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‘कांग्रेस मुक्त भारत’ में बीजेपी का साथ देकर फंस गई यह पार्टी? अब भगवा दल से ही सताने लगा डर

भुवनेश्वर, (एजेंसी)। 2014 लोकसभा चुनाव से पहले जब नरेंद्र मोदी ने ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा दिया तो ओडिशा की बीजू जनता दल (बीजेडी) सहित कई गैर कांग्रेसी दलों ने इसे पसंद किया, क्योंकि यह देश की सबसे पुरानी पार्टी को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानती थी। नवीन पटनायक की अगुआई वाली क्षेत्रीय पार्टी बीजेपी से हाथ मिलाकर एनडीए का हिस्सा बन गई ताकि कांग्रेस को सस्ता से दूर रख सके। बीजेडी-बीजेपी ने 2000 से 2009 तक ओडिशा में गठबंधन सरकार चलाई, लेकिन दोनों पार्टियों की खुशमिजाजी सीट शेयरिंग के मुद्दे पर खत्म हो गई और उनकी राहें अलग हो गईं।

गैर-कांग्रेसी मुहिम में शामिल होने के 20 साल बाद, जब सत्ताधारी पार्टी ने कांग्रेस को जमीनी स्तर से उखाड़ दिया, अब वह खुद को मुश्किल परिस्थिति में देख रही है, क्योंकि बीजेपी मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर रही है। बीजेडी के एक वरिष्ठ उपाध्यक्ष ने भी इस ओर इशारा किया। बीजेडी के नेता अब अहसास करते हैं कि ओडिशा को ‘कांग्रेस मुक्त’ करने से क्षेत्रीय दल को फायदा नहीं हुआ, बल्कि बीजेपी को उभार का मौका मिल गया। बीजेपी आदिवासी, दलित, पिछड़े वर्ग का अधिकतर वोट चुनावों में हासिल करने लगी है, जो कभी कांग्रेस के लिए वोट बेस था। कांग्रेस का वोट बेस बनने वाले अल्पसंख्यक भी बीजद से दूर हो गए हैं। अल्पसंख्यक वोट नहीं मिलना भी बीजेपी के लिए ओडिशा में कोई समस्या नहीं है, क्योंकि ईसाई यहां की कुल आबादी के 2.77 फीसदी और मुस्लिम 2.17 फीसदी हैं। इसलिए बीजेपी की हिंदुत्व नीति ओडिशा में भगवा दल के प्रसार के लिए काफी है।

बीजेपी की हिंदुत्व छवि की काट के लिए बीजेडी प्रमुख नवीन पटनायक ने 2019 के बाद एक नीति बनाई है जिसके तहत अलग-अलग धर्मों के धार्मिक स्थलों को विकसित किया जा रहा है। राज्य सरकार ने 3,200 करोड़ रुपए की लागत से जगन्नाथ हेरिटेज कॉरिडोर प्रॉजेक्ट की शुरूआत की है। नवीन पटनायक ने भगवान जगन्नाथ को उड़िया सम्मान और गौरव का प्रतीक कहा। सीएम ने संबलपुर के मां समलेश्वरी मंदिर के विकास के लिए 200 करोड़ रुपये के पैकेज की भी घोषणा की है। 2021-22 के बजट में राज्य सरकार ने पुरी में जगन्नाथ श्राइन और भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर के लिए विकास के लिए 742 करोड़ रुपए का आवंटन किया। मयूरभंज और केंद्रपाड़ा में भी मंदिरों को समर्थन देने की घोषणा हुई है।

पटनायक, जो 16 अक्टूबर, 2021 को 75 साल के हो जाएंगे, और वर्ष 2000 से मुख्यमंत्री बन हुए हैं। उन्हें कभी भी धार्मिक रूप से इतना सक्रिय नहीं देखा गया। हालांकि अपने पिता बीजू पटनायक की तरह वह चुनाव प्रचार का शुभारंभ और जीत के बाद जगन्नाथ मंदिर जाते हैं। 2019 के बाद से पटनायक धार्मिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और ओडिया भाषा और संस्कृति को ध्यान में रखर नीतियां बना रहे हैं, ताकि बीजेपी का मुकाबला किया जा सके। सीपीआई (एम) नेता अली किशोर पटनायक कहते हैं, ”अपने 5वें कार्यकाल में नवीन पटनायक ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलना शुरू कर दिया है।”

हाल ही में पिपिली विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई है। देश की सबसे पुरानी पार्टी को कुल 1,80,93 वोटों में से केवल 4,261 (2.37 फीसदी) वोट मिले। नवीन पटनायक की पार्टी इस सीट पर 20,916 वोट से जीतने में कामयाब रही, लेकिन इसे बीजेपी के कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ा। बीजेपी को यहां 42 फीसदी वोट मिले, जबकि बीजेडी को 53.8 फीसदी वोट मिले। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष समीर मोहंती कहते हैं, ”42 फीसदी वोट मिलना छोटी उपलब्धि नहीं है।”

2022 में राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत और निकाय चुनाव होने जा रहे हैं और इसके लिए तीनों ही पार्टियां तैयारी में जुटी हैं। नवीन पटनायक की पार्टी को भगवा दल से चुनौती का सामना करना पड़ेगा। राजनीतिक विश्लेषक ब्रज किशोर मिश्रा कहते हैं ”कांग्रेस की गैर-मौजूदगी में बीजेपी और बीजेडी में आमने-सामने की टक्कर की संभावना है। इसलिए जाहिर तौर पर बीजेपी को कई सीटों पर फायदा हो सकता है।” राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ग्रामीण इलाकों के चुनाव से यह पता चल जाएगा कि 2024 लोकसभा चुनाव में हवा किस ओर बह सकती है। 2012 में बीजेपी के जिला परिषद सदस्यों की संख्या 36 थी जोकि 2017 तक बढ़कर 297 हो गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में यह मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई। 2000 से 2019 के बीच मुख्य विपक्षी पार्टी रही कांग्रेस तीसरे नंबर पर खिसक गई।