राष्ट्रनायक न्यूज।
ड्रग का मतलब होता है दवाईयां, ऐसी दवाईयां जो किसी खास रोग में ली जाती हैं और इन्हें लेने के लिए डॉक्टर की सलाह की जरूरत होती है। लेकिन जब लोग ड्रग को अपनी मर्जी से बिना किसी वजह के लेने लगते हैं तो इसे नशा कहते हैं। शुरू-शुरू में नशे से मोहब्बत शौकिया होती है, लेकिन शौक को मजबूरी बनते और मजबूरी को मौत बनते देर नहीं लगती। नशे की खेती करने वाले ये बात बहुत अच्छी तरह से समझते हैं। वो जानते हैं कि चोट वहीं करनी चाहिए जहां नस कमजोर हो। बॉलीवुड में ड्रग्स की समस्या नई नहीं है। संजय दत्त, कंगना रनौत, फरदीन खान, प्रतीक बब्बर जैसे कई फिल्मी सितारे ड्रग्स के चंगुल में फंसने की कहानी दुनिया को बता चुके हैं। हर बार की तरह इस बार भी कुछ दिन तो ये मुद्दा सुर्खियों में रहेगा, लेकिन इसके बाद बात आई-गई हो जाएगी। लेकिन सुशांत की मौत के बाद से आर्यन की गिरफ्तारी तक पिछले सवा साल से दो नाम हर किसी की जुबान पर हैं एनसीबी और एनडीपीएस। एनडीपीएस की धाराओं को लेकर भी पिछले सवा सालों में तमाम तरह की बातें हुई। कौन सी ड्ग्स, कैसी कैसी ड्रग्स और इसकी कितनी मात्रा, ड्रग्स की खरीद-फरोख्त मीडियम और कमर्सियल क्वांटिटी, एनडीपीएस की कौन सी धाराएं जमानती और कौन सी गैर जमानती। कुछ ग्राम का हेरफेर ड्रग्स के कानून को बदल देता है। कितनी मात्रा आपको फंसा सकती है या फिर बचा सकती है। ड्रग्स से संबंधित व्हाट्सअप चैट क्या अदालत में मान्य हैं। ये वो सवाल हैं जिनके जवाब हर कोई जानना चाहता है।
नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के तहत देश में नशीले पदार्थों के उपयोग, निर्माण, खरीद और बिक्री के खिलाफ कानून है। इसे संक्षेप में एनडीपीएस एक्ट कहते हैं। हिंदी में इसका नाम स्वापक औषधि और मन:प्रभावी अधिनियम, 1985 है। इस अधिनियम के तहत दो प्रकार के नशीले पदार्थ हैं – नारकोटिक और साइकोट्रोपिक। नारकोटिक्स का अर्थ नींद से है और साइकोट्रोपिक का अर्थ उन पदार्थों से है जो दिमाग पर असर डालते हैं। एनडीपीएस एक्ट में अभी तक तीन बार 1988, 2001 और 2014 में बदलाव भी हुए हैं। संसद ने साल 1985 में इसे पास किया था. यह कानून किसी एक व्यक्ति को मादक दवाओं के निर्माण, उत्पादन, खेती, स्वामित्व, खरीद, भण्डारण, परिवहन या उपभोग करने के लिए प्रतिबंधित करता है। कुछ का उत्पादन चिकित्सा आवश्यकताओं या अन्य कार्यों के लिए उत्पादन आवश्यक होता है, लेकिन उन पर कड़ी निगरानी रखनी होती है। अन्यथा लोग नशे के आदी हो सकते हैं। इसके नियंत्रण के लिए एनडीपीएस एक्ट बनाया गया है।
एनडीपीएस एक्ट के तहत केंद्र सरकार प्रतिबंधित दवाओं की सूची जारी करती है, जिसे राज्य सरकारों की सलाह पर समय-समय पर अपडेट भी किया जाता है। नारकोटिक ड्रग्स का मतलब नींद लाने वाली दवाएं हैं, जो प्राकृतिक हैं या प्राकृतिक पदार्थों से बनी हैं। जैसे चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन, कोकीन, मॉर्फिन और पसंद इस श्रेणी में आते हैं। साइकोट्रोपिक का अर्थ है मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली दवाएं, जो रासायनिक आधारित हैं या जो दो या तीन प्रकार के रसायनों को मिलाकर तैयार की जाती हैं जैसे- एलएसडी, एमएमडीए, अल्प्राजोलम आदि। इनमें से कुछ दवाएं जीवन रक्षक भी होती हैं, लेकिन अगर बिना डॉक्टरी सलाह के इनका अधिक मात्रा में सेवन किया जाए तो इनका नशा खतरनाक हो सकता है। एनसीबी की छापेमारी में दोनों तरह की दवाएं बरामद हुई हैं।
क्या कहती हैं धाराएं: एनडीपीएस एक्ट की धारा 20 में ड्रग्स का उत्पादन करने, बनाने, रखने, बेचने, खरीदने, दूसरी जगह भेजने, एक राज्य से दूसरे राज्य में आयात या निर्यात करने और इस्तेमाल करने पर सजा का प्रावधान है। कम मात्रा- धारा 20 में क्लॉज दो के (ए) में कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति के पास प्रतिबंधित ड्रग्स की कम मात्रा पाई जाती है तो उसे 6 महीने तक की जेल या 10 हजार रुपये का जुमार्ना या दोनों सजा हो सकती है। इस तरह का अपराध जमानती होता है। यानी आसानी से जमानत मिल जाती है. हालांकि बार-बार पकड़े जाने पर जमानत मिलना मुश्किल हो जाता है। कमर्शियल क्वांटिटी- धारा 20 में क्लॉज दो के (बी) में कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति के पास कम मात्रा से अधिक प्रतिबंधित नशीला पदार्थ पाया जाता है तो ऐसे व्यक्ति को 10 साल तक की जेल हो सकती है और 1 लाख रुपये तक का जुमार्ना लगाया जा सकता है। इस एक्ट के तहत पुलिस भी कार्रवाई कर सकती है। इस तरह के अपराध गैर जमानती होते हैं।
बीच की मात्रा- कम और कमर्शियल की बीच की मात्रा होने पर 10 साल तक की सजा और एक लाख रुपये तक का जुमार्ने का प्रावधान है। या दोनों हो सकते हैं। ऐसे मामलों में जमानत मिलना या न मिलना पकड़े गए नशीले पदार्थ और पुलिस की धाराओं पर निर्भर करता है। इसके अलावा केंद्र और राज्यों में अलग से नारकोटिक्स विभाग भी होते हैं। नशीले पदार्थों से जुड़े मामलों में कार्रवाई करने वाली सर्वोच्च जांच संस्था नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो है। इसकी स्थापना 17 मार्च, 1986 को हुई थी।
हिंदी फिल्म सुपरस्टार शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की क्रूज ड्रग्स केस में जमानत हो गई है। लेकिन इससे पहले अक्टूबर के महीने में ही दो बार पहले मजिस्ट्रेट की अदालत और फिर विशेष अदालत द्वारा जमानत देने से इनकार किए जाने के बाद इसको लेकर काफी चर्चा हुई। 23 वर्षीय खान के पास से कोई ड्रग्स बरामद नहीं हुआ, लेकिन जांचकतार्ओं ने आरोप लगाया कि वह एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क से ड्रग्स खरीदने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। कहा गया कि खान की व्हाट्सएप चैट से पता चलता है कि वह “नियमित आधार पर मादक पदार्थों के लिए अवैध नशीली दवाओं की गतिविधियों” में शामिल था। इस मामले में पैटर्न रिया चक्रवर्ती के समान है, जिसे सितंबर 2020 में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के लिए ड्रग्स खरीदने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। दोनों ही मामलों में फिल्म-उद्योग कनेक्शन वाले आरोपी लोगों को बार-बार जमानत से वंचित कर दिया गया, यहां तक कि जांचकतार्ओं ने अपना मामला बनाने के लिए गिरफ्तार लोगों के फोन से व्हाट्सएप चैट पर बहुत भरोसा किया और दावा किया कि वे एक व्यापक साजिश का हिस्सा थे। रिया के समर्थकों की तरह शाहरूख खान के समर्थकों ने गिरफ्तारी के पीछे राजनीतिक ऐंगल ढूंढ़ना शुरू कर दिया।
एनडीपीएस एक्ट की धारा 41 के तहत सरकार को नशा करने वाले की पहचान, इलाज और पुनर्वास केंद्र स्थापित करने का अधिकार है। धारा 42 के तहत, जांच अधिकारी को वारंट या प्राधिकरण पत्र के बिना नशीले पदार्थों की तलाशी लेने, जब्त करने और गिरफ्तार करने का भी अधिकार है। राज्य पुलिस एनडीपीएस एक्ट के तहत भी कार्रवाई कर सकती है। इसके साथ ही केंद्र और राज्यों में अलग-अलग नारकोटिक्स विभाग भी बनाए गए हैं। यह मादक पदार्थों की तस्करी और इसके अवैध उपयोग की निगरानी करता है।
कम मात्रा में दवा का सेवन करने पर एक साल की कैद या 10 हजार रुपये तक जुमार्ना या दोनों हो सकता है। व्यक्ति को आसानी से जमानत मिल जाती है लेकिन कई बार पकड़े जाने पर जमानत मिलना मुश्किल हो जाता है। एनडीपीएस एक्ट के तहत व्यावसायिक मात्रा यानी खरीद-बिक्री के उद्देश्य से नशीला पदार्थ रखने पर 10 से 20 साल की कैद और एक से दो लाख रुपये तक के जुमार्ने से दंडित किया जा सकता है। ऐसे में जमानत नहीं होती है। कम मात्रा और व्यावसायिक मात्रा के बीच में किसी के पास ड्रग्स रखने पर 10 साल तक की कैद या एक लाख रुपये तक का जुमार्ना या दोनों दिया जा सकता है। ऐसे मामलों में जमानत मिलना या न मिलना पकड़े गए नशीले पदार्थों और पुलिस की धाराओं पर निर्भर करता है।
कानून की भाषा में एक टर्म है आदतन अपराधी मतलब कि अगर कोई व्यक्ति बार-बार अपराध करता है तो उसे एनडीपीस एक्ट के तहत पहले की तुलना में अगली बार डेढ़ गुना सजा मिलती है। इसके साथ ही मृत्युदंड भी दिया जा सकता है। ऐसा एनडीपीएस एक्ट की धारा 31 (क) के तहत किया जा सकता है। हालांकि ऐसा बहुत कम होता है। इस कानून में एक राहत भी है। अगर कोई व्यक्ति ड्रग्स के नशे का आदी है, लेकिन वह इसे छोड़ना चाहता है, तो सेक्शन 64ए के तहत उसे इम्युनिटी यानी राहत मिल जाएगी. सरकार उसका इलाज भी कराती है। एनडीपीएस एक्ट के तहत सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट के गठन का प्रावधान भी है। इन कोर्ट का गठन एनडीपीएस एक्ट की धारा 36 के तहत होता है. ये कोर्ट नशीले पदार्थों से जुड़े मामलों की ही सुनवाई करते हैं। एनडीपीएस एक्ट के फर्जी मुकदमों से बचाने के लिए धारा 50 बचाव का काम करती है। इसके तहत अगर पुलिस या किसी जांच अधिकारी को किसी के पास नशीला पदार्थ होने का शक हो, तो उसकी तलाशी किसी गजेटेड अधिकारी या मजिस्ट्रेट के सामने ही ली जा सकेगी।
कानून के जानकारों के मुताबिक आर्यन खान की सबसे ज्यादा मुश्किल व्हाट्स एप चैट ने बढ़ाई है। आर्यन के पास से कोई ड्रग्स बरामद नहीं हुई थी। उसके दोस्त अरबाज मर्चेंट के पास से भी महज 6 ग्राम चरस मिला था। जबकि चरस की स्मॉल क्वांटिटी ही सौ ग्राम है। लेकिन आर्यन के मोबाइल से जो व्हाट्स एप चैट मिला, उसमें कुछ विदेशियों और अनन्या पांडेय के साथ उसकी बातचीत को एनसीबी ने सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया। आपको याद होगा रिया चक्रवर्ती, दीपिका पादुकोण, श्रद्धा कपूर, सारा अली खान, रकुलप्रीत को भी व्हाट्स एप चैट की वजह से ही एनसीबी के दफ्तर में पूछताछ के लिए जाना पड़ा था। लिहाजा ये सवाल उठता है कि ड्रग्स के केस में व्हाट्स एप चैट कितना अहम सबूत है। तो कानून के हिसाब से व्हाट्स एप चैट जांच शुरू करने के लिए तो एक अहम सबूत हो सकता है। लेकिन सिर्फ़ व्हाट्स एप चैट के बिनाह पर किसी आरोपी को अदालत में दोषी साबित नहीं किया जा सकता।
एनडीपीएस एक्ट की धारा 27 किसी भी नशीली दवा के सेवन से संबंधित है और इसे प्रतिबंधित किया गया है। 27 ए में इस प्रकार के अवैध व्यापार को प्रतिबंधित किया गया है और इसका वित्त पोषण करने वाले अपराधियों को कड़े दंड का प्रावधान किया गया है। इसमें 20 साल तक की सजा का प्रावधान है। 2020 से पहले एडीपीएस की धारा 67 के तहत एनसीबी की हिरासत में दिया गया बयान अदालत में मान्य हुआ करता था। बाद में इसमें कुछ बदलाव देखने को मिला। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने एनडीपीएस अधिनियम के तहत एक मामले में आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोपों को यह देखते हुए खारिज किया कि मामला धारा 67 के तहत अधिकारियों को दिए गए अन्य आरोपियों के बयानों पर आधारित था, जो सबूत में अस्वीकार्य हैं। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि पिछले साल तोफान सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि एनडीपीएस अधिकारियों के सामने दिए गए इकबालिया बयान सबूत के तौर पर अस्वीकार्य हैं।
अभिनय आकाश


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