संजय कुमार सिंह। राष्ट्रनायक न्यूज।
बनियापुर (सारण)। अनुकूल वातावरण नहीं मिल पाने के कारण पशु और पक्षी दोनों की ही कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर है। बिगत के कुछ वर्षो पर गौर करें तो जल, जंगल और जमीन सभी का संतुलन बिगड़ा है, जिसका प्रभाव न सिर्फ जलवायु बल्कि जीवों पर भी पड़ा रहा है। मनुष्य अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिये धड़ल्ले से पेड़- पौधों की कटाई कर रहे है। जबकि पेड़ लगाने वालों की संख्या नगण्य होती जा रही है।जिस वजह से जंगल व हरियाली सिमटती जा रही है। शहरों को छोड़ गांव में भी पक्के मकान फैलते जा रहे हैं। गांवों के जोहड़ों में पहले के अपेक्षा अब पानी नहीं रहा, जिससे पशु-पक्षी गर्मी के मौषम में प्यास से भी दम तोड़ रहे हैं। प्राकृतिक आवास का तेजी से सिमटना ही पशु- पक्षियों के विलुप्त होने का बड़ा कारण है।पिछले दो- तीन दशक के दौरान आए परिवर्तन के कारण शीशम, महुआ सहित कई अन्य पेड़-पौधों की प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। हालांकि वन्य जीवों के विलुप्त होने के बावजूद भी मनुष्य अपनी जीवनशैली को बदलने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में विभिन्न पक्षियों के अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।पक्षियों का प्राकृतिक आवास उजड़ता जा रहा है। बढ़ते शहरीकरण और उद्योगीकरण के कारण पेड़ पौधे लगातार कम होते जा रहे हैं।
सूख चुके हैं जोहड़ व तालाब
गांवों स्थित जोहड़ व तालाब प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने के कारण सूख चुके है। जबकि कही-कही तालाब में पानी दिखाई भी देता है,तो वह पूरी तरह से दूषित रहता है। मानव की बढ़ती आवश्यकताओं के बीच जलीय पक्षियों का प्राकृतिक आवास भी सुरक्षित नहीं है। जोहड़ व तालाबों का पानी सूखने के कारण जानवरों को पानी की उपलब्धता नहीं हो पाती।वही जानवरों का शिकार भी इनकी संख्या को घटा रहा है। कुछ वर्षो पूर्व तक गीदड़, सियार एवं अन्य कई जानवर अमूमन राह चलते दिखाई पड़ जाते थे। जो अब न के बराबर दिखते है।
गायब हो रहे है पक्षी।
बढ़ते संसाधन भी पक्षियों के गायब होने का कारण बनते जा रहे है। पक्षियों का शिकार व अवैध व्यापार किया जा रहा है। लोग सजावट व मनोरंजन के लिए तोते व रंग- बिरंगी गोरैया जैसे पक्षियों को पिंजरो में कैद कर रहे है। पक्षी विभिन्न रसायनों व जहरीले पदार्थों के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं। ऐसे पदार्थ भोजन या फिर त्वचा के माध्यम से पक्षियों के अंदर पहुंच कर उनकी मौत का कारण बनते हैं। डीडीटी, विभिन्न कीटनाशक और खरपतवार खत्म करने वाले रसायन पक्षियों के लिए बहुत खतरनाक सिद्ध हो रहे हैं। मोर जैसे पक्षी कीटनाशकों की वजह से काल के गाल में समां रहे हैं। गांवों में बिछाई जा रही खुली बिजली लाइनें भी पक्षियों के लिए काल बने हुए है। गांवों में करंट की चपेट में आने से कौवा, गौरैया आदि की मौत होना आम बात हो चुकी है। जिला से गिद्ध पूरी तरह से गायब हो चुके है।गिद्ध मरे हुए पशुओं का मांस पर निर्भर रहते है। जो पर्यावरण के लिये भी बेहतर माना जाता है। हाल के दिनों में कौवे की संख्या भी काफी कम देखी जा रही है। बताया जाता है कि शिकार के कारण तीतर भी विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुका है।वही कई जगहों पर किसानों द्वार फसल अवशेषों में लगाई जा रही आग भी पक्षियों के आशियाने छीन रही है।


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