राष्ट्रनायक न्यूज

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बंदूक के बल पर बोलने का फरमान, जानें ऐसा क्यों कर रहे हैं आलोक मेहता

दिल्ली, एजेंसी।  सचमुच क्या मुंबई जाने से पहले दस बार सोचना होगा? क्या अपनी जान बचाने का इंतजाम करके प्रवेश करना होगा? लेकिन आजकल राज ठाकरे या उनसे बिछुड़े सत्ताधारी भाई उद्धव ठाकरे और उनके हथियारबंद साथी तो उत्तर भारतीयों को सार्वजानिक रूप से धमकियां नहीं दे रहे हैं। फिर डर किस बात का ? उनसे अधिक शक्तिशाली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नानाभाऊ फाल्गुन राव पटोले ने खुलेआम एलान कर दिया है कि फिल्मी दुनिया के विश्वविख्यात बादशाह कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन और हाल के दशकों में सफल अक्षय कुमार यदि उनके आदेशानुसार नहीं लिखे, पढ़े और बोलेंगे, तो महाराष्ट्र में न उनकी फिल्म चलने दी जाएगी और न ही उनकी किसी फिल्म की शूटिंग होने दी जाएगी।

अब मेरे जैसे लाखों लोगों के लिए यह धमकी क्या चिंताजनक नहीं होगी? यदि इतने बड़े लोकप्रिय अभिनेताओं की ऐसी फजीहत हो सकती है, तो हम जैसों को तो तलवार या बंदूक के निशाने पर बोलने-लिखने को कहा जा सकता है। खासकर जब वह पहले दलबदल और फिर पद बदलने के बाद प्रदेश पार्टी अध्यक्ष से मुख्यमंत्री बनने की तैयारी में लगे हैं। गनीमत है कि कांग्रेस ने उनकी अद्भुत क्षमताओं को ध्यान में रखकर ही पार्टी की कमान सौंप दी है, वरना विधानसभाध्यक्ष के पास अवमानना के विशेषाधिकार के नाते आदेश की अवहेलना पर अमिताभ तो क्या, भारत रत्न लता मंगेशकर जी को सदन में हाजिर करवाकर दो-चार दिन जेल भेजने का आदेश जारी कर देते।

वैसे मेरे जैसे अज्ञानी लोगों को उनके इस बयान से उनकी पृष्ठभूमि का ज्ञान भी प्राप्त हुआ। अपने लंबे पत्रकारिता जीवन में मुझे कई बड़ी राजनीतिक हस्तियों से मिलने, बात करने, उनकी राजनीति पर कभी मीठा, कभी कड़वा लिखने-बोलने के अवसर मिले हैं। लेकिन नानाभाऊ पटोले जब भाजपा के सम्मानित सांसद थे, तब भी उनका नाम सुनने या उनसे मिलने का अवसर नहीं मिला। हां, दलबदलुओं की बारात में शामिल होने पर उनका नाम जरूर सुनने को मिला। नानाभाऊ पटोले ने अभिनेता अमिताभ बच्चन को डॉ. मनमोहन सिंह के सत्ता काल में पेट्रोल-डीजल के मूल्य बढ़ने पर ट्वीट करने की याद दिलाई है, लेकिन पटोले को शायद याद नहीं या शिवसेना के मुखपत्र सामना में (जुलाई, 2012) बाल ठाकरे का संपादकीय ध्यान में लाया जाए, जिसमें बाला साहब ठाकरे ने कांग्रेस पार्टी, यूपीए सरकार और सोनिया गांधी पर कितने गंभीरतम आरोप लगाए थे।

लोकतंत्र में पटोले मंडली को भी आलोचना का अधिकार है। अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार या किसी भी प्रभावशाली व्यक्ति की गलती या अपराध पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। इसी तरह उनके किसी वक्तव्य या टिप्पणी पर पटोले मानहानि का मुकदमा दर्ज कर सकते हैं। लेकिन न बोलने और उनके आदेश पर काम न करने पर पटोले कैसे जबर्दस्ती कर सकते हैं? नेतागण और सामान्य पाठक बंधु जरा सोचें कि ऐसे में तो संभव है, कुछ महीने बाद यही मंडली टाटा, अंबानी, गोदरेज, मित्तल जैसे उद्यमियों को आदेशानुसार बोलने, चंदा देने की धमकी देने लगे। उनके सहयोगी दल के पचासों लोग मुंबई में हफ्ता वसूली के लिए बदनाम रहे हैं।

आश्चर्य और दुखद बात यह है कि पटोले की जहरीली धमकी पर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं और राकांपा के अनुभवी वरिष्ठ नेता शरद पवार ने तत्काल सार्वजनिक फटकार नहीं लगाई। आप कह सकते हैं कि ऐसी धमकी की परवाह न की जाए। लेकिन जब पार्टी अध्यक्ष ऐसा करेगा, तो जिला, ग्रामीण स्तर के नेता- कार्यकर्ता समाज के अन्य लोगों को भी बोलने, आदेशानुसार काम करने के लिए धमकाने लगेंगे। उन्हें कौन बचाएगा? पार्टी या किसी भी संगठन का नाम लेकर विभिन्न राज्यों में होने वाली किसी भी गतिविधि का कड़ाई और कानूनी ढंग से प्रतिकार होना चाहिए, अन्यथा नक्सली अदालत की तरह समाज में कोई भी गिरोह गैर-कानूनी आदेश और सजा देने लगेगा। सत्ता और विपक्ष की लड़ाई को अराजकता की ओर ले जाना सबके लिए घातक होगा।