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आज है विश्व गौरैया दिवस, विलुप्त होती जा रही है राजकीय पक्षी गौरैया

विश्व गौरैया दिवस पर विशेष

आज हम सभी की जरूरत है कि हम सब एकजुट होकर उसके अस्तित्व को बचाने की हर संभव प्रयास करें

गजेंद्र कुमार शर्मा ।

दरियापुर (सारण) – भगवान भाष्कर की पहली किरण की धरती पर पहुंचने से पहले ही छतों की मुंडेर पर,घरों के समीप पेड़ो पर ची-ची की सुमधुर आवाज हमें नींद को तोड़ने पर मजबूर कर देती थी।ऐसा प्रतीत होता था कि वह चिड़ियाँ नही बल्कि घड़ी का एलार्म हुआ करती थी।परंतु आधुनिक विकाश की दौड़ में मानव समाज जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया,वैसे -वैसे इसके अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा।कभी गौरैया हमारे परिवार का सदस्य हुआ करती थी,परन्तु आज कई घरों में देखने को भी नही मिलती है।

इस सम्बंध में पर्यावरणविदों की माने तो विश्व मे इसकी 26 प्रजातियां होती है।जिसमें से भारत मे मुख्य रूप से 5 प्रजातियां ही देखी गयी है।जिसके अस्तित्व खत्म होने की कगार पर है।इसके विलुप्त होने का मुख्य कारण ग्रामीण क्षेत्रो में भी घरों का कंक्रीट से निर्माण होना,घरों के समीप पेड़ों का नही होना,खेतो में विभिन्न कीटनाशकों का इस्तेमाल होना व मोबाइल रेडिएशन बताया गया है।इसकी कमी होने से खेतों में भी कई प्रकार के कीटाणुओं की संख्या बढ़ गयी है।जिससे किसानों को भी काफी क्षति हो रही है।

हालांकि इसके अस्तित्व को बचाने के लिए वर्ष 2010 में ही 20 मार्च को “विश्व गौरैया दिवस” घोषित कर दिया गया।इसके उपरांत वर्ष 2013 में इसे बिहार सरकार ने “राजकीय पक्षी” भी घोषित कर दिया।जिसके बाद से गौरैया दिवस पर सरकार के द्वारा इसके अस्तित्व को बचाने के लिए कई तरह की बातें तो की जाती है,परन्तु इसके संरक्षण के लिए अभी तक कोई कारगर कदम नही उठाया गया है।यही कारण है कि कभी एलार्म की तरह जगाने वाली घरेलू चिड़ियाँ आज विलुप्त होने के कगार पर है।

इसके बचाव के लिए हमें सभी लोगो को जागरूक करने की जरूरत है।जिससे हम सभी मिलकर इसे संरक्षित करने की कोशिश करें।यदि आज भी हम अपने घरों में या छज्जा में उसके लिए घोसला लगा कर,घरों के समीप सम्मी या अन्य पौधे लगा कर दाना-पानी की व्यवस्था कर देते है तो निश्चित रूप से हमारे परिवार व समाज से गायब हुई गौरैया पुनः वापस आ जाएगी।जिससे आने वाली पीढियां भी उसे देख पाएगी।

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