राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

लहर बनाम लहर: कैसे बंगाल में हो गया खेल

दिल्ली, एजेंसी। विज्ञान के छात्र जानते होंगे कि न्यूटन ने बल के तीन नियम दिए. तीसरा नियम है क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम. यह नियम कहता है कि प्रत्येक क्रिया के समान एवं विपरीत प्रतिक्रिया होती है. पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणामों को देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि ममता के लिए न्यूटन का यह तीसरा नियम ही संजीवनी साबित हुआ. बंगाल में भाजपा ध्रुवीकरण का दांव खेली. हिंदू वोटों को लामबंद करना, पिछड़ों-दलितों को साथ लेना और टीएमसी के लश्कर से सेनापतियों को तोड़कर उसे एक डूबता हुआ जहाज साबित करना, इसी गणित पर आधारित थी भाजपा की रणनीति. एक लहर बनाई गई कि तृणमूल कांग्रेस कमजोर पड़ रही है और हिंदू जाग गया है.

भाजपा ऐसा कर पाने में खासी सफल भी रही. ऐसा न होता तो पिछले विधानसभा चुनाव में तीन सीट जीतने वाली भाजपा राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी और एक दमदार विपक्ष के रूप में न उभर पाती. लेकिन तैयारी विपक्ष की तो नहीं थी. अमित शाह अपने हर साक्षात्कार में 200 के जादुई आकड़े को बहुत आसानी से अर्जित की जा सकने वाली संख्या बताते रहे. उन्हें उम्मीद थी कि वाम और कांग्रेस का गठबंधन अगर अपना पुराना प्रदर्शन भी दोहरा लेगा और हिंदू ध्रुवीकरण हो पाएगा तो चुनाव के रण में चमत्कार संभव है. किसी को भी यह उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेस और वामदल इतना बुरा प्रदर्शन करेंगे. 10 साल के शासन की एंटीइन्कंबैंसी से कुछ वोट हिंदू होकर भाजपा को मिलता तो कुछ भाजपा विरोधी वोट वामदल-कांग्रेस के गठबंधन में भी शिफ्ट होता.

लहर बनाम लहर: लेकिन ऐसा साफ नजर आ रहा है कि भाजपा अपने ही राजनीतिक दांव में उलझ गई. सत्यजीत रे के बंगाल में न्यूटन का तीसरा नियम पैदा हो गया और उसने लहर के खिलाफ एक लहर खड़ी कर दी. ये लहर थी हिंदू ध्रुवीकरण के खिलाफ मुस्लिम और धर्मनिरपेक्ष या भाजपा को पसंद न करने वाले हिंदुओं के ध्रुवीकरण की. यह लहर थी चुनाव से पहले ही अति आक्रामक नजर आ रही एक राजनीतिक पार्टी के प्रति असहजता की. यह लहर थी अपनी पारंपरिक पार्टियों को छोड़कर किसी ऐसे के साथ खड़े होने की जो भाजपा को रोक सके.

नतीजा यह रहा कि जहां भाजपा 50-55 प्रतिशत हिंदू वोट को अपनी ओर खींच पाने में सफल रही, वहीं मुसलमानों का 75 प्रतिशत से ज्यादा वोट किसी और पार्टी को न जाकर टीएमसी में शिफ्ट हो गया. बाकी का हिंदू वोट तो टीएमसी को मिला ही. चुनाव के दौरान एमआईएम के ओवैसी और फुरफुरा शरीफ के अब्बास सिद्दीकी को लेकर भी मुसलमानों में संदेह बढ़ गया था. बिहार में भाजपा की जीत से बंगाल के मुसलमान जो नतीजे निकाल रहे थे, उसमें ओवैसी भी एक फैक्टर थे. यही कारण है कि अच्छी बड़ी मुस्लिम आबादी वाले बंगाल में ओवैसी फैक्टर बुरी तरह फेल हो गया.

वामदलों और कांग्रेस को पारंपरिक रूप से जो लोग अभी तक वोट देते आए थे, उन्हें भी ऐसा महसूस हुआ कि फिलहाल वैचारिक प्रतिबद्धता और अपनी पार्टी के प्रति वफादारी से ज्यादा जरूरी है राज्य में भाजपा को आने से रोकना. इसलिए जहां एक ओर टीएमसी का कुछ वोट भाजपा की झोली में गया वहीं दूसरी ओर वामदलों और कांग्रेस के वोटबैंक का एक बड़ा हिस्सा ममता की ओर झुक गया. बंगाल में अंतिम दो चरणों में चार जिलों की 49 सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक था. इन सीटों में से 26 कांग्रेस और 11 वामदलों के पास थीं. टीएमसी के पास यहां महज 10 सीटें थीं. लेकिन इसबार सारी सीटें टीएमसी की ओर आ गई हैं. 37 सीटों का यह अंतर ममता के लिए बहुत अहम साबित हुआ है.

चुनाव के दौरान कांग्रेस के गांधी परिवार से कोई प्रचार करने बंगाल नहीं पहुंचा. राहुल आधे चुनाव के दौरान पहुंचे तो कुछ ही दिनों बाद उन्होंने कोरोना के चलते रैलियां न करने की घोषणा कर दी. इससे बाहरी तौर पर राहुल एक बड़ा नैतिक संदेश देते नजर आए लेकिन इसमें पार्टी समर्थकों को एक अंतर्निहित संदेश भी मिला. शायद यह अरसे बाद ही है कि राज्य में अगड़ी जातियां और मुसलमान भाजपा के खिलाफ लामबंद दिखाई दिए. दिलीप घोष की उग्रता, भाजपा की आक्रामकता और ममता का बंगाली अस्मिता का दांव, अकेले एक पूरी फौज से लड़ने का साहस औ? सहानुभूति, ऐसे कितने ही कारक चुनाव में भाजपा या मोदी की लहर के खिलाफ खुद एक लहर बनकर खड़े हो गए.

नतीजा सामने है. भाजपा एक ऐतिहासिक सफलता के बाद भी विपक्ष तक सीमित हो गई है. इसकी सबसे बड़ी कीमत वामदलों और कांग्रेस ने चुकाई है जो राज्य से साफ हो गए हैं. ममता 10 साल के शासन के बाद फिर पश्चिम बंगाल की गद्दी संभालने जा रही हैं. पलस्तर कट गया है, ममता अपना पैर आगे बढ़ा चुकी हैं.

मनीष कमलिया

You may have missed