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यह तो संविधान का अपमान भी है

यह तो संविधान का अपमान भी है

लेखक: अहमद अली

मुकदमा हुआ या नहीं यह तो हमें नहीं पता।पर लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन एस.एन. सुब्रह्मण्यन का हालिया बयान जिसमें उसने कर्मचारियों से सप्ताह में 90 घंटे काम करने की अपील की है, संविधान के अनुच्छेद 42 और 43 का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन है। ये दोनों अनुच्छेद मजदूरों के लिये आठ घंटा कार्य दिवस के लिये प्रावधान मुहैया करते हैं। आईये जानते हैं कि ये दोनोंं अनुच्छेद क्या कहते हैं।

अनुच्छेद 42 :- यह राज्य को मजदूरों के लिए “सुरक्षित और मानवतापूर्ण काम करने की स्थिति” तथा मातृत्व राहत प्रदान करने का निर्देश देता है।

अनुच्छेद 43 :- यह राज्य को यह निर्देशित करता है कि वह मजदूरों को उनके श्रम के अनुसार उचित जीवन स्तर और काम की स्थिति सुनिश्चित करे।

संविधान के अनुच्छेद 42 – 43 और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के दिशानिर्देशन में ही मजदूरों के लिये 24 घंटों में 8 घंटे काम का नियम तय किया गया जो फैक्ट्री अधिनियम, 1948 में अंतर्निहित है। ILO के पहल पर ही 1919 में प्रति दिन 8 घंटे और प्रति सप्ताह 48 घंटे काम का मानक तय किया गया था।

एस एन सुब्रह्मण्यम का यह बयान न केवल संविधान का उल्लंघन है बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर आन्दोलन एवं संविधान शिल्पी डा० बी आर अम्बेडकर का भी अपमान है, जिन्होंने भारत में 8 घंटा कार्य दिवस के लिये 1928 से ही प्रयास शुरु कर दिया था।

इतिहास सर्वविदित है कि 1 मई 1886 से अमेरिका में मजदूरों ने 8 घंटा कार्य दिवस के लिये देश व्यापी आन्दोलन शुरु किया था।उनकी मुख्य माँग थी कि मजदूरों से केवल आठ घंटा ही काम लिया जाय ताकि वो भी एक इंसान की जिन्दगी जी सकें।बाकी 16 घंटों में उन्हें मनोरंजन एवं आराम करने का प्रयाप्त समय मिल सके।पहले उनसे 12-13 घंटे काम लिया जाता था जिससे उनका जीवन अस्त ब्यस्त एवं दयनीये था।कई किस्म की बिमारियों से वो घिरे रहते थे। अपने बच्चों को न प्यार दे पाते और ना ही उचित देखभाल कर पाते थे।कहा जाता है कि वो मेहनतकश अपने बच्चों को सोये ही में बडे़ होते देखने को मजबूर थे, अर्थात फैक्ट्री से जब वो देर रात तक घर लौटते उस समय तक उनके बच्चे सो जाते थे और दूसरे दिन तड़के ही फिर अपने काम पर चले जाते।

आन्दोलन जोर पकडा़ और 4 मई 1886 को शिकागो शहर के हेमार्केट स्क्वायर में एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर पुलिस ने गोलियाँ चलाई जिसमें कई मजदूर शहीद हुए।कई गिरफ्तार कर लिये गये। कई मजदूरों को फाँसी हुई।

कहानी लम्बी है, अतः विस्तार या विषयांतर से बचते एवं ऐतिहासिक तथ्यों पर केन्द्रित होते हुए यह पाया जाता है कि आंदोलन की आँच भारत में भी पहुंची और यहाँ भी आठ घंटे काम की माँग मजदूर आन्दोलनों तथा श्रमिक संगठनों का मुख्य ऐजेंडा बन गया।आजादी के बाद संविधान में भी इसे अंगीकार कर लिया गया।

1928 में डा० अंबेडकर ने बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल में 8 घंटे कार्य दिवस की माँग को उठाते हुए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और अन्य देशों के श्रम कानूनों का हवाला दिया तथा भारत में भी श्रमिकों के लिए 8 घंटे कार्य दिवस की मांग की थी।मजदूर आन्दोलनों का तेज धार और डा० अम्बेडकर का प्रयास रंग लाया फलतः 1942 में गोरी सरकार को औद्योगिक कानूनों में संशोधन कर 8 घंटा कार्य दिवस लागू करना पडा़। याद दिलाते चलें कि कोरोना काल में भी केन्द्र सरकार के स्तर से ऐसी आवाज़ सुनाई पडी़ थी कि श्रम कानूनों में संशोधन कर काम के घंटों को बढ़या जायेगा , जिस पर श्रमिक संगठनों की घोर आपत्ति और आन्दोलन भी हुए थे।अभी केन्द्र सरकार का यह मजदूर विरोधी फैसला खटाई में पडा़ हुआ है।

असल में पूँजीपतियों या कार्पोरेटों का नजरिया मेहनतकश अवाम के प्रति पूर्णतः अमानवीय होती है।वो सिर्फ अपना मुनाफा देखते हैं।श्रमिकों की जिन्दगी चाहे कितनी ही नारकीय हो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, बस उनकी तिजोरियाँ भरती रहनी चाहिये।L&T के चेयरमैन एस एन सुब्रह्मण्यन के बयान को हमें इसी दृष्टिकोण से देखना होगा। उस पर संविधान को अपमानित करने का दुस्साहस के विरुद्ध अवश्य ही कानूनी कार्रवाई करनी चाहिये।

(लेखक के अपने विचार है।)

cpimahamadali@gmail.com

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