राष्ट्रनायक न्यूज

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डिजिटल जवाबदेही का सवाल, नए नियम साबित हो सकते हैं जादू का पिटारा

राष्ट्रनायक न्यूज।

दिल्ली, एजेंसी। केंद्र सरकार के नए दिशा-निर्देश से सोशल मीडिया, ओवर द टॉप यानी ओटीटी और डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म्स का बेहतर नियमन हो सकेगा। मंत्रियों और सरकार की बात मानी जाए, तो नए नियम जादू का पिटारा साबित हो सकते हैं। संविधान सभा की बहस में यह बात विस्तार से आई थी, कि कानून से ज्यादा, उनके इस्तेमाल की व्यवस्था महत्वपूर्ण है। नए नियमों से आम जनता को पूरा फायदा मिले, इसके लिए कुछ बुनियादी बातें समझना जरूरी है। सरकारी आदेश को गौर से देखा जाए, तो उसमें सुप्रीम कोर्ट के दो आदेशों का भी जिक्र है। उन दोनों मामलों में डिजिटल जगत में बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई थी। समाज, विशेष तौर पर महिलाओं और बच्चों को अपराध से बचाने के लिए पिछली दो शताब्दी में अनेक कानून बने हैं। इन कानूनों को इंटरनेट और डिजिटल की दुनिया में लागू करने के लिए आईटी ऐक्ट के तहत वर्ष 2009 और 2011 में अनेक नियम बनाए गए। उन पुराने नियमों को अब संशोधित करके नए तरीके से लागू किया जा रहा है। नए नियमों में कई सारे मुद्दों को एक साथ गड्डमड्ड कर दिया गया है। इसलिए इनके अमल में कानूनी पेचीदगियों के साथ अदालती हस्तक्षेप की बाधा को भी पार करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने पॉर्नोग्राफी और रिवेंज पोर्न के बढ़ते प्रसार पर कई बार भारी चिंता व्यक्त की है। मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच के अधिकारी ने कहा है कि ओटीटी प्लेटफार्म में 100 से ज्यादा पोर्न फिल्मों को दिखाए जाने के सबूत मिले हैं। पुलिस जांच के अनुसार, आरोपियों ने भारी मुनाफा कमाने के लिए नाबालिग लड़कियों के माध्यम से ओटीटी से अश्लील तस्वीरें प्रसारित कीं। इसी तरीके से डेटिंग के नाम पर वेश्यावृत्ति के अनेक एप लोकप्रिय हो रहे हैं। ड्रग्स, आतंकवाद और बाल यौन शोषण जैसे अनेक जघन्य अपराधों के लिए डिजिटल कंपनियां सुगम प्लेटफार्म बन गई हैं। ओटीटी प्लेटफार्म में अनेक विवादित कार्यक्रम बगैर सेंसर के प्रसारित हो रहे हैं। उनमें से तांडव के प्रसारक अमेजन प्राइम की इंडिया हेड अपर्णा पुरोहित के खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी। दो दिन पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पुरोहित की अग्रिम याचिका निरस्त कर दी है। कई राज्यों में पिछले कई वर्षों से सोशल मीडिया पोस्ट पर मनमाने तरीके से हुई कारवाई से जाहिर है कि सरकार के पास डिजिटल से निपटने के लिए पहले से ही अपार शक्तियां हैं।

के एन गोविंदाचार्य मामले में आठ साल पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनेक आदेश पारित किए थे। इनके तहत अंतरराष्ट्रीय कंपनियों- फेसबुक, गूगल और ट्विटर को भारत के कानून के अनुसार पहली बार शिकायत अधिकारी नियुक्त करना पड़ा। भारत के कानून और क्षेत्राधिकार का मखौल उड़ाते हुए यूपीए सरकार के दौर में इन कंपनियों ने यूरोप और अमेरिका में अपने शिकायत अधिकारी नियुक्त कर दिए, जिसकी वजह से इन कंपनियों पर भारत के कानून कभी लागू ही नहीं हो पाए। केंद्र सरकार ने जो नए दिशा-निर्देश बनाए हैं, उसमें दिए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत में व्हाट्सएप के 53 करोड़, फेसबुक के 41 करोड़, यूट्यूब के 44 करोड़, इंस्टाग्राम के 21 करोड़ और ट्विटर के 1.75 करोड़ यूजर्स हैं। दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के आठ साल बाद केंद्र सरकार ने जो नए नियम बनाए हैं, उसके तहत सभी बड़ी टेक कंपनियों को अपने नोडल, शिकायत और कंप्लायंस अधिकारियों की भारत में ही नियुक्ति करनी होगी। नए नियमों के बाद इन कंपनियों पर भारत के कानून लागू होने के साथ उनसे टैक्स वसूली भी हो सकेगी।
डिजिटल कंपनियां अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया और यूरोप में अपनी दादागिरी दिखा रही हैं। इसलिए इन नियमों को इन कंपनियों पर लागू करने के लिए भारत सरकार को इन चार बातों पर अमल करना चाहिए। पहला, सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वाले लाखों लोग फर्जी प्रोफाइल और फजीर्वाड़े का शिकार होते हैं। ऐसे सभी मामलों में पुलिस एफआईआर और जांच नहीं कर सकती। ये कंपनियां भारत से भारी मुनाफा कमाती हैं, इसलिए उन्हें ही यूजर्स के फजीर्वाड़े पर लगाम लगानी चाहिए। फेसबुक और ट्विटर जैसे प्लेटफार्म में यूजर्स का ब्लू टिक के माध्यम से जो वेरिफिकेशन होता है, उसे सभी यूजर्स पर लागू किया जाए। इससे पर्दे के पीछे से गुमनाम तरीके से बढ़ रही अराजकता और आतंक पर लगाम लगेगी। दूसरा, नए नियमों के तहत फेसबुक, गूगल, ट्विटर और अमेजन जैसी सभी बड़ी कंपनियां अपने टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर जारी करें, जिसमें आम लोग अपनी शिकायत दर्ज करा सकें। इससे जनता के साथ पुलिस बल को भी बहुत राहत मिलेगी। तीसरा, नए नियमों में सोशल मीडिया और ओटीटी कंपनियों को ओरिजनेटर यानी मैसेज का स्रोत बताने और आपत्तिजनक कंटेंट हटाने के लिए समयबद्ध कार्यवाही करनी होगी।

महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक कंटेंट होने की स्थिति में 24 घंटे की अधिकतम समय सीमा तक मामले को खींचने के बजाय डिजिटल कंपनियां तीन घंटे के भीतर आपतिजनक कंटेंट को प्लेटफार्म से हटाएं, तो बेहतर रहेगा। चौथा, ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नाबालिग और वयस्कों के लिए कंटेंट की जो पांच कैटेगरी बनाई गई है, वह अव्यावहारिक होने के साथ अनेक कानूनी विरोधाभास से ग्रस्त है। इंटरनेट कंपनियों पर अभी अमेरिका के नियम लागू होते हैं, जिन्हें दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद भारत में भी मान्यता मिल गई। इसके अनुसार, 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया से नहीं जुड़ सकते। 13 से 18 साल के बच्चों को अभिभावकों के संरक्षण में ही सोशल मीडिया से जुड़ना चाहिए। लॉकडाउन के बाद घर से पढ़ाई का जो नया सिस्टम शुरू हुआ है, उसमें छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में स्मार्ट फोन की दुधारी तलवार आ गई है, जहां नए नियमों को लागू करना मुश्किल होगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैले डिजिटल के तंत्र में सरकार के नए नियमों को प्रभावी और सुसंगत तरीके से लागू करने की व्यवस्था बने, तभी ये समाज और देश के लिए शुभ साबित होंगे।