राष्ट्रनायक न्यूज।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की घड़ी लगातार नजदीक आती जा रही है। हफ्ते-दस दिन में चुनाव की घोषणा के साथ ही प्रदेश में आचार संहिता भी लग जाएगी। 14 मार्च तक 18वीं विधान सभा का गठन हो जाना है। समय के साथ तमाम पार्टियों में प्रचार के साथ-साथ प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया भी तेजी पकड़ती जा रही है। टिकट के लिए दावेदारों में सबसे अधिक मारामारी भाजपा और समाजवादी पार्टी के भीतर दिखाई दे रही है। पहली बार बसपा में टिकट के इच्छुक नेताओं की संख्या काफी कम नजर आ रही है, उससे भी खराब स्थिति कांग्रेस की है। प्रियंका गांधी वाड्रा की लाख कोशिशों के बाद भी पार्टी को तमाम विधान सभा सीटों पर जिताऊ उम्मीदवार नहीं मिल पा रहे हैं। इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल के भीतर भी टिकट के लिए नेताओें के बीच काफी गहमागहमी नजर आ रही है।
सभी दलों का शीर्ष आलाकमान प्रत्याशी चयन के लिए उम्मीदवार की योग्यता, जातीय गणित से लेकर क्षेत्रीय समीकरण भी देख रहे हैं। चुनाव तारीखों के ऐलान से पहले ही प्रचार अभियान बेहद तेज हो चुका है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि यूपी की जनता का मूड क्या है? यूपी में क्या किसी एक पार्टी की दो बार सरकार नहीं बनने के इतिहास को ठेंगा दिखाते हुए एक बार फिर योगी मुख्यमंत्री बनेंगे या अखिलेश यादव की पांच वर्ष के बाद सत्ता से वापसी होगी। बसपा सुप्रीमो मायावती या फिर कांग्रेस की महासचिव और यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा उनसे (योगी से) सत्ता छीनने में कामयाब रहेंगे? तमाम सर्वेक्षणों पर नजर दौड़ाई जाए तो कयास यही लगाए जा रहे हैं कि यूपी में एक बार फिर बीजेपी की सरकार बनने जा रही है।
समाजवादी पार्टी भाजपा को टक्कर तो दे रही है, लेकिन सत्ता में आने में कामयाब होती नहीं दिख रही है। तमाम सर्वेक्षणों का निचोड़ निकाला जाए तो इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में 403 सीटों वाली यूपी विधानसभा में बीजेपी 230 से 249 सीटें जीत सकती है। वहीं, समाजवादी पार्टी 137 से 144 सीटों पर कब्जा कर सकती है। बीएसपी और कांग्रेस के प्रदर्शन में इस बार भी सुधार होता नहीं दिख रहा है। सर्वे के नतीजे कहते हैं कि मायावती की पार्टी जहां 9-14 सीटों पर सिमट सकती है तो कांग्रेस को महज 4-6 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की जा रही है। यह जरूर है कि पूरे प्रदेश में एक की बयार नहीं बह रही है, कहीं बीजेपी अच्छी स्थिति में नजर आ रही है तो कहीं समाजवादी पार्टी भारी पड़ रही है। तमाम चुनाव सर्वे के अनुसार उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 38.6 फीसदी वोट मिल सकते हैं तो समाजवादी पार्टी 34.4 फीसदी वोट पाती दिख रही है। बसपा को 14.1 फीसदी तो कांग्रेस को 6.1 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है। वहीं अन्य के खाते में 6.8 फीसदी वोट जा सकते हैं। ऐसा लग रहा है कि ज्यों ज्यों चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है त्यों त्यों भाजपा के प्रति वोटरों की नाराजगी कम होती जा रही है। इसकी एक वजह यह भी है कि योगी सरकार ने पिछले एक-डेढ़ वर्ष में जनता के लिए सरकारी खजाना पूरी तरह से खोल दिया है। वोटर नहीं चाहते हैं कि किसी और को वोट देकर वह इस खजाने का रूख किसी और तरफ मोड़ दें।
खैर, पूरे प्रदेश के चुनाव की स्थितियों का अलग-अलग आकलन किया जाए तो सबसे दिलचस्प स्थिति पश्चिम यूपी की है। यहां समाजवादी पार्टी को फायदा है लेकिन बीजेपी भी ज्यादा पीछे नहीं नजर आ रही है। मतलब किसान आंदोलन और किसानों की नाराजगी के चलते बीजेपी को जितना नुकसान सोचा जा रहा था, उसे उतना नुकसान नहीं हो रहा है। सर्वे के मुताबिक, पश्चिम उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनाव के मुकाबले समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रह सकता है। लेकिन बीजेपी अब भी यहां सबसे अधिक सीटें जीतती दिख रही है। पश्चिमी यूपी की 97 सीटों में बीजेपी 57-60 जीत सकती है तो समाजवादी पार्टी 35-30 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है। बसपा को यहां 0-1 और कांग्रेस को 1-2 सीटें मिलने की संभावना है। पश्चिम यूपी को लेकर सर्वे के नतीजे इसलिए भी दिलचस्प हैं, क्योंकि यूपी के इसी हिस्से में किसान आंदोलन का सबसे अधिक असर था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कृषि कानूनों की वापसी के बाद किसानों की नाराजगी पूरी तरह खत्म हो गई है।
बुंदेलखंड में भी बीजेपी की स्थिति बेहतर नजर आ रही है। सर्वे के अनुसार बुंदेलखंड की करीब 18 सीटों में बीजेपी को 14-15 तो समाजवादी पार्टी को 3-5 सीटें मिलने का अनुमान है। बसपा को यहां पर एक सीट मिल सकती है तो कांग्रेस का यहां खाता खुलता नहीं दिख रहा है। इसी तरह से रुहेलखंड में बीजेपी 30-36 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है तो समाजवादी पार्टी के खाते में 17-18 सीटें जा सकती हैं। बीएसपी को 1-2 तो कांग्रेस को 1 सीट मिल सकती है। अवध क्षेत्र में बीजेपी 57-65 सीटें जीत सकती है तो समाजवादी पार्टी यहां 31-33 सीटों पर कब्जा कर सकती है। सर्वे के मुताबिक, बीएसपी को 3 सीटें मिल सकती है तो कांग्रेस 2-3 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है। यहां 1 सीट अन्य के खाते में भी जा सकती है।
मध्य यूपी की बात करें तो यहां की 35 सीटों में से बीजेपी को 17-21 सीटें, तो समाजवादी पार्टी को 12-13 सीटें मिल सकती है। बीएसपी एवं कांग्रेस और अन्य के खाते में 0-1 सीटें रह सकती हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाद पूर्वांचल से भी समाजवादी पार्टी को काफी उम्मीदे हैं। यहां कुल 102 विधानसभा सीटें हैं। पूर्वांचल की वाराणसी सीट से ही प्रधानमंत्री मोदी लोकसभा चुनाव जीत कर जाते हैं। गोरखपुर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ है। यहां मोदी की प्रतिष्ठा सबसे अधिक दांव पर लगी है। सर्वे के नतीजे बताते हैं कि बीजेपी यहां 49-58 सीटें जीत सकती है तो समाजवादी पार्टी भी यहां 39 से 45 सीटें जीतती दिख रही है। बीएसपी को यहां 5-6 सीटें मिल सकती हैं तो कांग्रेस का यहां भी खाता खुलता नहीं दिख रहा है। यूपी चुनाव में ‘आप’ (आम आदमी पार्टी) और ओवैसी की पार्टी वोट कटवा ही नजर आ रही हैं। यह दोनों दल किसको कितना नुकसान पहुंचाएंगे इसका पता नतीजे आने के बाद चलेगा। इसी प्रकार से भीम आर्मी बसपा के लिए नुकसानदायक साबित हो रही है। बात आम आदमी पार्टी की कि जाए तो उसके पास कोई ऐसा चेहरा ही नहीं है जिसे वह यूपी में सीएम के रूप में आगे कर सके। कहने को संजय सिंह की यूपी की जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन उनकी स्वयं की ही छवि विवादों से घिरी है, इसके चलते आप को वह कोई खास फायदा नहीं पहुंचा पा रहे हैं। फिर भी फ्री की राजनीति करने में माहिर अरविंद केजरीवाल ने वोटरों को कई तरह के लालच जरूर दे रखे हैं।
संजय सक्सेना
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