयी हैं। कई ईमानदार पत्रकारों और मीडिया कर्मियों को रोज धमकियाँ दी जा रही है। सरकार का विरोध यानी देश का विरोध। यह आम बात हो गयी है और यही तानाशाही है। कोई भी तानाशाह अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकता। उसकी हाँ में हाँ मिलाईये तो पदोन्नति।विरोध,तो तबाही।क्या ये सब कुछ आज नजर नहीं आता आपको।यही राजनीति है वर्तमान शासक वर्ग की। क्या कहेंगे आप- ये राजनीति है या तानाशाही !
(लेखक के अपने विचार है)


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