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पितृपक्ष में करे पितरों का तर्पण:पं प्रकाश तिवारी

पितृपक्ष में करे पितरों का तर्पण:पं प्रकाश तिवारी

भारतीय संस्कृति की एक बहुत बड़ी विशेषता है कि यह विभिन्न संस्कारों एवं धर्म पालन के द्वारा मानव को समुन्नत करने के उपाय बताती है। जीवन की परिसमाप्ति मृत्यु से होती है। इस ध्रुव सत्य को सभी ने स्वीकार किया है और यह प्रत्यक्ष दिखलाई भी पड़ता है।

हमारे शास्त्रों में मृत्यु का स्वरूप मरणासन्न व्यक्ति की अवस्था और कल्याण के लिए अंतिम समय में किए जाने वाले कृत्यों तथा विविध प्रकार के दानों आदि का निरूपण हुआ है।साथ ही मृत्यु के पश्चात और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान (दशगात्रविधि निरूपण) तर्पण,श्राद्ध, एकादशाह,सपिण्डीकरण,अशौचादि निर्णय,कर्मविपाक, पापों के प्रायश्चित का विधान आदि वर्णित है।

सामान्यत: जीव से इसी जीवन में पाप और पुण्य दोनों होते हैं। जिसके कारण मृत्यु के पश्चात प्राणी उन कर्मों का फल भोगता है। अतः उस प्राणी के उद्धार के लिए पुत्र-पौत्रादि का यह कर्तव्य होता है कि अपने माता-पिता तथा पूर्वजों के निमित्त शास्त्रोक्त कर्म करें जिससे उन प्राणियों को परलोक में सुख-समृद्धि की प्राप्ति हो सकें। जैसे कि कहा गया है पुन्नमनरकात् त्रायते इति पुत्र:” जो नर्क से जो त्राण(रक्षा) करें वहीं पुत्र हैं, इसीलिए भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म में पितृॠण से मुक्त होने के लिए माता-पिता तथा परिवार के अन्य मृत प्राणियों के निमित्त श्राद्ध करने की अनिवार्यता बतायी गयी है। श्राद्ध कर्म को पितृ कर्म भी कहते हैं। श्राद्ध का मतलब होता है श्रद्धाया इदं श्राद्धम् (जो श्रद्धा से किया जाय, वही श्राद्ध है।श्रद्धया दीयते यस्मात् तच्छ्राद्धम्परिकीर्तितम्।
अर्थात अपने मृत पितरों के उद्देश्य से श्रद्धा पूर्वक किए जाने वाले कर्म विशेष को श्राद्ध करते हैं। शास्त्रोक्त विधि से श्रद्धा पूर्वक किया हुआ श्राद्ध ही सर्वविध कल्याणकारी होता है।भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से पितरों का दिन प्रारंभ हो जाता है जो इस वर्ष 02/09 2020 से 17/09/2020 अमावस्या तक है। जिसे पितृपक्ष या पितरपख कहते हैं जो 16 दिन की अवधि(पक्ष/पख) है जिसमें सनातनी लोग अपने पितरों को स्मरण करते हुए श्रद्धा पूर्वक पिंडदान करते हैं। इसे सोलह श्राद्ध महालय पक्ष अपर पक्ष आदि नामों से भी जाना जाता है। पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में मृत प्राणियों का श्राद्ध किया जाता है,परंतु गया श्राद्ध का विशेष महत्व है। वैसे तो इसका भी शास्त्रीय समय निश्चित है, परंतु गया सर्वकालेषु पिण्डं दधाद्विपक्षणं कहकर सदैव पिण्डदान करने की अनुमति दे दी गई है।
पितृपक्ष में जो प्राणी अपने पितरों को तिल-मिश्रित जल की तीन-तीन अंजलिया प्रदान करते हैं, उनके जन्म से तर्पण के दिन तक के पापों का नाश हो जाता है।जिस तिथि को माता-पिता की मृत्यु हुई हो उस तिथि को श्रद्धा पूर्वक श्राद्धादि करने से प्राणी #पितृॠण से मुक्त हो कर धन-धान्य,पुत्र-पौत्रादि,आयु,आरोग्य,अतुल ऐश्वर्य और अभिलषित वस्तुओं की प्राप्ति करता है,साथ ही उसके कुल में वीर,निरोगी, शतायु एवं श्रेय प्राप्त करने वाली संततियां उत्पन्न होती है। अतः समस्त प्राणियों को अपने कल्याण के निमित्त श्रद्धा पूर्वक पितृ कर्म को करना चाहिए।

कैसे करें पितृ पूजन?

श्राद्ध वाले दिन सुबह स्नानादि के पश्चात पूजन स्थल पर पूर्वाभिमुख बैठकर दो कुशा की पवित्री दाहिने हाथ की अनामिका में और तीन कुशा की पवित्री बाएं हाथ की अनामिका उंगली में धारण करके तिल, कुशा, अक्षत, श्वेत पुष्प, चंदन, गंगाजल व कच्चा दूध के साथ पितृ तर्पण का संकल्प करें। इसके पश्चात पितरों के निम अग्नि में गाय के दूध से बनी खीर अर्पण करें। ब्राह्मण भोजन से पहले पंचबलि यानी गाय,कुत्ते, कौवे, देवता और चींटी के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकाले तत्पश्चात एक या तीन ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

जल कैसे दे?

पितृ पक्ष में हम अपने पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करते हैं यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके जल में काला तिल मिलाकर दोपहर के समय दिया जाता है। जिस दिन पूर्वज की देहांत की तिथि होती है उस दिन अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है।पितरों को प्रसन्न करने वाली चीजें- केला, सफेद फूल, उड़द, गाय का दूध, घी, खीर, यव, मूंग व गन्ना आदि से पितर प्रसन्न होते हैं।पितृपक्ष के दौरान कुछ अहम बातों है जिनकाख्याल रखना चाहिए। जो व्यक्ति पितरों का श्राद्ध करता है उसे पितृपक्ष में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। पितृपक्ष में नशीले पदार्थों का सेवन, तामसिक भोजन, मांस-मछली, मंदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए पितृपक्ष के दौरान चना, मसूर, सरसों का साग, सत्तू, जीरा, मूली, काला नमक, लौकी, खीरा एवं बासी भोजन का निषेध बतलाया गया है। श्राद्ध पक्ष के दौरान नए घर में प्रवेश (गृह-प्रवेश) नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि पितृपक्ष में खरीदी हुई चीजें पितरों को ही समर्पित होती है अतः नई वस्तुओं का क्रय नहीं करना चाहिए।