पंडित महेन्द्र मिश्र पर विशेष:
अखिलेश्वर पाण्डेय की विशेष रिर्पोट। राष्ट्रनायक प्रतिनिधि।
जलालपुर/सारण (बिहार)। पाकल पाकल पनवा खिअवलस गोपीचंदवा, आ नेहिया लगाई के भेजवलस जेहल खानवा, अगुंली मे डसले बिया नगिनीया रे सखी सैंया के बोलाई द, जैसे गीतों से भोजपुरी माटी के करोड़ो दिलों पर राज करने वाले पूर्वी धून के लोकप्रिय शिल्पी पंडित महेंद्र मिश्र की जन्म स्थली कांही मिश्रवलिया आज भी उपेक्षित है। यह स्थल पर्यटक स्थल नहीं बन पाया, इसका मलाल स्थानीय नागरिकों सहित जिले के गणमान्यों के बीच भी है। उन्हें आजादी के इतने वर्षों बाद भी स्वतंत्रता सेनानी नहीं बनाया गया है। जबकि सारा जीवन उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी के रूप में बीता दिया। बिहार सरकार उनकी जयंती पर प्रत्येक वर्ष लाखों रुपए खर्च करती है ,लेकिन उनकी जन्मस्थली आज भी उपेक्षित है। महेंद्र बाबा का घर अर्ध निर्मित है।उनके दरवाजे तक जाने के लिए अच्छी सड़क तक नहीं है। स्थानीय निवासी बताते हैं कि 16 मार्च 1886 को जन्मे पंडित महेंद्र मिश्र नोट छापते थे लेकिन अपना घर तक नहीं बना पाए थे। वे सारा नोट भारत माता को आजाद कराने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को देते थे।
पंडित महेंद्र मिश्र की तस्बीर
महेंद्र मिश्र जी के पर बनी फिल्मों से करोड़ों रुपया की हुई कमाई, स्थानीय लोग अभी तक अंजान
पंडित महेंद्र मिश्र पर बनी फिल्मों से फिल्म निर्माताओं ने करोड़ों रुपए की कमाई की यही नहीं उनके गीतों को लिखकर, गाकर कई ने बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर ली। वहीं उन पर पुस्तकें लिखने वाले लोगों ने भी उनके नाम से खूब धन वर्षा की। लेकिन उनका परिवार और उनका पुश्तैनी घर आज भी उपेक्षित है। इस पर उनके प्रपौत्र विनय मिश्र कहते हैं कि पूर्वी धूनो को अपनाकर विस्मिल्लाह खान को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। लेकिन पूर्वी धूनो के जनक पं महेन्द्र मिसिर आज भी उपेक्षित हैं। उनके गीत क ई फिल्मो यथा 1963की फिल्म “मुझे जीने दो” मे नदी नारे न जाओ श्याम पैंया परो, वहीं महबूब खान की फिल्म तकदीर की ठुमरी के जनक महेन्द्र बाबा ही थे। नोट छाप कर अंग्रेजों की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करने वाले तथा स्वतंत्र सेनानियों को आर्थिक मदद करने वाले पंडित महेंद्र मिश्र के प्रपौत्र बताते हैं कि 1943मे जब जर्मनी ब्रिटीश के अधीन था तथा द्वितीय विश्व युद्ध चरम पर था|जर्मनी के लोग ब्रिटीश को अलग तरह का चोट पहुंचाना चाहते थे। ऐसे मे 1943 में स्टेपों प्रमुख बर्नार्ड क्रुगर के नेतृत्व मे जर्मनी के लोग अंग्रेजो के चंगुल से निकलना चाहते थे। ऐसे मे बर्नार्ड क्रुगर को लंदन से ऐसी सूचना मिली कि1924 मे कोई भारतीय (महेन्द्र मिसिर) ने ब्रिटीश नोट को इतना छापा था कि ब्रिटीश अर्थव्यवस्था चरमराने लगी थी। इसपर ब्रिटीश सरकार ने एक जासूस गोपीचंद को लगाया। गोपीचंद ने महेन्द्र मिसिर को विश्वास मे लेकर उन्हे इस तरह पकड़वाया कि स्काटलैंड यार्ड भी अचंभित रह गया| इसी भारतीय से प्रेरणा लेकर बर्नार्ड क्रुगर ने इतना ब्रिटीश नोट छापा कि ब्रिटीश हलकान हो गए।
पं महेन्द्र मिश्र के बनाया गया ढलुआ सिक्का
पं महेन्द्र मिश्र का ढलुआ सिक्का
महेंद्र मिश्र के छापे हुए नोट का सारा पैसा जाता था भारतीय स्वतंत्रता क्रांतिकारियों के पास
स्थानीय लोगों का कहना है कि महेंद्र मिश्र नोट जरूर छापते थे लेकिन सारा पैसा क्रांतिकारियों को दिया करते थे। क्रांतिकारियों के नहीं रहने या जेल जाने पर उनके परिवारों तक पैसा पहुंचाना उनके जीवन का हिस्सा था। वे इसको अपना दायित्व भी समझते थें। पैसा उनके पास प्रचुर था लेकिन अपने लिए नहीं था देश हित में था। वैसे में उनकी स्थिति बदहाल थीं| खेतीबारी से ही उनके परिवार का भरण पोषण होता था। लेकिन नोट छापने की चर्चा सभी जगह होती थी। परन्तु किसी को यह पता नहीं था कि महेंद्र बाबा कहां नोट छापते थें। इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने जासूस गोपीचंद को लगाया जो नौकर बनकर महेंद्र बाबा की सेवा करने लगा। उसको भी तीन साल लग गए यह पता लगाने में कि महेंद्र बाबा नोट छापते हैं। उसकी सूचना पर स्थानीय ब्रिटिश कमांडर नील साहब ने पुलिस की टुकड़ी के साथ उनके घर पर धावा बोल दिया। जब इसकी सूचना स्थानीय लोगों को हुई तो सभी लाठी डंडा लेकर उनके घर पहुंच गए। बड़ी संख्या में लोगों के हुजूम को देखते हुए नील साहब ने बुद्धिमत्ता से काम लिया तथा अपने एक कर्मी कमांडर को फरमान दिया कि एक वाक्य लिखें कि यहां पर नोट छापने की मशीन नहीं मिली। ऐसा कह कर के वह स्थानीय लोगों के आक्रोश से बच निकले, लेकिन उसने महेंद्र बाबा पर नोट छापने और ब्रिटिश अर्थतंत्र को तबाह करने का आरोप लगाकर मुकदमा कर दिया। मुकदमे के दौरान उनके यहां नौकर रहे गोपीचंद ने उनके विरुद्ध गवाही दी। वहीं उसने महेंद्र बाबा से प्रेरणा लेकर उनके गीतो को सीख लिया था कि” नोटिया हो छापी- छापी गिनिया भंजवनी ए महेन्द्र मिसिर ब्रिटीश के क ई नी हलकान…… इस पर महेंद्र मिसिर माथे पर हाथ रखकर के कहने लगे कि “पाकल पाकल पनवा खि अवलस गोपीचनवा, कि प्रीतिआ लगाई के भेजवलस जेहलखानवा।
छपरा कोर्ट में हुई थी 30 वर्षों की लम्बी सजा, कोर्ट की लम्बी लड़ाई लड़ाने के बाद 10 साल की सजा काटने के बाद महेन्द्र बाबा पहुंचे अपने घर
गोपीचंद जासूस के बयान पर महेंद्र बाबा को 20 साल की सजा हो गई| उस सजा से मुक्त होने के लिए महेंद्र मिश्र के पास आर्थिक का अभाव हो गया तथा खेतों को बेचकर उनके परिवार वालों ने हाई कोर्ट में मुकदमा लड़ा जिस पर सजा की अवधि 10 साल घट गई। बाद में जेलर के निर्देश पर ही उनकी बेटियों ने उन्हें जेल से निकलने में मदद की। जेल से रिहा होने के बाद वे घर पहुंचे।
पं महेन्द्र मिश्र के घर के पास अवस्थित शिव मंदिर जहां उन्होंने अपने प्राण त्यागे थे।
अपने अंतिम क्षणों में निर्गुण गाने के दौरान शिवलिंग के पास गिरने से हुई पंडित महेन्द्र मिश्र की मौत,
26 अक्टूबर 1946 को अपने शिवालय में एक निर्गुण बनवारी हो कैसे जाएब ससुराल, आ गइले डोलिया कहारी हो कैसे जाए ससुराल को गुनगुना रहे थे कि कुछ क्षण बाद में शिवलिंग के पास गिर पड़े और उनकी मौत हो गई। पंडित महेंद्र मिश्र के प्रपौत्र राम नाथ मिश्र कहते हैं कि महेन्द्र बाबा को जब नोट छापने के जुर्म मे छपरा कोर्ट द्वारा 30 वर्ष की सजा हुई थी। लेकिन जाने माने बैरिस्टर चितरंजन दास ने इनका केस लड़कर सजा की अवधि 30वर्ष से कमकराकर 10साल करा दी। उन्हे बक्सर जेल मे रखा गया था। जहां उन्होने अपूर्व रामायण, महेन्द्र गीतावली, महेन्द्र प्रभावली महेन्द्र मयंक उधो राधिका संवाद जो अप्रकाशित है की रचना की थी। उन्होने बताया कि उनकी अद्वितीय रचना अपूर्व रामायण तथा अन्य कालजई रचनाओं की पांडुलिपि इसी तरह से बिखरी पड़ी थी। कुछ ही साल पहले ही राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा उसे प्रिंट कराने के लिए ले जाया गया है। लेकिन अभी तक प्रकाशित नहीं हो पाया है।
पंडित महेंद्र मिश्र के प्रपौत्र राम नाथ मिश्र
पंडित महेंद्र मिश्र के प्रपौत्र का मकान
पंडित महेंद्र मिश्र के नोट छापने वाली सांचा
पंडित महेंद्र मिश्र के नोट छापने वाली मशीन के कल पूर्जे


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