लेखक: अहमद अली
फिर एक बार हम धोखा खा गये। हम का मतलब मैं, आप, वो, वो सभी, वो सब लोग अर्थात एक दो नहीं आम अवाम सभी।
जी हाँ फिर एक बार हम धोखा खा गये, जब उन्होने कहा, कोरोना से लड़ने के लिये सारा इन्तजा़म मुकम्मल है। कोई घबराने की बात नहीं।न दवा की कमी होगी न आक्सीजन का, न अस्पताल की कमी होगी न कहीं बेड की किलल्त होगी। आज हा हाकार मचा है। सोसल मिडिया पर लोग चिल्ला रहे हैं, ” कहीं आक्सीजन हो तो बताईये मेरा एक परिजन वायरस की चपेट में आ गया है। जरा जल्दी करें नहीं तो साँसे थम जायेगी।” अखबार खोलिये, सोशल मिडिया पर जाईये, रेडियो सुनिये या टेलीविजन देखिये। हर जगह दिल दहला देने वाले भयावह मंजर ही मंजर हैं। यानी मौत की खबर, यहाँ वहाँ चारों तरफ। दुखद, अफसोसनाक, श्रद्धांजलि , भगवान उनकी आतमा को शांति दें, एक अजीज दोस्त चला गया , दिल दहल गया, अब मैं किसके सहारे जिऊँगा/ जीऊँगी। आज कल हर जगह केवल ये ही शब्द सुनाई पड़ते हैं।
इसीलिये कहता हूँ कि एक बार फिर हम धोखा खा गये, यह समझने में कि , “पुख्ता इन्तजा़म ” एक जुमला था। 15 लाख हर किसी के बैंक खाते में आना, काला धन विदेश से लाना, दो करोड़ नौजवानों को नौकरी। बाद में कहा गया वो एक चुनावी जुमला था।अब तो समझ लिजिये, कि ये ” पुख्ता इन्तजाम ” भी एक चुनावी जुमला ही था। क्यों , पाँच राज्यों में चुनाव नहीं था क्या ? जिसे चस्का लग गया ध्रुवीकरण से चुनाव जीतने की, उसे जनता की आह,कराह, रुदन , क्रंदन से क्या वास्ता ! चुनाव आयेगा तो मंदिर, मस्जिद, कब्रिस्तान, श्मशान, मुसलमान, पाकिस्तान आदि इत्यादि सभी मुद्दे जिन्दा कर दिये जायेंगे। इससे भी बात नहीं बनी, तो जुमलों की कमी है क्या ? पश्चिम बंगाल में देखा नहीं! 30 प्रतिशत बनाम 70 प्रतिशत का नारा तो उछाला ही गया चम चम चमचमाते जुमले इतने बरसाये जा रहे हैं कि मानों वो उस राज्य को स्वर्ग बना कर ही दम लेंगे।
वायरस महामारी की यह दूसरी लहर अनजाने में नहीं आया है। पूर्व में ही डाक्टरों , वैज्ञानिकों यहाँ तक कि विश्व स्वास्थ संगठन ने भी इस भयावह स्थिति की पूर्व चेतावनी दे डाला था। तभी पुख्ता इन्तजाम की बात कही गयी थी। अब सोचिये। जिस इन्तजाम में आक्सीजन के बगैर लोगों का दम घुट जाय। उसे पुख्ता नहीं जुमलाकट इन्तजाम ही कहना सटीक होगा। गनीमत है दोनों
मस्तिष्क अभी चुनाव में व्यस्त है वरना कुछ न कुछ व्यवस्था हो भी गयी होती, जैसा कि 2020 में मरकज वालों के सहारे हुआ था।वो तो बाद में उच्च न्यायालयों (दिल्ली,कर्नाटक और मुम्बई) ने टिप्पणी किया कि अपनी नाकामियाँ छुपाने के लिये सरकार ने मरकज को बली का बकरा बनाया। जी, ये तो बाद में हुआ, तब तक तो सरकार का काम हो गया था। इस बार भी मुझे पक्का भरोसा है। बडी़ शिद्दत से बकरे की तलाश हो रही होगी जिसकी बली होनी है।फिर उनके मिडिया को अपना टी आर पी बढा़ने का इन्तजार भी होगा ही। अभी तक तो जनता पर ही सारा दोषारोपन जारी है, कि लोग एहतियात के नियमों का पलन नहीं कर रहे हैं। हद हो गयी। रैलियाँ करें आप। रैलियों में बिना मास्क के ही नजर आंये आप। रैलियों की भीड़ पर शब्बाशी दें आप और अपनी नाकामी का सारा दोष जनता पर ही डाल रहे हैं। आखिर लोग आपको भी तो देख रहे हैं बिना मास्क के भीड़ के बीच। देश में वैक्सीन की किल्लत हो गयी है।निर्मित वैक्सिन का 65%विदेशो में सप्लाई किया गया। जनता से राय ली थी क्या ? कम से कम ये समय तो दूसरे देशों से वाह वाही लूटने और बनियागीरी का नहीं है !
केरल सरकार को बार बार सलाम करने को जी करता है, जिसने वर्तमान दूसरी लहर से जूझने के लिये पिछले वर्ष से ही तैयारी शुरु कर दिया था। नतीजा सबके सामने है।कई राज्यों से आक्सीजन के बगैर मौत की खबर आ रही है, तो केरल के पास आक्सीजन का इतना उत्पादन है कि अन्य राज्यों को सप्लाई दे रहा है। गोवा, लक्षद्वीप, कर्नाटक, तमिलनाडु सभी राज्यों में। ये युंही नहीं हुआ बल्कि आक्सीजन छमता में बढो़तरी के लिये इस राज्य ने सार्वजनिक उपक्रमों में निवेश कर लिया तथा 58 करोड़ की लागत से आक्सीजन प्लांट भी खड़ा कर रखा है। नियंत्रित मिडिया 971 करोड़ की नयी संसद भवन एवं 3000 करोड़ की मूर्ती का बखान तो करता है लेकिन 58 करोड़ का आक्सीजन प्लांट उसके गले से नीचे नहीं उतरता।
कम से कम अब तो होश में आने का वक्त है। सोंचियो ज़रा, आखिर कब तक हम धोखा खाते रहेंगे ?
(लेखक के अपने विचार है।)
cpmahamadali@gmail.com
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