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बाजवा और इमरान की भारत से शांति की चाहत के पीछे के असल कारण समझिये

दिल्ली, एजेंसी। क्या पाकिस्तान भारत के प्रति अपने बैरभाव को अब त्यागना चाहता है? यह सवाल इसलिए उठा है क्योंकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बाद उनके सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा ने भी भारत के साथ शांति का राग अलापा है। लेकिन सावधान! इसके पीछे भी पाकिस्तान की चाल ही है क्योंकि एफएटीएफ ने अभी भी पाकिस्तान को ग्रे सूची में बनाये रखा हुआ है जिसके कारण इस्लामाबाद को दुनिया से आर्थिक मदद नहीं मिल पा रही है। माना जा सकता है कि पाकिस्तान के रुख में दिख रहे इस दिखावटी बदलाव के पीछे पैसा ही सबसे बड़ा कारण है।

आर्थिक दिक्कतें झेल रहे पाकिस्तान में इस्लामाबाद सिक्योरिटी डॉयलॉग को संबोधित करते हुए सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा ने कहा कि पूर्व और पश्चिम एशिया के बीच कनेक्टिविटी सुनिश्चित करके दक्षिण और मध्य एशिया की क्षमता को खोलने के लिए भारत और पाकिस्तान के संबंधों का स्थिर होना बहुत आवश्यक है। इससे एक दिन पहले इमरान खान ने इसी कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भारत को मध्य एशिया तक पहुंच कायम करने के लिए पाकिस्तान के साथ शांति रखने की नसीहत दी थी। इमरान खान ने कहा था कि भारत को पाकिस्तानी भू-भाग के रास्ते संसाधन बहुल मध्य एशिया में सीधे पहुंचने में मदद मिलेगी। देखा जाये तो मध्य एशिया के संसाधन बहुल देशों में कजाकस्तान, किर्गिजस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान आते हैं।

इस्लामाबाद सिक्योरिटी डॉयलॉग को संबोधित करते हुए पाकिस्तान सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने कहा कि यह भारत और पाकिस्तान के लिए ‘‘अतीत को भूलने और आगे बढ़ने’’ का समय है। जनरल बाजवा ने कहा कि विवादों के कारण क्षेत्रीय शांति और विकास की संभावना अनसुलझे मुद्दों के कारण हमेशा बाधित रही है। बाजवा ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि यह समय अतीत को भूलने और आगे बढ़ने का है।’’ लेकिन यहां बाजवा से सवाल यह है कि भारत तो अतीत को भूल कर बार-बार आगे बढ़ता है लेकिन पाकिस्तान का आतंकी अतीत ही उसके वर्तमान पर भी हावी रहता है। क्या पाकिस्तान के हुक्मरान खुद की इस कमजोरी को समझ पाये हैं?

पाकिस्तान बदल रहा है या बदले का प्लान है?

दरअसल भारत ने पिछले महीने कहा था कि वह पाकिस्तान के साथ आतंक, दुश्मनी और हिंसा मुक्त माहौल के साथ सामान्य पड़ोसी संबंधों की आकांक्षा रखता है। भारत ने कहा था कि इसकी जिम्मेदारी पाकिस्तान पर है कि वह आतंकवाद और शत्रुता मुक्त माहौल तैयार करे। भारत ने पाकिस्तान से यह भी कहा था कि ‘आतंकवाद और वार्ता’ साथ-साथ नहीं चल सकते तथा भारत में हमलों के लिए जिम्मेदार आतंकी संगठनों के खिलाफ ऐसे कदम उठाए जाएं, जो स्पष्ट रूप से नजर आ सकें। जिसके बाद इमरान खान ने शांति का राग अलापा और अब जनरल बाजवा ने भी शांति की बात दोहराई है लेकिन साथ ही उन्होंने कश्मीर मुद्दा भी फिर उठाते हुए कह दिया है कि ‘‘हमारे पड़ोसी को विशेष रूप से कश्मीर में एक अनुकूल वातावरण बनाना होगा।’’ जनरल बाजवा ने कहा, ”सबसे अहम मुद्दा कश्मीर का है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि शांतिपूर्ण तरीकों के माध्यम से कश्मीर विवाद के समाधान के बिना इस क्षेत्र में शांति की कोई भी पहल सफल नहीं हो सकती है।’’

जनरल बाजवा कुछ बातें दिमाग में बिठा लीजिये: अब जनरल बाजवा को कुछ बातें समझाते हैं। बाजवा आप वही हैं ना जिसके बारे में खुद पाकिस्तान असेंबली के पूर्व स्पीकर अयाज सादिक ने कहा था कि भारत के हमले की आशंका से पाकिस्तान के सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा के पैर कांप रहे थे और चेहरे पर पसीना आ रहा था क्योंकि बाजवा को भारत के हमले का डर सता रहा था। बाजवा आप वही हैं ना जिसके बारे में पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने पाकिस्तानी संसद में आपके मन में भारतीय सेना के डर की बात बताई थी। बाजवा आप वही हैं ना जिसके सेनाध्यक्ष के कार्यकाल में भारत ने पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल और एयर स्ट्राइक की। बाजवा किस कश्मीर की बात कर रहे हैं आप ? कहीं पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर की बात तो नहीं कर रहे जहाँ रोजाना पाकिस्तान सरकार के खिलाफ प्रदर्शन होते हैं। आपने सही कहा कि कश्मीर का मुद्दा अहम है और वो तब तक अहम रहेगा जब तक आपके कब्जे वाले कश्मीर को भारत के केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में मिला नहीं लिया जाता।

खैर बाजवा से पहले दिये गये इमरान खान की बात करें तो उन्होंने बुधवार को कहा था कि उनके मुल्क के साथ शांति रखने पर भारत को आर्थिक लाभ मिलेगा। कमाल है। अपने आतंकी इतिहास और वर्तमान के चलते पाई-पाई को तरस रहा पाकिस्तान भारत के आर्थिक लाभ की चिंता कर रहा है। इमरान खान ने अपने संबोधन में कहा था कि संबंध सुधारने के लिए ‘‘भारत को पहला कदम उठाना होगा। वे जब तक ऐसा नहीं करेंगे, हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं।” तो इमरान खान को यह बता दें कि भारत एक नहीं अनेकों कदम उठा चुका है संबंध सुधारने के लिए, लेकिन हर कदम पर पाकिस्तान ने पीठ में छुरा घोंपने जैसा काम किया। जहां तक इमरान खान और बाजवा के धीमे सुर और ढीले तेवरों की बात है तो ऐसा लगता है कि पाकिस्तान को यह बात समझ आ रही है कि जिस चीन को मित्र समझते हुए उसे अपना सबकुछ सौंप दिया वह आज पाकिस्तान पर इतना कर्ज चढ़ा चुका है कि उसे अब गुलाम बनाने की राह पर है।

उस्तादी दिखाने में कुरैशी भी पीछे नहीं रहे: पाकिस्तान में इसी कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भी कहा कि दक्षिण एशिया में स्थायी शांति, सुरक्षा और विकास लंबे समय से चले आ रहे जम्मू-कश्मीर विवाद के शांतिपूर्ण समाधान पर टिका है। उन्होंने कहा, ‘‘अनुकूल वातावरण बनाना भारत पर निर्भर है।’’ कुरैशी जी अनुकूल वातावरण बनाना भारत पर निर्भर नहीं है बल्कि पाकिस्तान अब पूरी तरह दूसरों पर निर्भर होता जा रहा है। वैक्सीन सामने से नहीं मांग सके तो कोरोना रोधी भारतीय वैक्सीन विदेशी संस्थानों से गरीब देशों को दी जाने वाली मदद योजना से हासिल कर ली। अपने रोजमर्रा के खर्चे तक चलाने के लिए पाकिस्तान को विदेशी मदद पर निर्भर रहना पड़ रहा है। पाकिस्तान में हुए इस कार्यक्रम की एक और मजेदार बात आपको बता देते हैं। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व में ‘नया पाकिस्तान’ तेजी से आगे बढ़ रहा है। कुरैशी एक तो आप यह कॉपी पेस्ट छोड़ दीजिये जिसकी पाकिस्तानियों को बहुत बुरी लत है। नये भारत को देखकर आपने नया पाकिस्तान कह दिया। दूसरा आप पाकिस्तान के तेजी से आगे बढ़ने की बात कर रहे हैं तो आपको बता दें कि पाकिस्तान अराजकता की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है जहां लोकतंत्र सिर्फ दिखावे की चीज है, जहां सरकार चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक निकाय से सीधे भिड़ रही है। आपकी यह तेजी और तेजी से आगे बढ़ी तो कर्ज में डूबे पाकिस्तान के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी।

बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि भारत-पाकिस्तान के संबंध सामान्य रहें तो दोनों देश गरीबी से निपटने में ज्यादा खर्च कर सकेंगे। लेकिन पाकिस्तान का दोहरा चरित्र दुनिया जानती है। भले अपने संबोधन में इमरान खान, बाजवा और कुरैशी ने भारत सरकार के 5 अगस्त 2019 के उस फैसले का जिक्र नहीं किया जिसके तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किया गया था, लेकिन पाकिस्तान इस मुद्दे पर अपना रुख बदल लेगा इसकी संभावना कम ही है। पिछले माह दोनों देशों ने संघर्षविराम समझौता भी किया था देखना होगा कि पाकिस्तान इस पर कायम रहता है या तोड़ता है। क्योंकि इससे पहले भी स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान संघर्षविराम समझौता किया गया था जिसका पाकिस्तान ने जमकर उल्लंघन किया लेकिन भारत से तगड़ा पलटवार भी पाया।
नीरज कुमार दुबे

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